ब्लॉग: नेपाल में तेज होती हिंदू राष्ट्र की मांग
By प्रमोद भार्गव | Published: December 28, 2023 11:59 AM2023-12-28T11:59:15+5:302023-12-28T12:00:53+5:30
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा अप्रैल-2022 में भारत आए थे। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई मुलाकात के बाद से ही जनता में नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाए जाने की मांग जोर पकड़ रही है।
नई दिल्ली: नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना के 15 साल बाद एक बार फिर से राजशाही और हिंदू राष्ट्र की मांग जोर पकड़ रही है। इसे लेकर 23 नवंबर 2023 को काठमांडू की सड़कों पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ। कारोबारी दुर्गा प्रसाई के नेतृत्व में ‘राष्ट्र, राष्ट्रवाद, धर्म, संस्कृति और नागरिकों की रक्षा के लिए अभियान शुरू हुआ है। 2008 में नेपाल के गणराज्य बनने के बाद से यह सबसे बड़ा प्रदर्शन बताया जा रहा है।
फिलहाल हिंदू मुहिम के अगुआ प्रसाई सरकार की कड़ी निगरानी में हैं। एक समय प्रसाई के प्रधानमंत्री प्रचंड और ओली के साथ घनिष्ठ संबंध थे, लेकिन अब वह नियमित रूप से आलोचना कर रहे हैं। इसी समय राजशाही के दौर में गृह मंत्री रहे कमल थापा ने हिंदू राष्ट्र की मांग के लिए नया गठबंधन बनाया है। पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र शाह भी एकाएक सक्रिय होकर सार्वजनिक कार्यक्रमों में भागीदारी करने लगे हैं। वह मंदिरों में भी होने वाली पूजा में शामिल हो रहे हैं।
भारत में राम मंदिर के 22 जनवरी 2024 को होने जा रहे उद्घाटन का प्रभाव भी नेपाल में उठ रही हिंदू राष्ट्र की मांग पर पड़ रहा है। इस मांग के विरुद्ध सत्तारूढ़ गठबंधन और विपक्ष के नेता राजशाही और हिंदू राष्ट्र की आलोचना हेतु एकजुट हो गए हैं। प्रचंड ने प्रदर्शनकारियों को अराजकतावादी करार दिया है। वहीं ओली ने हिंदू साम्राज्य की तुलना पाषाण युग से करके आग में घी डालने का काम कर दिया है।
हालांकि यह मांग कोई नई नहीं है। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा अप्रैल-2022 में भारत आए थे। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई मुलाकात के बाद से ही जनता में नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाए जाने की मांग जोर पकड़ रही है। इस दोस्ताना शिखर-वार्ता से तय हुआ था कि नेपाल चीन के विस्तारवादी शिकंजे से मुक्त होने की राह पर चलेगा। नेपाल ने अब भरोसा दिया है कि सीमा विवाद का राजनीतिकरण नहीं होगा और जल्द ही इस विवाद को द्विपक्षीय बातचीत से सुलझा लिया जाएगा। आजादी के अमृत महोत्सव के चलते भारत ने नेपाल में 75 विकास परियोजनाएं शुरू करने की घोषणा की थी।
भारत के आर्थिक सहयोग से तैयार बिहार के जयनगर और नेपाल के कुर्था तक रेल सेवा का उद्घाटन भी किया गया था। याद रहे, दोनों देशों के बीच रोटी-बेटी के संबंध रामायण काल से चले आ रहे हैं। राम की धर्मपत्नी सीता नेपाल के जनकपुर से थीं। भारत के धार्मिक श्रद्धालुओं को यह रेल जनकपुरधाम तक पहुंचना आसान कर देगी। हालांकि इस मुलाकात के कुछ समय बाद ही नेपाल में सत्ता परिवर्तन हुआ और मओवादी चीन से प्रभावित पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ फिर से प्रधानमंत्री बन गए थे।
दरअसल नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी का चीन की गोद में बैठना और भारत विरोधी अभियान चलाना देश की जनता को नागवार गुजर रहा है। राजशाही के साथ हिंदू राष्ट्र बहाली की मांग भी मुखर हुई है।