Nayyara Noor: 'बुलबुल-ए-पाकिस्तान' के नाम से मशहूर नय्यरा नूर का निधन, भारत के इस राज्य में हुआ था जन्म, बेगम अख्तर और लता मंगेशकर की प्रशंसक

By सतीश कुमार सिंह | Published: August 21, 2022 05:59 PM2022-08-21T17:59:09+5:302022-08-21T18:00:33+5:30

Nayyara Noor: भारत-पाकिस्तान की साझी सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करने वाली मशहूर पाकिस्तानी गायिका नय्यरा नूर का एक लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है। उनके परिवार ने रविवार को यह जानकारी दी।

Legendary Pakistani singer Nayyara Noor passes away won hearts of millions border Born assam state of India Begum Akhtar and Lata Mangeshkar's admirer | Nayyara Noor: 'बुलबुल-ए-पाकिस्तान' के नाम से मशहूर नय्यरा नूर का निधन, भारत के इस राज्य में हुआ था जन्म, बेगम अख्तर और लता मंगेशकर की प्रशंसक

1971 में पाकिस्तानी टेलीविजन सीरियल से पार्श्व गायन की शुरुआत की थी और उसके बाद उन्होंने घराना और तानसेन जैसी फिल्मों में अपनी आवाज दी।

Highlightsसुरीली आवाज के कारण 'बुलबुल-ए-पाकिस्तान' की उपाधि दी गई।पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने नूर के निधन पर दुख व्यक्त किया।मीडिया खबरों के मुताबिक, नूर (71) का कराची में कुछ समय से इलाज चल रहा था।

कराचीः 'बुलबुल-ए-पाकिस्तान' के नाम से मशहूर वयोवृद्ध गायिका नय्यरा नूर का निधन हो गया है। डॉन के अनुसार नूर का शनिवार को संक्षिप्त बीमारी के कारण निधन हो गया। वह 71 वर्ष की थीं। नूर के भतीजे राणा जैदी ने भी ट्विटर पर साझा किया। सुरीली आवाज के कारण उन्हें 'बुलबुल-ए-पाकिस्तान' की उपाधि दी गई।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने नूर के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी मृत्यु संगीत जगत के लिए “एक अपूरणीय क्षति” है। उन्होंने ट्वीट किया, “ग़ज़ल हो या गीत, नय्यरा नूर ने जो भी गाया, उसे संपूर्णता के साथ गाया। नय्यरा नूर की मृत्यु के बाद पैदा हुई खाली जगह कभी नहीं भर पाएगी।”

मीडिया खबरों के मुताबिक, नूर (71) का कराची में कुछ समय से इलाज चल रहा था। उनके भतीजे रज़ा ज़ैदी ने ट्वीट किया, “अत्यंत दुख के साथ मैं अपनी प्यारी ताई नय्यरा नूर के निधन की खबर दे रहा हूं। अल्लाह उनकी रूह को सुकून दें।” गायकी के मामले में वह कानन बाला, बेगम अख़्तर और लता मंगेशकर की प्रशंसक थीं।

उन्होंने 1971 में पाकिस्तानी टेलीविजन सीरियल से पार्श्व गायन की शुरुआत की थी और उसके बाद उन्होंने घराना और तानसेन जैसी फिल्मों में अपनी आवाज दी। उन्हें फिल्म 'घराना' के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका घोषित किया गया और ‘निगार’ पुरस्कार से नवाज़ा गया। नूर को उनकी गज़लों के लिए याद किया जाएगा।

उन्होंने भारत-पाकिस्तान में गज़ल प्रेमियों के लिए कई महफ़िलों में प्रस्तुति दीं। उनकी प्रसिद्ध ग़ज़ल “ऐ जज्बा-ए-दिल घर मैं चाहूं” थी, जिसे प्रसिद्ध उर्दू कवि बेहज़ाद लखनवी ने लिखा था। उन्होंने डॉन अखबार को बताया था, “संगीत मेरे लिए एक जुनून रहा है, लेकिन मेरी पहली प्राथमिकता कभी नहीं। मैं पहले एक छात्र, एक बेटी थी और बाद में एक गायिका।

मेरी शादी के बाद मेरी प्राथमिक भूमिकाएं एक पत्नी और एक मां की रही हैं।” नूर को 2006 में “बुलबुल-ए-पाकिस्तान” के खिताब से नवाज़ा गया था। वर्ष 2006 में, उन्हें “प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस पुरस्कार” से सम्मानित किया गया और 2012 तक, उन्होंने पेशेवर गायिकी को अलविदा कह दिया था।

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