सर्वेक्षण बताता है कि बाकी वोटरों में से 35 फीसदी हिस्सा ऐसा है जो सरकार तो नहीं बदलना चाहता, लेकिन भाजपा सरकार के कामकाज से नाराज वह भी है। यानी सत्तर फीसदी लोग साफ तौर से इस सरकार को एक अच्छी सरकार नहीं मानते। ...
भाजपा महाराष्ट्र में शिवसेना में बगावत कर सरकार में आने में सफल रही। वहीं, बिहार में उसे नुकसान उठाना पड़ा। ऐसे ही दिल्ली में चीजें उसके हिसाब से अभी तक नहीं हो सकी हैं। कांग्रेस भी सड़कों पर उतर आई है। क्या ये सबकुछ भाजपा की चिंता को बढ़ा रहा है? ...
Rajpath for Kartavya Path: आजादी के बाद इस तरह के स्वदेशीकरण का कार्यक्रम लिया जाता, तो कम-से-कम पच्चीस साल लंबा एक ब्लू प्रिंट बनाना पड़ता. राष्ट्र-निर्माण की एक पूरी की पूरी पीढ़ी इसमें अपने आपको खपा देती. ...
विपक्षी दलों को नब्बे के दशक की मानसिकता से बाहर आना होगा. उन्हें पहले यह समझना चाहिए कि राज्यों के चुनाव में भाजपा को हराने भर से वे लोकसभा की जीत के दावेदार नहीं बन जाते. ...
बिहार में नीतीश कुमार ने और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी ने जिस तरह भाजपा की राजनीतिक चालबाजियों को नाकाम किया है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि राजनीतिक कौशल के जरिये भाजपा के प्रभुत्व का मुकाबला संभव है. ...
नीतीश-तेजस्वी को समुदाय और लोकतंत्र के इस रिश्ते पर गहरा यकीन है। इसलिए वे न तो उस मंत्री को हटाने के लिए तैयार हैं जिसे शपथ लेने के बजाय अदालत में समर्पण करना चाहिए था, और न ही उसे जिसके खिलाफ दीवानी अदालत में घोटाले का मुकदमा विचाराधीन है। ...
नीतीश-तेजस्वी को अगले डेढ़ साल तक सरकार इस तरह चलानी पड़ेगी कि महागठबंधन सरकार बदनाम नहीं हो पाए. ये दोनों नेता दबदबे वाले समुदायों से आते हैं. नीतीश कुर्मी समुदाय के पुत्र हैं, और तेजस्वी यादव समुदाय के. ...
पार्थ चटर्जी कोई छोटे-मोटे नेता नहीं हैं. वे तृणमूल के उपाध्यक्ष और महामंत्री भी रह चुके हैं. यह भी समझा जा सकता है कि पार्थ चटर्जी ने ये रकमें केवल अपने उपभोग के लिए जमा नहीं की होंगी. ...