वैसे तो बिहार राज्य अपने अलग अंदाज और लिट्टी-चोखा के लिए जाना जाता है लेकिन यहां एक ऐसा स्थल भी है जिससे ये सिर्फ देश ही नहीं दुनिया भर में जाना जाता है।आज बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर हम आपको बिहार के सबसे महत्वपूर्ण बोधगया की सैर कराने जा रहे हैं।ये दुनिया का ऐसा महत्वपूर्ण स्थल है जो पूरी तरह बौद्ध धर्म को समर्पित है। कहतेहैं कि बिहार में कपिलवस्तु में एक बरगद के पेड़ के नीचे ही राजकुमार गौतम को 'बौद्ध ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी और वे महात्मा बुद्ध के नाम से पूरी दुनिया में जाने गए। बोधगया के दर्शन करने यहां पूरे साल पर्यटकों का जमावड़ा लगा होता है।
बिहार में ही हुआ था पहली बार बौध धर्म का प्रचार
महात्मा बुद्ध ने अपने ज्ञान और उपदेश से बिहार में पहली बार बौद्ध धर्म का प्रचार किया। बुद्ध का सादा जीवन, उनका त्याग और लोगों के प्रति उनकी सहानुभूति के कारण लोगों ने बौद्ध धर्म को अपनाना शुरू किया। महात्मा बुद्ध की मृत्यु के बाद सम्राट अशोक ने फिर से बौद्ध धर्म का प्रचार किया और कई मठ बनवाए। साथ ही कई स्तंभ भी बनवाए, जिसमें अशोक स्तम्भ सबसे प्रसिद्ध है। यह मठ आने वाले पर्यटकों को बुद्ध की जीवनी के बारे में जानकारी देते हैं। बोध गया का महाबोधी मंदिर और बोधी पेड़ वहां के गौरव ही नहीं, धरोहर भी हैं।
2500 साल पुराना है स्तूप
बोध गया का महाबोधी मंदिर वास्तु शिल्प का बेजोड़ उदाहरण है। मंदिरों को पिरामिड और बेलना आकार में बनाया गया है। 170 फीट ऊंचे इस मंदिर का बेंसमेंट 48 वर्ग फीट का है। मंदिर के ऊपर छत्र धर्म का प्रतीक माने जाते हैं। मंदिर के अंदर भगवान बुद्ध की भव्य प्रतिमा है, जिसे देख कर लोग अपने जीवन में सादगी और सद्भावना को ग्रहण करते हैं। मंदिर के पूरे आंगन में कई स्तूप बने हैं। जहां लोग मन्नत मांगने आते हैं। 2500 साल पुराना यह स्तूप अपने आप में बेजोड़ कारीगरी का उदाहरण है।
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बोधी पेड़ की है खास मान्यता
देश-विदेश से आये पर्यटक बोधगया में बोधी पेड़ की पूजा अर्चना करते हैं।कहते है बोधी पेड़ के नीचे ही भगवान बुद्ध को निर्वाण की प्राप्ति हुई थी फिर बौद्ध धर्म का प्रचार हुआ था। बुद्ध पूर्णिमा के दिन यहां मेला लगता है और उसी में इस वृक्ष की पूजा की जाती है। बौद्ध धर्म के अनुयायी खास तौर से इस पेड़ की पूजा करते हैं ताकि वह महात्मा बुद्ध के दिखाए पद चिन्हों पर चल सकें।
यहां होता है पिंडदान
बोधगया से 12 किलोमीटर दूर है प्रेतशीला पहाड़, जो गया की बेहद खूबसूरत जगह है। इस पहाड़ के नीचे है ब्रहम कुंड जिसमें स्नान कर लोग पिंडदान करते हैं। इस पहाड़ पर स्थित है 1787 में बना अहिल्या बाई मंदिर, जिसे इंदौर की रानी अहिल्या बाई ने बनवाया था। इस मंदिर की बेहतरीन कारीगरी और शानदार मूर्तिकला को देखने देश−विदेश से पर्यटक आते हैं।
चीन में बनी है बुद्ध की सबसे बड़ी प्रतिमा
अगर आप ऐसा सोच रहे हैं कि सिर्फ भारत में ही महात्मा बुद्ध की परतिमा है तो आप बिल्कुल गलत हैं। महात्मा बुद्ध की सबसे बड़ी प्रतिमा चीन में स्थित है। जिसे एक विशाल पहाड़ काटकर बनाया गया है। इस विशालकाय बौद्ध प्रतिमा का निर्माण 713 A.D. में शुरू हो चुका था। इस प्रतिमा में बुद्ध गंभीर मुद्रा में हैं। प्रतिमा में बुद्ध का हाथ उनके घुटनों पर है और वो टकटकी लगाकर नदी को देखे जा रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब बुद्ध की सिखाई बातें लोग भूलने लगेंगे, तब मैत्रेय अवतार में बुद्ध फिर से धरती पर आएंगे। 233 मीटर लम्बी इस प्रतिमा में उनके कंधे 28 मीटर चौड़े हैं और उनकी सबसे छोटी उंगली इतनी बड़ी है कि उसपर एक आदमी आराम से बैठ सकता है। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि उनकी भौहें 18 फीट लम्बी हैं.
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बड़ी अनोखी है इसे बनाने की दास्तां
बुद्ध की इस सबसे बड़ी प्रतिमा को बनाने के पीछे जो कारण है वो अपने आज में अजीब लगता है। असल में इसे बनाने में एक चीनी सन्यासी हैतोंग का आईडिया था। इसके पीछे उसकी धार्मिक आस्था तो जुड़ी थी साथ ही एक और समस्या थी जिसके कारण ये काम किया गया था। जिस नदी के किनारे ये बुद्ध की प्रतिमा बनी है उस नदी का वेग बहुत ज्यादा था और प्रतिमा बनाते समय जो पत्थर कट कर नीचे नदी में गिरते उससे नदी का वेग कम होने की उम्मीद में इस प्रतिमा का निर्माण किया गया। उसने सोचा कि भगवान बुद्ध पानी के तेज बहाव को शांत कर देंगे, जिससे नदी में आने-जाने वाली नावों को कोई क्षति नहीं होगी.