कहानी वही पुरानी है। सिर्फ किरदारों के नाम बदल गए हैं। दिल्ली के नौजवान अंकित सक्सेना की आंखों में हजारों सपने थे और दिल में था एक लड़की के लिए बेइंतहा प्यार। लड़की का नाम सलीमा था। दोनों जल्द ही शादी करने वाले थे। इश्क का कोई मजहब नहीं होता। लेकिन इश्क करने वाले भूल जाते हैं कि नफरत करने वालों का भी कोई मजहब नहीं होता। वे अपने ही मां-बाप और भाई-बहन हो सकते हैं।जिस वक्त सलीमा दिल्ली के एक मेट्रो स्टेशन पर अंकित का इंतजार कर रही थी, उसी वक्त उसके मां-बाप और मामा उसके सपनों के राजकुमार का गला रेत रहे थे। जी हां वेलेंटाइन डे दस दिन पहले प्रेमी नौजवान अंकित तड़पा-तड़पाकर मार डाला गया। अंकित के हत्यारों में उसकी होनेवाली पत्नी का नाबालिग भाई भी था। कहां से आई एक 15-16 साल के लड़के के मन में इतनी नफरत?