Lord Ganesh Ekadant: कैसे टूटा गणेश का एक दांत, क्यों कहे जाते हैं 'एकदंत', जानिए पूरी कथा
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: February 14, 2024 06:55 AM2024-02-14T06:55:20+5:302024-02-14T06:55:20+5:30
भगवान गणेश भक्तों के बीच विनायक, गणपती और लंबोदर जैसे कई नामों से जाने जाते हैं। शिवपुत्र के इन्हीं उपनामों में से एक प्रसिद्ध नाम 'एकदंत' भी है।
Lord Ganesh Ekadant:भगवान गणेश भक्तों के बीच विनायक, गणपती और लंबोदर जैसे कई नामों से जाने जाते हैं। शिवपुत्र के इन्हीं उपनामों में से एक प्रसिद्ध नाम 'एकदंत' भी है। जी हां, गणेश की प्रतिमा या तस्वीर को दौर से देखिये, उनका एक दांत टूटा हुआ नजर आयेगा और इसी कारण से गणेश को 'एकदंत' कहा जाता है।
वैसे गणेश जी के दांत टूटने के पीछे कई तरह की पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं और उन्हें कथाओं में कुछ प्रचलित मान्यताओं के बारे में हम यहां पर आपको बता रहे हैं। तो आइये जानते हैं कि पार्वती पुत्र भगवान गणेश क्यों कहलाये 'एकदंत'।
दरअसल, भगवान गणेश के दांत टूटने के बारे में सबसे प्रचलित मान्यता के बारे में सबसे प्रसिद्ध कथा का संबंध महाभारत की रचना से जुड़ा है। असल में मान्यता है कि जब वेदव्यास महाभारत की रचना कर रहे थे, तो उन्हें महाभारत को कलमबद्ध करने के लिए किसी कुशल लेखक की तलाश थी। इसी क्रम में गणेश देवताओं में सबसे विद्वान और अग्रणी माने जाते थे।
गणेश जी महाभारत लिखने के लिए तैयार हो गये लेकिन शर्त रखी गई कि जब वेदव्यास महाभारत का कथावाचन करेंगे तो गणेश जी बिना नहीं रूके लिखते रहेंगे। गणेश जी ने शर्त स्वीकार करके वेदव्यास की वाणी का अनुसरण करते हुए लिखना प्रारंभ किया।
कहते हैं कि गणेश जी पूरी रफ्तार से वेदव्यास की बातों को सुनते हुए महाभारत लिख रहे थे तभी तेजी से लिखते हुए उनकी कलम बीच में ही टूट गई पर चूंकि शर्त यही थी कि गणेश जी लेखनी को अवरुद्ध नहीं करेंगे। इसलिए गणेश जी ने फौरन अपना एक दांत तोड़ा और उसे कलम बनाकर लिखना महाभारत लिखना शुरू कर दिया। ऐसे में जब वेदव्यास ने ये देखा तो वो गणेश जी के प्रति श्रद्धा से भर गये और तभी से गणेश जी को 'एकदंत' कहा जाता है।
वहीं महाभारत की मान्यता के इतर 'एकदंत' से जुड़ी एक दूसरी मान्यता भी है, जिसके अनुसार परशुराम से युद्ध के दौरान गणेश जी का दांत टूट गया था। असल में प्रसंग में यह कहा जाता है कि एक बार परशुराम जी, भगवान शिव से मिलने के लिए कैलाश पर्वत पहुंचे थे, जहां द्वार गणेश जी पहरा दे रहे थे। चूंकि पिता शिव की आज्ञा नहीं थी इसलिए गणेशजी ने दरवाजे पर ही परशुराम को अंदर जाने से रोक दिया।
कहते हैं कि जमदग्नि पुत्र परशुराम ने गणेश जी से बहुत विनती की कि वो उन्हें अंदर भगवान शिव के पास जाने दें, लेकिन गणेश जी के सामने उनकी सुनवाई पर ध्यान नहीं दिया गया। जिससे परशुराम क्रोधित हो गये और उन्होंने गुस्से में गणेश जी को युद्ध के लिए चुनौती दे डाली। जिसे गणेश जी ने स्वीकार कर लिया। उसक बाद गणेश जी और परशुराम में बेहद भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध के कारण पूरा कैलाश कांप उठा। तीनों लोकों में कंपन होने लगा।
कैलाश से दूर क्षीर सागर में बैठे भगवान विष्णु की शेषनाग की शैय्या भी डोलने लगी। युद्ध में फरसाधारी परशुराम ने गणेश जी पर ऐसा वार किया वो खुद को बचाने के चक्कर में अपना दांत हमेशा के लिए गंवा बैठे। युद्ध का शोर सुनकर स्वयं महादेव वहां उपस्थित हुए और उन्होंने देखा कि फरसे के वार से गणेश जी का एक दांत टूटा है।
परशुराम ने प्रभु शिव को सारी बात बताई, भोलेनाथ परशुराम पर क्रोधित तो हुए लेकिन चूंकि वो उनके बहुत बड़े भक्त थे। इसलिए उन्होंने परशुराम को क्षमा कर दिया और गणेश जी को पितृभक्ति के लिए ढेर सारा आशीर्वाद दिया। उस दिन के बाद से ही गणेश जी का नाम हमेशा के लिए 'एकदंत' हो गया।