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निर्भया केस: तीसरी बार टली फांसी तो निर्भया की मां बोली फेल है सिस्टम

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: March 2, 2020 19:32 IST

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16-17 दिसंबर, 2012 को निर्भया के साथ जघन्य अपराध के लिये चार दोषियों-मुकेश कुमार सिंह, पवन गुप्ता, विनय कुमार शर्मा और अक्षय कुमार-को फांसी अगले आदेश तक नहीं होगी.  दिल्ली की एक अदालत ने 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार एवं हत्या मामले के चार दोषियों की फांसी सोमवार को अगले आदेश तक के लिए टाल दी.  निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले के दोषियों के खिलाफ तीन मार्च को फांसी देने के लिए 17 फरवरी को नया डेथ वारंट जारी किया था. चारों दोषियों को मंगलवार 3 मार्च को सुबह छह बजे फांसी दी जानी थी.  अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने कहा कि ऐसे में जब दोषी पवन कुमार गुप्ता की दया याचिका लंबित है, फांसी की सजा की तामील नहीं हो सकती.  कोर्ट ने फांसी रोकने का आदेश पवन की उस अर्जी पर दिया जिसमें उसने फांसी पर रोक लगाने का अनुरोध किया था क्योंकि उसने राष्ट्रपति के सामने सोमवार को एक दया याचिका दायर की है. फांसी टलने पर निर्भया की मां आशा देवी ने गुस्सा ज़ाहिर करते हुए कहा कि अदालत उन्हें फांसी देने में इतनी देर क्यों कर रही हैं. बार-बार फांसी का टलना सिस्टम की नाकामी है. आशा देवी कहती है कि हमारा पूरा सिस्टम अपराधियों को सपोर्ट करता है. ये तीसरी बार है जब निर्भया को दोषियों की फांसी टली है. सबसे पहले फांसी देने की तारीख 22 जनवरी तय की गई थी. लेकिन 17 जनवरी के अदालत के आदेश के बाद इसे टालकर एक फरवरी सुबह छह बजे किया गया था. फिर 31 जनवरी को निचली अदालत ने अगले आदेश तक चारों दोषियों की फांसी की सजा पर रोक लगा दी थी. इसी बीच सुप्रीम कोर्ट इसी केस से जुड़ी एक और याचिका खारिज कर दी . इसमें  2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के दोषियों को अंगदान करने तथा मेडिकल रिसर्च  के लिये देने का विकल्प उपलब्ध कराने का तिहाड़ जेल प्रशासन को निर्देश देने की मांग की गयी थी.   जस्टिस आर भानुमति और जस्टिस ए एस बोपन्ना की पीठ ने कहा, ‘‘जनहित याचिका के माध्यम से आप ऐसा निर्देश देने का अनुरोध नहीं कर सकते. कोर्ट ने कहा कि अगर दोषी ऐसा करना चाहते हैं, वे स्वयं या अपने परिवार के  के माध्यम से इस बारे में अपनी इच्छा व्यक्त कर सकते हैं. फिर भी याचिकाकर्ता बंबई हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज माइकल एफ सल्दाना के वकील ने अपनी दलीलें देना जारी रखा तो पीठ ने कहा कि पूर्व न्यायाधीश की याचिका गलत अवधारणा पर आधारित है. पीठ ने कहा, ‘‘किसी व्यक्ति को फांसी देना परिवार के लिये बहुत ही दुखद है. याचिकाकर्ता चाहते हैं कि दोषियों के शव के टुकड़े किये जायें.  थोड़ी तो मानवीय संवेदना रखिये. अंगदान स्वेच्छा से होता है.    
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