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जलवायु वित्त दान नहीं है, यह एक दायित्व, जिम्मेदारी, कर्तव्य और एक प्रतिज्ञा है: भूपेंद्र यादव

By भाषा | Updated: November 11, 2021 14:04 IST

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(अनुराधा घोषालाप)

ग्लासगो (स्कॉटलैंड), 11 नवंबर (एपी) भारत के पर्यावरण एवं जलवायु मंत्री भूपेंद्र यादव का कहना है कि विकासशील देशों को जलवायु वित्त प्रदान करना अमीर देशों का ''एक दायित्व, जिम्मेदारी, कर्तव्य और एक प्रतिज्ञा'' है तथा उन्हें सालाना 100 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाने का अधूरा वादा पूरा करना चाहिए।

भूपेंद्र यादव ने ‘एसोसिएटेड प्रेस’ को बुधवार को दिये एक साक्षात्कार में कहा कि स्कॉटलैंड के ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन को सफल बनाने के लिए वित्त की कमियों को दूर करना सर्वोपरि है।

यादव ने कहा, ''मेरा मानना ​​​​है कि सबसे बड़ी जिम्मेदारी ... विकसित देशों पर है। क्योंकि अगर कोई मतभेद बाकी है तो वह जलवायु वित्त के लिए कार्रवाई को लेकर है।''

यादव शुक्रवार को समाप्त होने वाले इस दो सप्ताह के सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं। सम्मलेन में एक मसौदा समझौते पर बात चल रही है, जिसमें ''अफसोस के साथ'' उल्लेख किया गया है कि अमीर राष्ट्र 2020 तक गरीब देशों को जलवायु वित्त के रूप में हर साल 100 अरब अमेरिकी डॉलर प्रदान करने के अपने वादे को पूरा करने में विफल रहे हैं।

वर्तमान में, अमीर राष्ट्र सालाना लगभग 80 अरब डॉलर जलवायु वित्त प्रदान करते हैं। गरीब देशों का कहना है कि स्वच्छ ऊर्जा प्रणालियां विकसित करने और बिगड़ती जलवायु परिस्थतियों को अनुकूल बनाने के लिए यह राशि पर्याप्त नहीं है। अकेले भारत का कहना है कि उसे 2.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है।

यावद ने कहा, ''जलवायु वित्त दान नहीं है। यह एक दायित्व, जिम्मेदारी, कर्तव्य और एक प्रतिज्ञा है।''

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने में विकासशील दुनिया की मदद करना अंतरात्मा की आवाज है, जो ''हर व्यक्ति के दिल में होनी चाहिए। लेकिन यह विशेष रूप से उन लोगों के दिलों में होनी चाहिये, जिनके पास दूसरों की तुलना में अधिक ऐतिहासिक जिम्मेदारी है।''

मंत्री ने कहा कि भारत की आबादी लगभग 1.4 अरब है। दुनिया की आबादी की पांचवा हिस्सा भारत में रहता है, फिर भी उत्सर्जन में इसका हिस्सा केवल पांच प्रतिशत ही है। भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल है जो 2030 से पहले अपना जलवायु लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

उत्सर्जन विश्लेषकों का कहना है कि भारत के पास संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता के लक्ष्य यानी वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने में मदद के लिये और अधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्य होने चाहिए।

भारत ने हाल में घोषणा की थी कि वह 2070 तक वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के प्रवेश बंद कर देगा। साथ ही, उसने अपनी आधी ऊर्जा जरूरतों को स्वच्छ ऊर्जा से पूरा करने और 2030 तक अपने उत्सर्जन वृद्धि पर लगाम लगाने का भी वादा किया है। लेकिन उन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भारत जैसे विकासशील देशों को वित्त पोषण की जरूरत है।

भारत मानव-जनित उत्सर्जन के सबसे बड़े एकल स्रोत यानी कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने का इच्छुक नहीं रहा है। कोयला देश में बिजली उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है जहां लाखों लोगों के पास अभी भी बिजली तक पहुंच नहीं है। साथ ही यह ऊर्जा विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है।

बुधवार को सम्मेलन में, कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की प्रक्रिया में तेजी लाने का आह्वान किया गया। हालांकि इसकी कोई समयसीमा निर्धारित नहीं की गई।

कोयले के इस्तेमाल पर रोक लगाने के बारे में पूछे जाने पर यादव ने कहा, ''फिलहाल हम किसी भी चीज के इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक नहीं लगा रहे। हम अपनी राष्ट्रीय जरूरतों के मुताबिक हरित ऊर्जा की ओर बढ़ेंगे।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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