भारतीय राजनीति में जनप्रतिनिधियों के खरीद-फरोख्त को देखते हुए 1985 में पहली बार इस कानून को राजीव गांधी सरकार में लाया गया। इस कानून के तहत पार्टी व्हिप का उल्लंघन करने या दल बदलने पर सांसद-विधायक की सदस्यता रद्द हो जाती है। इसके अलावा दल-बदल निरोधक कानून (एंटी डिफेक्शन लॉ) के अनुसार सिर्फ एक व्यक्ति ही नहीं, अगर सामूहिक रूप से भी दल बदला जाता है तो उसे असंवैधानिक करार दिया जाएगा। दल बदलने के लिए पार्टी के दो तिहाई सदस्य अनिवार्य हैं Read More
नायडू ने यहां प्रेस क्लब में 'नए भारत में मीडिया की भूमिका' पर व्याख्यान देते हुए कहा कि दल-बदल रोधी कानून में कुछ खामियां हैं जिन्हें दूर करने की जरूरत है, ताकि जनप्रतिनिधियों के दल-बदल को रोका जा सके। ...
अब आम आदमी के मन में यह सवाल पैदा होना स्वाभाविक है कि ऐसी स्थिति में दल-बदल विरोधी कानून की भूमिका क्या है? सच कहें तो मौजूदा स्थिति में इस कानून की कोई भूमिका नहीं है. ...
राज्य में ऐन वक्त पर पार्टी बदलने वाले शेष 11 उम्मीदवार पूरी तरह धराशायी हो गये. दरअसल 2019 के चुनाव से पहले विभिन्न पार्टियों में भगदड की स्थिति थी. दल बदलने वाले लगभग सभी लोग टिकट कटने से नाराज थे. इनमें राधाकृष्ण किशोर व फूलचंद मंडल जैसे वर्तमान व ...