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हनुमान जयंती 2019: इस पावन धाम में भगवान से पहले होती है भक्त की पूजा, अचंभित कर देंगे यहां के चमत्कार

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 17, 2019 5:02 PM

जब से इस मंदिर की स्थापना हु्ई है तब से ही मन्दिर के अन्दर अखण्ड दीप प्रज्वलित है। निरन्तर रूप से मन्दिर में बालाजी का कथा-पाठ, जप तथा कीर्तन चलता रहता है। दर्शन करने वाले भक्त भी सुन्दरकाण्ड पाठ एवं हनुमान चालीसा पढ़ कर बालाजी को मानाने हैं।

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हनुमान जी का जन्म वानर राजा केसरी की पत्नी अंजना के गर्भ से हुआ था। हनुमान जी को भगवान शिव का रूद्र अवतार माना जाता है। इस बार हनुमान जयंती 19 अप्रैल, शुक्रवार को पड़ रहा है। अतुलनीय बलशाली होने के फलस्वरूप हनुमान जी को बालाजी की संज्ञा दी गई है। राजस्थान के चुरू जिले के सालासर में स्थित एक मंदिर में हनुमान जी के इसी रूप की पूजा होती है। हर साल चैत्र पूर्णिमा तथा आश्विन पूर्णिमा के पावन पर्व पर यहां बहुत बड़ा मेला लगता है । प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को भी यहां भक्तों की भारी भीड़ होती है। ऐसी मान्यता है कि हनुमान जयंती के पावन पर्व पर यहां आने वाले सभी भक्तों की मुरादें पूरी होती है, भक्त यहां स्थित एक प्राचीन वृक्ष पर नारियल बांध कर मन्नत मांगते हैं।

दाढ़ी मूछ से सुशोभित है प्रतिमा 

बालाजी मन्दिर राजस्थानी शैली में बनी एक विशाल मंदिर है जो राजस्थान के चुरू जिले के सालासर में स्थित है। सोने के सिंहासन पर बालाजी की विशाल प्रतिमा विराजमान है। उपर श्री राम जी का दरबार है तथा उनके चरणों में दाढ़ी-मूंछ से सुशोभित हनुमान जी का बालाजी रूप विराजमान है। देश भर से भक्त यहां माथा टेकने आते हैं।

शालिग्राम पत्थर से निर्मित है प्रतिमा

भक्त हनुमान जी के इस रूप को बड़े हनुमान जी बोलते हैं क्योंकि  हनुमान जी का यह रूप यहां के अलावा कहीं और देखने को नहीं मिलता। बालाजी की यह प्रतिमा शालिग्राम पत्थर से निर्मित है जिसे सिंदुरी रंग और सोने से सजाया गया है।

रोज होता है भव्य श्रृंगार

दिन में कई बार बालाजी के प्रतिमा की पोशाक बदलकर इनका भव्य श्रृंगार किया जाता है तथा गुलाब और मोगरा के फूलों से इनकी झांकी सजाई जाती है। प्रतिमा के चारों तरफ सोने से सजावट की गई है और सोने और रत्नों से जड़ा भव्य मुकुट बालाजी के सिर की शोभा बढ़ाता है। पुरी तरह से श्रृंगार के बाद बालाजी का यह रूप अद्भुत, आकर्षक एवं प्रभावशाली लगने लगता है।

अखंड दीप की लौ है बरकरार

जब से इस मंदिर की स्थापना हु्ई है तब से ही मन्दिर के अन्दर अखण्ड दीप प्रज्वलित है। निरन्तर रूप से मन्दिर में बालाजी का कथा-पाठ, जप तथा कीर्तन चलता रहता है। दर्शन करने वाले भक्त भी सुन्दरकाण्ड पाठ एवं हनुमान चालीसा पढ़ कर बालाजी को मानाने हैं।

यह भी पढ़ें: हनुमान जयंती 2019: पूजा में केसरी नंदन को अर्पित करें ये 5 चीजें, पूरी होगी मन की हर मुराद

मंदिर की कथा/इतिहास

1811 में नागपुर जिले के असोटा गाँव के एक किसान को मिट्टी में सनी हुई दो मूर्त्तियाँ मिलीं। उसकी पत्नी उसके लिए भोजन लेकर वहाँ पहुँची। किसान ने अपनी पत्नी को मूर्त्ति दिखायी उसने अपनी साड़ी से मूर्त्ति को साफ़ कीया। यह मूर्त्ति बालाजी भगवान श्री हनुमान की थी। भगवान बालाजी  के प्रकट होने की यह खबर गांव के ठाकुर को भी सुनाई पड़ी। बालाजी ने उसके सपने में आकर यह आदेश दिया कि इस मूर्त्ति को चूरू जिले के सालासर भेज दिया जाए।

उसी रात भगवान हनुमान ने सालासर के एक भक्त, मोहन दासजी महाराज को दर्शन दिया भगवान बालाजी ने उसे असोटा की मूर्त्ति के बारे में बताया। उन्होंने तुरन्त असोटा के ठाकुर को एक सन्देश भेजा। जब ठाकुर को यह पता चला कि असोटा आये बिना ही मोहन दासजी को इसकी खबर है तो वे चकित हो गये। मूर्त्ति को सालासर भेज दिया गया और उस दिन से यह स्थान सालासर धाम के रूप में जाना जाने लगा।

भक्त के दर्शन भगवान से पहले

जिसके सपने में आकर बालाजी ने असोटा की मूर्त्ति के बारे में बताया था इस मन्दिर में उस मोहनदास जी की समाधि स्थित है। इस मंदिर की मान्यता है कि भगवान बालाजी के दर्शन से पहले उनके परम भक्त मोहनदास जी की  पूजा की जती है। मान्यताओं के अनुसार मोहनदास जी ने मंदिर की स्थापना के वक्त जिस दिप को जलाया था वह आज भी जल रहा है।

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