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ब्लॉग: गालिब को फिल्म के जरिये जीवंत कर दिया था मंटो ने

By विवेक शुक्ला | Updated: December 27, 2023 11:47 IST

सआदत हसन मंटो 1940 के दरम्यान दिल्ली में ही थे। उन दिनों मंटो दिल्ली आकाशवाणी में नौकरी कर रहे थे। मंटो की शख्सियत पर मिर्जा गालिब की शायरी का गहरा असर था।

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ठळक मुद्देसआदत हसन मंटो 1940 के दरम्यान दिल्ली आकाशवाणी में नौकरी करते थेमंटो उस वक्त मोरी पर रहते थे, जरूर उस वक्त वो गालिब के घर और कब्र पर गए होंगेमंटो और कृष्ण चंदर उस दौरान जामा मस्जिद इलाके में उर्दू बाजार में घूमने-फिरने जाते थे

आप जब दिल्ली-6 की संकरी गलियों से गुजरते हुए मिर्जा गालिब के बल्लीमारान वाले घर या फिर वहां से आठ-दस किमी दूर उनकी बस्ती निजामुद्दीन में मौजूद कब्र के पास खड़े होते हैं तो यह ख्याल भी आता है कि इधर कौन-कौन उस सदियों के शायर को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आया होगा। बेशक, गालिब से जुड़े इन दोनों स्मारकों पर हाजिरी देने कथाकार सआदत हसन मंटो तो आए ही होंगे।

मंटो 1940 के दरम्यान दिल्ली में ही थे। उन दिनों मंटो दिल्ली आकाशवाणी में नौकरी कर रहे थे। मंटो की शख्सियत पर मिर्जा गालिब की शायरी का गहरा असर था। मंटो और कृष्ण चंदर जामा मस्जिद इलाके में उर्दू बाजार में घूमने-फिरने आते-जाते थे। मंटो रहते थे मोरी गेट में। ये नहीं हो सकता कि तब ये दोनों गालिब साहब के घर और कब्र पर न गए हों।

जामा मस्जिद से गालिब का बल्लीमारान वाला घर कोई बहुत दूर तो है नहीं। अब वहां पर उनका स्मारक बना हुआ है। मंटो और कृष्ण चंदर मोरी गेट से तांगे पर जामा मस्जिद आ जाया करते होंगे। फिर वहां से गालिब के घर पैदल ही चले जाते होंगे। जहां अब गालिब स्मारक है, वहां पर कोयले का टाल देखकर मंटो उदास जरूर होते होंगे।

बेशक, कभी न कभी मंटो गालिब की कब्र पर भी पहुंचे होंगे। वे गालिब की कब्र को देखकर भी उदास हुए होंगे। उनकी कहानी पर बनी मिर्जा गालिब फिल्म की सफलता के बाद फिल्म के निर्माता सोहराब मोदी ने गालिब की कब्र को संगमरमर के पत्थरों से ठीक करवाया था।

मंटो ने दिल्ली में रहते हुए किशन चंदर के साथ ‘बंजारा’ फिल्म की कहानी भी लिखी, जिसे सेठ जगत नारायण ने खरीदा था। मंटो ने दिल्ली में ही ‘मिर्जा गालिब’ कहानी लिखी। वे दिल्ली में तकरीबन दो साल रहने के बाद अपने पसंदीदा शहर मुंबई लौट गए। उन्हें ‘मिर्जा गालिब’ फिल्म की कहानी लिखते हुए गालिब के घर और कब्र पर बिताया वक्त जरूर याद आता होगा।

देश के विभाजन के बाद मंटो पाकिस्तान चले गए। उनका 1955 में निधन हुआ। तब देश भर में ‘मिर्जा गालिब’ फिल्म चल रही थी। ‘मिर्जा गालिब’ 1954 में रिलीज हुई तो उसकी स्पेशल स्क्रीनिंग राष्ट्रपति भवन में भी हुई। राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद और प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश की कई गणमान्य हस्तियों के साथ इसे देखा और पसंद किया।

फिल्म देखने के बाद पंडित नेहरू ने सोहराब मोदी से कहा, ‘आपने गालिब को वापस जीवित कर दिया है’ मिर्जा गालिब ने अखिल भारतीय सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक और हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रपति का रजत पदक जीता। बेशक, मिर्जा गालिब फिल्म ने उस अजीम शायर को जिंदा कर दिया था। इसका श्रेय मंटो को भी जाता है।

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