Shani Dev Mandir: शास्त्रों में शनि देव को न्याय का देवता कहा गया है। ऐसी मान्यता है कि वे हर शख्स को कर्मों के आधार पर अपना फल देते हैं। यही कारण है कि ज्योतिष शास्त्र में शनिदेव को न्यायधीश कहा गया है। शनि देव के बारे में इनके बारे में कहा जाता है कि अगर उनकी वक्र दृष्टी किसी पर पड़ जाए तो उसके लिए जीवन बेहद कठिन हो जाता है। उसे जीवन में परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसलिए ये कोशिश हर जातक करता है शनि देव का प्रकोप उन पर नहीं पड़े।
शनि देव के भारत में कई मंदिर भी जगह-जगह मौजूद हैं और कुछ बेहद प्रसिद्ध भी हैं। इसमें महाराष्ट्र का शनि शिंगणापुर, उत्तर प्रदेश के कोसीकलां का शनि मंदिर, मध्य प्रदेश के मुरैना का शनिश्चरा मंदिर, आदि शामिल हैं। आज लेकिन हम शनिदेव के ऐसे प्राचीन मंदिर की बात करने जा रहे हैं जो उत्तराखंड में हैं।
उत्तराखंड में 7 हजार फुट की ऊंचाई पर शनि मंदिर
शनिदेव का ये प्राचीन मंदिर देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड के उत्तरकाशी के खरसाली गांव में है। इस मंदिर को शनिदेव धाम भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि मान्यता है कि शनि देव यहां पर साल के 12 महीने विराजमान रहते हैं।
मंदिर करीब 7000 फुट की उंचाई पर बना है। इस मंदिर में एक अखंड ज्योति भी है जिसे लेकर मान्यता है कि वो सैकड़ों साल से जल रही है। इस मंदिर का निर्माण पत्थर और लकड़ी से किया गया है और ये पांच मंजिला है। हालांकि बाहर से देखने पर इसके पांच मंजिला होने के बारे में पता नहीं चलता है।
शनिदेव की कांस्य की मूर्ति, पांडवों ने कराया था निर्माण
इस मंदिर में शनिदेव की कांस्य की मूर्ति विराजमान है। मंदिर की अखंड ज्योति को लेकर खास मान्यताएं हैं। कहते हैं कि इसके दर्शन मात्र से ही जीवन के सारे कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
साथ ही साधक को शनि दोष से भी छुटकारा मिल जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने करवाया था।
खास बात ये भी कि इसी मंदिर से कुछ किलोमीटर दूर मां यमुना का मंदिर यमुनोत्री धाम भी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यमुना दरअसल शनि देव की बहन है। ऐसे में दीपावली के दो दिन बाद भाई दूज पर यमुना की मूर्ति पूजा के लिए शनि देव के मंदिर खरसाली लाई जाती है।
मान्यता है कि शनि इस मौके पर बहन को अपने साथ खरसाली ले आते हैं। इस दौरान सर्दियों में यमुनोत्री धाम के कपाट बंद हो जाते हैं। ऐसे में उनकी भी पूजा यहीं खरसाली में की जाती है। इस मौके पर विशेष आयोजन भी किए जाते हैं।