हेमधर शर्मा का ब्लॉग: बदलाव सिर्फ प्रकृति या राजनीति में ही नहीं हो रहा. सुख-समृद्धि की हमारी परिभाषा भी शायद बदल रही है. अब महंगे ब्रांड्स अमीरों का स्टेटस सिंबल नहीं बन रहे, क्योंकि उनकी हूबहू सस्ती नकल आम आदमी की पहुंच के भी भीतर है. ...
जब तक बाबा को सजा नहीं मिली थी, चुनावी-राजनीति के नफे-नुकसान के लिए राजनीतिक दलों के नेता खुले आम उससे ‘आशीर्वाद’ प्राप्त किया करते थे. अब खुलेआम ऐसा करने से भले ही राजनेता बच रहे हों, पर बाबा के अनुयायियों की लाखों की संख्या देखते हुए वह इस ‘प्रभाव’ ...
पाखंडी का शाब्दिक अर्थ होता है होना कुछ, और दिखाना कुछ. चुभता भले ही हो यह शब्द, लेकिन क्या हम ऐसा ही समाज नहीं बनाते जा रहे हैं? ‘एनिमल’ जैसी फिल्मों का बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड तोड़ना क्या इस बात का प्रमाण नहीं है कि ‘नायक’ की हमारी परिभाषा बदल रही है? व ...
पांच साल में एक बार वोट देना ही पर्याप्त नहीं है, इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है कि हमारे वोट से नेता बना व्यक्ति अपने वादों और दावों पर खरा उतर रहा है कि नहीं। ...