(डेविड सिमोन ली, प्रोफेसर, एटमॉस्फेरिक साइंस, एविएशन और जलवायु अनुसंधान समूह नेता, मैनचेस्टर मेट्रोपोलिटन विश्वविद्यालय)
मैनचेस्टर (ब्रिटेन), 19 जून (द कनवर्सेशन) दुनियाभर में इस्तेमाल होने वाले जीवाश्म ईंधन से होने वाले कुल उत्सर्जन का 2.4 प्रतिशत उत्सर्जन विमानन क्षेत्र से होता है जबकि इस क्षेत्र के दो-तिहाई तापीय असर उसके कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के अलावा किसी और पर निर्भर करता है।
वैश्विक ताप वृद्धि में विमानन क्षेत्र का सबसे ज्यादा हिस्सा ऊपरी वायुमंडल में उसके विमानों के उत्सर्जन का है। लेकिन एक नए अध्ययन में अनुसंधानकर्ताओं ने दिखाया कि केरोसीन के वैकल्पिक ईंधन मदद कर सकते हैं जिसे आमतौर पर विमान जला देते हैं।
अत्यधिक ऊंचाई पर जहां वातावरण पर्याप्त रूप से ठंडा और नम होता है तो कंट्रेल्स (कंडेंसेशन ट्रेल्स) बनते हैं। ये बर्फ के क्रिस्टल से बने बादल होते है जो तब निकलते हैं जब विमान का इंजन दबाव में होता है। आपने अक्सर विमान के उड़ान भरने के बाद साफ आसमान में उसके पीछे से सफेद, उभरी हुई लाइनें देखी होगी और वही कंट्रेल्स होती हैं।
जब अत्यधिक ऊंचाई पर वातावरण खासतौर से ठंडा और नम होता है तो लाइन के आकार के ये कंट्रेल्स कई घंटों तक रह सकते हैं और बादलों की ऐसी श्रृंखला बनाते हैं जो बाल के सफेद कणों की तरह दिखती है।
ये बादल सूर्य की विकिरण को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित करते हैं, वातावरण को ठंडा करते हैं लेकिन साथ ही वे पृथ्वी से परावर्तित इंफ्रारेड विकिरण को भी ले सकते हैं। इस प्रक्रिया से आखिरकार वायुमंडल गर्म होता है। इसे वैश्विक ताप वृद्धि में विमानन क्षेत्र का बड़ा योगदान माना जा सकता है जो कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन से लगभग दोगुना है।
विमानों के उड़ान भरने का भविष्य :
अभी विमान केवल केरोसीन या केरोसीन-जैव ईंधन के मिश्रण से उड़ान भर सकता है। नए अध्ययन के लेखकों ने पाया कि कम एरोमैटिक अशुद्धताओं के साथ ईंधन के मिश्रण से बर्फ के क्रिस्टल बनने से 50 से 70 फीसदी की कटौती की जा सकती है। नैपथलीन जैसी अशुद्धताओं को एरोमेटिक यौगिक कहा जाता है। नैपथलीन केरोसीन जैसे विमान के जीवाश्म ईंधन में प्राकृतिक रूप से मौजूद होता है।
इलेक्ट्रिक उड़ान जैसे अन्य समाधान बहुत कम दूरी के लिए ही संभव हो सकते हैं। यहां तक कि हाइड्रोजन ईंधन वाले विमान भी मध्यम दूरी ही तय कर सकते हैं। दोनों प्रौद्योगिकियों को और विकसित होने में एक दशक से अधिक का वक्त लगेगा।
पायलटों के लिए एक अन्य विकल्प यह है कि वह वायुमंडल के उन हिस्सों से बचे जहां कंट्रेल्स बनते हैं। सरकारों को जीवाश्म आधारित केरोसीन का इस्तेमाल चरणबद्ध तरीके से कम करने की आवश्यकता होगी और इसके लिए एयरलाइनों को अच्छा-खासा पैसा देना होगा। लेकिन विमानों द्वारा कार्बन उत्सर्जन कम करने का वक्त निकलता जा रहा है और एयरलाइन जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए इस प्रभावी विकल्प को अपना सकती हैं।
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