हनुमान जी समेत इन 8 चिरंजीवियों को भी मिला सदैव अमर रहने का वरदान
By रुस्तम राणा | Published: February 15, 2024 03:28 PM2024-02-15T15:28:39+5:302024-02-15T15:28:48+5:30
हिन्दू पौराणिक शास्त्रों में एक से बढ़कर एक महान पात्र हुए, जिनकी गौरवगाथा सुनकर मन श्रद्धा के साथ-साथ जोश और उत्साह भर जाता है। आज हम आपको ऐसे 8 चिरंजीवी के विषय में बताएंगे जिनके बारे में यह जाता है कि उन्हें अमरता का वरदान प्राप्त है।
1. इन 8 चिरंजीवी में भगवान श्रीराम के परमभक्त हनुमान जी का आता है। वह भगवान शिव के रुद्रावतार माने जाते हैं। पौराणिक मान्यता है कि उन्हें अमरता का वरदान प्राप्त है। कहते हैं कि जब प्रभु श्री राम अयोध्या छोड़ बैकुण्ठ पधारने लगे, तब हनुमान जी ने पृथ्वी पर ही रुकने की इच्छा व्यक्त की। तब श्री राम ने उन्हें पृथ्वी पर सदा अमर रहने का वरदान दिया था।
2. रामायण काल के एक और पात्र हैं जिनका नाम है - विभीषण। रावण के भ्राता विभीषण को भी अमरता का वरदान भगवान श्रीराम के द्वारा दिया गया था। विभीषण भी प्रभु श्रीराम का भक्त था। पौराणिक कथा के अनुसार, जब लंका विजय के बाद विभीषण का राजतिलक हुआ तो रामजी ने उन्हें यह वरदान दिया था।
3. भगवान परशुराम भी आठ चिरंजीवियों में से एक हैं। शास्त्रों में उन्हें विष्णु जी की छठा अवतार भी बताया गया है। इनका जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था, जिसे आज अक्षय तृतीया भी कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों में उनकी भी एक रोचक कथा है।
4. दैत्यराज राजा बलि और भगवान विष्णु जी के बामन अवतार की कथा बेहद लोकप्रिय है। राजा बलि को अमरत्व प्राप्त है। बामन अवतार के रूप में भगवान विष्णु ने राजा बलि को पृथ्वी और स्वर्ग के बदले पाताल लोक का राजा नियुक्त कर दिया। कहते हैं कि पाताल लोक में आज भी राजा बलि का राज है।
5. ऋषि मार्कण्डेय ऋषि मार्कण्डेय भगवान शिव के परम भक्त थे। इन्होंने शिवजी को तप कर प्रसन्न किया और महामृत्युंजय मंत्र सिद्धि के कारण चिरंजीवी बन गए। मार्कण्डेय ऋषि को भगवान शिव से चिरंजीवी होने का वरदान मिला हुआ है।
6. ऋषि वेदव्यास, जिन्होंने वेदों समेत कई धार्मिक ग्रंथों की रचना की थी। वह भी आठ चिरंजीवियों में से एक हैं। ऐसा कहते हैं कि वेद व्यास कलिकाल के अंत तक जीवित रहेंगे। तब वे कल्कि अवतार के साथ रहेंगे।
7. महाभारत काल के अश्वत्थामा, जो कि गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र और युद्ध में ये कौरवों के सेनापति थे, एक श्राप के कारण आज भी जीवित हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, उनके माथे पर एक अमरमणि शोभायमान थी, जिसे अर्जुन ने दंडवश निकाल लिया था और भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत काल तक धरती पर भटकने का श्राप दे दिया था।
8. महाभारत के ही एक और पात्र हैं- कृपाचार्य। वह कौरवों और पांडवों दोनों के गुरु थे। पौराणिक कथाओं में यह वर्णन मिलता है कि कृपाचार्य उन तीन तपस्वियों में से एक थे, जिन्हें भगवान श्री कृष्ण के विराट स्वरूप के दर्शन हुए थे। उन्हें सप्तऋषियों में से एक माना जाता है। उन्हें अपने सुकर्मों की वजह से अमरत्व का वरदान प्राप्त हुआ।