जम्मू: कश्मीर की आवाम हर दिन लगभग 5 करोड़ रुपये का तरबूज खा रही है। जी हां, यह बात सोलह आने सच सच है कि कश्मीर ने तरबूज खाने का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है। वैसे ये कोई पहला रिकॉर्ड नहीं है, इससे पहले भी कश्मीरी लोगों के नाम कई और भी रिकॉर्ड दर्ज हो चुके हैं।
तरबूज से पहले कश्मीर में रिकॉर्ड तोड़ मीट और दवाईयों की भी खपत हो रही थी। कश्मीरियों ने खाने में अब मीट के साथ-साथ तरबूज को भी जोड़ लिया है। प्रतिदिन तरबूज खपत के मामले में कश्मीर पूरे देश में पहले स्थान पर है।
यह पूरी तरह से सच है की कश्मीरियों के बीच रमजान के दिनों में प्रतिदिन 100 ट्रक से अधिक तरबूज की खपत हो रही है, जिसकी कीमत लगभग 5 करोड़ रुपये के करीब बताई जा रही है।
कश्मीर की फ्रूट एंड वेजिटेबल एसोसिएशन के प्रधान बशीर अहमद बशीर कि मानें तो हफ्ते भर पहले तरबूज की मांग प्रतिदिन 50 से 60 ट्रक थी, जो अब बढ़कर 100 ट्रकों तक जा पहुंची है।
बताया जा रहा है कि एक ट्रक में 15 से 20 टन तरबूज आ रहे हैं। हालांकि सरकारी तौर पर तरबूज की कीमत 30 रूपए प्रति किलो तय की गई है पर यह कश्मीर में 60 से 70 रूपए प्रति किलो बिक रहा है। खाद्य आपूर्ति विभाग के डायरेक्टर अब्दुल सलाम मीर कहते हैं कि लोगों द्वारा बढ़े दाम की शिकायत मिलने पर फल विक्रेताओं पर जुर्माना भी लगाया जाता है।
कश्मीर में सिर्फ तरबूज की खपत ही नहीं बल्कि मीट की खपत भी एक रिकार्ड बना चुकी है। मीट की खपत का रिकार्ड आज तक कोई तोड़ नहीं पाया है। प्रतिवर्ष कश्मीरियों के बीच लगभग 51 हजार टन मीट की खपत होती है। जबकि इसमें मछली को शामिल नही किया गया है।
कश्मीर में प्रतिवर्ष 2.2 मिलियन भेड़-बकरियों को कुर्बान किया जाता है। जबकि 1.2 बिलियन मांस प्रदेश के बाहर से मंगवाया जाता है। पिछली सर्दियों में कश्मीर में मीट की किल्लत का ही परिणाम था कि सरकारी तौर पर तयशुदा कीमतों से अधिक दाम पर यहां मीट की बिक्री हो रही थी।
जिसके बाद खाद्य विभाग की ओर से कड़ाई भी की गई थी लेकिन उस कार्रवाई से भड़के मीट दुकानदारों ने लगभग एक महीने तक अपने कारोबर को बंद कर दिया था, जिससे कश्मीरियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा था।
मीट के अलावा कश्मीर दवाओं की खपत में भी अन्य राज्यों के मुकाबले कहीं ज्यादा आगे है। एक अनुमान के अनुसार कश्मीर में 1200 से 1500 करोड़ रुपये की दवाओं की खपत प्रतिवर्ष होती है। इनमें सबसे अधिक डिप्रेशन की दवाईयों की मांग है।
दरअसल गुजरे 3 दशकों के आतंकवाद के दौरान बड़ी संख्या में कश्मीरी अवसाद की स्थिति का सामना कर रहे हैं और यही कारण है कि वो बिना डाक्टरी सलाह के अवसाद दूर करने वाली दवाईयों का सेवन भारी मात्रा में कर रहे हैं।