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Somvati Amavasya: संतान की लंबी आयु के लिए रखा जाता है सोमवती अमावस्या व्रत, जानें कहानी और पौराणिक महत्व

By रोहित कुमार पोरवाल | Updated: October 25, 2019 16:33 IST

Somvati Amavasya 2019: आम तौर पर सोमवती अमावस्या वर्ष में एक या दो बार आती है लेकिन इस बार यानी 2019 में सोमवती अमावस्या तीन बार है। इस बार की सोमवती अमावस्या 28 अक्टूबर को भी है। 

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ठळक मुद्देहिंदी पंचांग के अनुसार हर महीने के कृष्ण पक्ष की पंद्रहवें दिन यानी आखिरी तिथि को अमावस्या कहते हैं। जब यह तिथि सोमवार को पड़ती है तो इसे सोमवती अमावस्या कहते हैं।भारतीय ग्रंथों में सोमवती अमावस्या व्रत को अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत भी कहा गया है। पीपल के पेड़ को अश्वत्थ और परिक्रमा करने को प्रदक्षिणा कहा जाता है।

Somvati Amavasya: हिंदी पंचांग के अनुसार हर महीने के कृष्ण पक्ष की पंद्रहवें दिन यानी आखिरी तिथि को अमावस्या कहते हैं। जब यह तिथि सोमवार को पड़ती है तो इसे सोमवती अमावस्या कहते हैं। शास्त्रों और पुराणों में सोमवती अमावस्या का विशेष महत्व बताया गया है। सोमवती अमावस्या को मौनी अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन मौन व्रत रखने से मन साफ होता है।

कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दीपावली या दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। आम तौर पर सोमवती अमावस्या वर्ष में एक या दो बार आती है लेकिन इस बार यानी 2019 में सोमवती अमावस्या तीन बार है। इस बार की सोमवती अमावस्या 28 अक्टूबर को भी है। 

भारतीय ग्रंथों में सोमवती अमावस्या व्रत को अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत भी कहा गया है। पीपल के पेड़ को अश्वत्थ और परिक्रमा करने को प्रदक्षिणा कहा जाता है। भौतिक विज्ञान की दृष्टि से पीपल का पेड़ 24 घंटे ऑक्सीजन देता है और धर्म ग्रंथों में इसकी आध्यात्मिक उपयोगिता बताई गई है।

कहा जाता है कि पीपल के पेड़ में कई देवी-देवताओं का वास होता है। इसलिए सोमवती अमावस्या का व्रत रखने वालों को पीपल के पेड़ की परिक्रमा करनी चाहिए। भारत में महिलाएं अपनी संतान लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती हैं और पीपल के पेड़ की पूजा कर परिक्रमा करती हैं। 

सोमवती अमावस्या की लोक कथा

सोमवती अमावस्या को लेकर कई तरह की लोक कथाएं हैं। उनमें से एक लोक कथा यह है। कहा जाता है एक दंपति के सात पुत्र और एक पुत्री थी। सातों लड़कों की शादियां हो चुकी थीं लेकिन बेटी की शादी नहीं हो पा रही थी। एक दिन उस दंपति के यहां एक भिक्षु भिक्षा मांगने आया। बेटी की मां ने उससे बेटी का हाथ देखकर शादी का योग पूछा। भिक्षु लड़की हाथ देखकर बिना कुछ कहे वहां से चला गया। 

महिला को बेचैनी हुई और उसने योग्य ब्रह्मण को बेटी की जन्मकुंडली दिखाई। ब्राह्मण ने जन्मकुंडली देखकर कहा कि लड़की के हाथ में शादी की रेखा नहीं है। 

उपाय पूछने पर ब्राह्मण ने बताया कि बेटी को सिंघल द्वीप में रहने वाली एक धोबिन के माथे का सिंदूर लगाकर सोमवती अमावस्या का व्रत रखना होगा, तब जाकर शादी का योग बनेगा। 

मां ने बेटी को छोटे बेटे के साथ सिंघल द्वीप भेज दिया। समंदर के पास दोनों एक पेड़ के नीचे सुस्ता रहे थे तभी उनकी नजर एक घोंसले पर गई। एक सांप ने घोंसले पर हमला कर दिया था। भाई-बहन ने सांप से उस घोंसले की रक्षा की। घोंसले में गिद्ध के बच्चे थे। नर और मादा गिद्ध जब लौटकर आए तो घोंसले में अपने बच्चों को सुरक्षित पाकर खुश हुए और उन्हें बचाने वाले उन भाई-बहन की मदद की। गिद्ध ने उन्हें धोबिन के घर जाने का रास्ता बताया। 

आखिर वे धोबिन के घर पहुंच गए। कई महीने तक लड़की ने धोबिन की सेवा की। सेवा से खुश होकर धोबिन ने लड़की के माथे पर सिंदूर लगाया। 

घर लौटते वक्त लड़की ने रास्ते में पड़ने वाले एक पीपल के पेड़ की पूजा की और उसकी परिक्रमा भी की। उस दिन सोमवती अमावस्या थी। लड़की ने सोमवती अमावस्या का व्रत रखा और इस प्रकार उसकी शादी का योग बन गया। 

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