इस दुनिया में कई ऐसे रहस्य आज भी मौजूद है जो इंसान को हैरान करते हैं। कई बार कुछ चीजें विज्ञान से भी परे लगती हैं लेकिन इंसान उसे खोजने की कोशिश में जुटा रहता है। हम हिमालय पर्वत की ही बात करें तो ये किसी रहस्य के भंडार से कम नहीं। हिंदू धर्म में तो हिमालय से जुड़ी कई मान्यताएं मौजूद हैं। हिमालय की इन्ही वादियों में मौजूद है 'ज्ञानगंज मठ' का भी रहस्य।
ऐसी मान्यता है कि 'ज्ञानगंज मठ' में केवल सिद्ध महात्माओं को ही जगह मिलती है और कोई भी आम इंसान वहां नहीं पहुंच सकता। हिमालय में तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच मौजूद इस जगह को शांग्री-ला, शंभाला और सिद्धआश्रम भी कहा जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि यहां रहने वाला हर कोई अमर है और उसकी कभी मृत्यु नहीं होती। दरअसल, ऐसी मान्यता है कि यहां पहुंचे वस्तु या व्यक्ति का अस्तित्व दुनिया से खत्म हो जाता है। इस घाटी में काल यानी समय का असर नहीं है। इसलिए वहां मन के विचार की शक्ति सहित शारीरिक क्षमता और मानसिक चेतना बहुत बढ़ जाती है।
एक खास बात ये भी है कि 'ज्ञानगंज मठ' असल में कहा है इसकी जानकारी ठीक-ठीक किसी को नहीं है। केवल भारत में ही नहीं, बल्कि तिब्बत में और बौद्ध भिक्षुओं में भी इसे लेकर खूब बातें होती हैं। मान्यता तो ये भी है कि सिद्ध बौद्ध भिक्षु यहां पहुंचने में कामयाब रहते हैं लेकिन किसी को यहां का साफ-साफ रास्ता नहीं पता है।
मॉर्डन तकनीक और मैपिंग सिस्टम से भी खोजना मुश्किल
इस 'ज्ञानगंज मठ' के बारे में कहा जाता है कि यहां ऋषि-मुनि तपस्या में लीन रहते हैं। कई लोगों ने अपनी किताबों में इस रहस्यमयी घाटी का जिक्र किया है। कई लोग तो ये भी कहते हैं कि इस घाटी का संबंध सीधे दूसरे लोक से है।
कहते तो ये भी हैं कि चीन की सेना ने कई बार इस जगह को तलाशने की कोशिश की लेकिन वह नाकाम रहा। इस सिद्धाश्रम या मठ का जिक्र महाभारत, वाल्मिकी रामायण और वेदों में भी है। अंग्रेज लेख जेम्स हिल्टन ने भी अपने उपन्यास 'लास्ट होराइजन' में इस जगह का जिक्र किया है।
ज्ञानगंज मठ: कल्पना या रहस्य? अब भी कोई जवाब नहीं
ज्ञानगंज मठ केवल कल्पना है या फिर वाकई ऐसी कोई जगह है, इसे लेकर अब भी कोई ठोस जवाब मौजूद नहीं है। स्थानीय लोक कहानियों में भले ही इसका जिक्र होता रहा है लेकिन कई सिद्ध पुरुषों ने ये दावा भी किया है कि वे उस जगह पर जा चुके हैं।
इस जगह को लेकर एक अंग्रेज कर्नल एल.पी. फैरेल की बात भी सामने आती है। फैरेल ब्रिटिश शासन में हिमालय की दुर्गम पहाड़ियों में तैनात थे और उन्होंने यहां कुछ अजीबोगरीब अनुभव भी किया जिसका जिक्र उन्होंने बाद में पत्रकारों से किया था।