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भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: बजट में खर्च घटाकर करनी चाहिए घाटे की भरपाई

By भरत झुनझुनवाला | Published: January 09, 2021 2:15 PM

पिछले कुछ सालों में सरकार ने बड़ी कंपनियों और छोटे करदाताओं को टैक्स में छूट दी है और...

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वित्त मंत्री को आगामी बजट में तय करना है कि वे सरकार के घाटे की भरपाई कैसे करेंगी. इस वर्ष कोविड संकट के चलते सरकार का वित्तीय घाटा देश के जीडीपी का 3.5 प्रतिशत से बढ़कर 7 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है. घाटा बढ़ना स्वाभाविक है.

बीते कई वर्षों से सरकार लगातार आयकर, जीएसटी और आयात कर की दरों में कटौती करती आ रही है. यह कटौती सार्थक होती यदि साथ-साथ अर्थव्यवस्था में गति आती जैसे हल्का भोजन करने से शरीर में तेजी आती है. लेकिन कटौती के कारण सरकार के राजस्व में उल्टा गिरावट आई है.

अर्थव्यवस्था के मंद पड़े रहने के कारण राजस्व में भी गिरावट आई है. सरकार का घाटा तेजी से बढ़ रहा है जैसे व्यक्ति हल्का भोजन करे लेकिन प्रदूषित क्षेत्न में रिहाइश करे तो हल्का भोजन निष्प्रभावी हो जाता है. राजस्व में गिरावट की यह परिस्थिति ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकती है उसी तरह जैसे ऋण लेकर घी पीने की प्रक्रिया ज्यादा दिन तक नहीं चलती है. चार्वाक के सिद्धांत ‘ऋणं कृत्वा घृतम पिवेत’ से काम नहीं चलेगा. अंतत: सरकार को अपने उन खर्चो को कम करना होगा जो उत्पादक नहीं हैं.

बीते वर्षो में सरकार ने आयकर में बड़ी कंपनियों और छोटे करदाताओं सभी को कुछ-न-कुछ छूट दी है. अपेक्षा थी कि आयकर की दर में कटौती होने के कारण आयकर दाताओं के हाथ में ज्यादा रकम बचेगी और वे बाजार से माल अधिक मात्ना में खरीदेंगे और खपत अधिक करेंगे. साथ-साथ बड़े उद्योगों के हाथ में ज्यादा रकम बचेगी और वे ज्यादा निवेश करेंगे. इस प्रकार बाजार में खपत और निवेश का सुचक्र स्थापित हो जाएगा.

इस सुचक्र के स्थापित होने से पुन: सरकार को अधिक मात्ना में आयकर मिल जाएगा. आयकर की दर को घटाने से अर्थव्यवस्था गति पकड़ लेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ है. कारण यह है कि आयकर मुख्यत: देश का समृद्ध वर्ग अदा करता है. यदि सरकार ने इस वर्ग को आयकर में 100 रुपए की छूट दी तो हम मान सकते हैं कि 50 रुपया वे बचत करेंगे. इस रकम का निवेश वे शेयर बाजार, विदेश में अथवा सोना खरीदने में करेंगे. शेष 50 रुपए यदि वे खपत में लगाते हैं तो हम मान सकते हैं कि इसमें से 25 रुपए विदेशी माल खरीदने में, विदेश यात्ना करने में अथवा बच्चों को विदेश में पढ़ने को भेजने में लगाएंगे.

इस प्रकार 25 रुपया विदेश चला जाएगा. अंत में केवल 25 रुपए की देश के बाजार में मांग उत्पन्न होगी. सरकार का घाटा 100 रुपए बढ़ेगा जबकि बाजार में मांग 25 रुपए की बढ़ेगी. न्यून मात्ना में मांग उत्पन्न होने से निवेशकों की निवेश करने की रुचि नहीं बनेगी. इस हानिप्रद नीति को अपनाने के कारण समृद्ध वर्ग के करदाताओं के हाथ में रकम बची लेकिन वह रकम बाजार में न आकर या तो बैंकों में जमा हो गई अथवा विदेशों में चली गई. इसलिए टैक्स की दरों में कटौती के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था कोविड संकट आने के पहले से ही मंद पड़ी हुई है और इसमें गति नहीं आ रही है. 

टैक्स में कटौती करने का दूसरा पक्ष घाटे की भरपाई का है. सरकार के खर्च बढ़ते जा रहे हैं लेकिन टैक्स में छूट देने से राजस्व में कटौती हो रही है. इसलिए सरकार का घाटा बढ़ रहा है. इस घाटे की भरपाई सरकार बाजार से ऋण लेकर पूरी करती है. इसी घाटे को वित्तीय घाटा कहा जाता है. जैसा ऊपर बताया गया है, इस चालू वर्ष 2020-21 में यह घाटा जीडीपी का 3.5 प्रतिशत से बढ़कर 7 प्रतिशत होने को है.

यह बढ़ता वित्तीय घाटा एक या दो वर्ष के लिए सहन किया जा सकता है जैसे दुकानदार बैंक से ऋण लेकर यदि अपने शोरूम का नवीनीकरण करे और उसकी बिक्री बढ़ जाए तो एक या दो वर्ष के अंदर वह अतिरिक्त बिक्री से हुई अतिरिक्त आय से लिए गए ऋण का भुगतान कर सकता है. लेकिन यदि वह ऋण लेकर शोरूम का नवीनीकरण करे और बिक्री पूर्ववत रहे तो वह ऋण के बोझ से दबता जाता है, ब्याज का बोझ बढ़ता जाता है, उसकी आय घटती जाती है और अंतत: उसका दिवाला निकल सकता है. आज देश की यही परिस्थिति है. सरकार ऋण लेती जा रही है लेकिन अर्थव्यवस्था मंद है.

ऐसे में वित्त मंत्नी के सामने चुनौती है. उत्तरोत्तर ऋण लेकर वे अर्थव्यवस्था को नहीं संभाल पाएंगी. उन्हें सख्त कदम उठाने पड़ेंगे. आगामी बजट में सरकार को आयकर में और कटौती नहीं करनी चाहिए. बल्किआयकर में वृद्धि करनी चाहिए. इससे समृद्ध वर्ग पर टैक्स का बोझ बढ़ेगा लेकिन इनकी खपत में ज्यादा कटौती नहीं होगी. जीएसटी की दर में कटौती करनी चाहिए क्योंकि इससे आम आदमी को राहत मिलेगी और बाजार में मांग बढ़ेगी. आयात कर में भी वृद्धि करनी चाहिए जिससे कि आयातित माल देश में न आए और घरेलू उद्योगों का विस्तार और समृद्धि हो.

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