जयंतीलाल भंडारी
हाल ही में जीएसटी परिषद की 56वीं बैठक में देश में 22 सितंबर से लागू होने वाले वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) के नए ढांचे और नई दरों का ऐलान किया गया है. निस्संदेह जीएसटी कटौती भारत में आम आदमी के लिए राहत और देश की आर्थिक रफ्तार की दिशा में परिवर्तनकारी सुधार है. जीएसटी के बाद अब विकसित भारत के लक्ष्य के लिए ऊंची आर्थिक विकास दर के मद्देनजर नई पीढ़ी-अगली पीढ़ी के सुधारों के लिए आगे बढ़ने की जरूरत है. इन सुधारों के तहत जीवन में आसानी, कारोबार सुगमता, बुनियादी ढांचा सुधार, प्रशासन को सशक्त बनाने और अर्थव्यवस्था को मजबूती देने संबंधी सुधार शामिल हैं.
इसी परिप्रेक्ष्य में हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगली पीढ़ी के सुधारों की कार्य योजना की समीक्षा के बाद एक टास्क फोर्स बनाने की घोषणा की है. 14 सितंबर को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि नई पीढ़ी के सुधारों के तहत बीमा क्षेत्र में 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश( एफडीआई) की अनुमति देने वाला बीमा संशोधन विधेयक संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की संभावना है.
निश्चित रूप से जीएसटी सुधारों से घरेलू खपत के साथ स्वदेशी के रास्ते आत्मनिर्भरता बढ़ेगी. ये सुधार देश की विकास यात्रा में संरचनात्मक बदलाव का संकेत हैं. लेकिन अब जीएसटी सुधार के तहत कुछ और बातों पर ध्यान दिया जाना होगा. पेट्रोल और डीजल को भी जीएसटी व्यवस्था में शामिल करने की तैयारी करनी होगी. एक बार जब पेट्रोल और डीजल को जीएसटी प्रणाली में शामिल कर लिया जाएगा, तो इनके उपभोक्ताओं को तो लाभ होगा ही, लेकिन इनका उपयोग करने वाली प्रत्येक कंपनी को भी लाभ होगा, क्योंकि वे इन उत्पादों पर दिए गए कर को अपने अंतिम कर भुगतान के विरुद्ध समायोजित कर लाभ ले सकेंगी.
अब जीएसटी कर मूल्यांकन प्रणाली को व्यवस्थित करना भी आवश्यक है. इस बात पर ध्यान देना होगा कि जिस प्रकार इनकम टैक्स मूल्यांकन प्रणाली अब पूरी तरह से ऑनलाइन हो चुकी है और इसमें आम तौर पर किसी मानव हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती, वैसा ही अब जीएसटी प्रणाली को पूरी तरह ऑनलाइन और फेसलेस बनाने के लिए आगे बढ़ा जाना होगा.
यह बात भी महत्वपूर्ण है कि लोगों के जीवन को आसान बनाने व आर्थिक मजबूती के लिए दो स्लैब वाले जीएसटी ढांचे और एक अप्रैल 2026 से लागू होने वाली इनकम टैक्स व्यवस्था को सरल बनाने के बाद अब सरकार को आगामी पीढ़ी के सुधार एजेंडे पर तेजी से आगे बढ़ना होगा. सरकार को कृषि, बैंकिंग, श्रम, डिजिटलीकरण और वित्तीय क्षेत्र में सुधारों की डगर पर आगे बढ़ना होगा.
डिजिटलीकरण से वित्तीय समावेशन में मदद बढ़ानी होगी. घरेलू बाजार को और मजबूत बनाने के मद्देनजर लॉजिस्टिक लागत घटाने के लिए नई लॉजिस्टिक नीति के अनुरूप तेजी से आगे बढ़ना होगा. इनके साथ-साथ विनिवेश पर नए सिरे से जोर देने की आवश्यकता है. विनिवेश से प्राप्त राशि का एक हिस्सा सार्वजनिक ऋण की अदायगी में भी उपयोग किया जा सकता है.