Chitragupta Puja 2019: चित्रगुप्त पूजा 28 अक्टूबर को जानें इसकी पूजा विधि
By मेघना वर्मा | Published: October 27, 2019 02:25 PM2019-10-27T14:25:41+5:302019-10-27T14:25:41+5:30
भगवान चित्रगुप्त सभी प्राणियों के पाप और पुण्यकर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। आदमी का भाग्य लिखने का काम यही करते हैं।
कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के द्वितीया यानी यम द्वितीया (भाई दूज) को चित्रगुप्त जयंती भी मनाई जाती है। जिसे चित्रगुप्त पूजा भी कहते हैं। विशेषकर कायस्थ समाज चित्रगुप्त जयंती को हर्षोल्लास के साथ मनाता है। इस साल चित्रगुप्त की पूजा 29 अक्टूबर को पड़ रही है। इस दिन धर्मराज और मृत्यु के देवता यमराज के सहायक के तौर पर जाना जाता है।
भगवान चित्रगुप्त को भगवान ब्रह्मा का मानस पुत्र भी कहा जाता है। भगवान चित्रगुप्त सभी प्राणियों के पाप और पुण्यकर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। आदमी का भाग्य लिखने का काम यही करते हैं। हर साल पूरे उल्लास के साथ यह पर्व मनाया जाता है। लोग विधि-विधान से चित्रगुप्त भगवान की पूजा करते हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि चित्रगुप्त भगवान की पूजा करने की विधि क्या है। आइए हम बताते हैं आपको-
चित्रगुप्त पूजा विधि
1. पूजा करने वाली जगह को साफ करके एक चौकी रखें।
2. इस चौकी पर श्री चित्रगुप्त जी की फोटो को स्थापित करें।
3. अगर आपके पास चित्रगुप्त की फोटो ना हो तो कलश को प्रतीक मान कर चित्रगुप्त जी को स्थापित करें।
4. इसके बाद दीपक जलाकर गणपति को चन्दन, हल्दी,रोली अक्षत ,दूब ,पुष्प व धूप अर्पित कर पूजा अर्चना करें।
5. श्री चित्रगुप्त जी को भी चन्दन ,हल्दी,रोली अक्षत ,पुष्प व धूप अर्पित कर पूजा अर्चना करें।
6. फल ,मिठाई और विशेष रूप से इस दिन के लिए बनाया गया पंचामृत और पान सुपारी का भोग लगायें।
7. इसके बाद परिवार के सभी सदस्य अपनी किताब,कलम,दवात आदि की पूजा करें और चित्रगुप्त जी के पास रखें।
8. अब परिवार के सभी सदस्य एक सफ़ेद कागज पर रोली से स्वस्तिक बनायें।
9. इसके नीचे पांच देवी देवतावों के नाम लिखें।
10. इस कागज और अपनी कलम को हल्दी रोली अक्षत और मिठाई अर्पित कर पूजन करें।
11. अब सभी सदस्य श्री चित्रगुप्त जी की आरती गाएं।
पौराणिक कथानुसार, परम पिता भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से जब सृष्टि की कल्पना की तो उनके नाभि से कमल फूल निकला और उस पर आसीन पुरुष ब्रह्मा कहलाए क्योंकि ब्रह्माण्ड की रचना और सृष्टि के लिए उनका जन्म हुआ था।
भगवान ब्रह्मा ने समस्त प्राणियों, देवता-असुर, गंधर्व, अप्सरा और स्त्री-पुरूष बनाए। सृष्टि के क्रम में धर्मराज यमराज का भी जन्म हुआ। यमराज को धर्मराज इसलिए कहा जाता है कि क्योंकि जीवों के कर्मों के अनुसार उन्हें सजा देने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर डाली गई।
चूंकि, काम की अधिकता थी इसलिए यमराज ने ब्रह्माजी से कहा कि इतनी बड़ी सृष्टि के प्राणियों की सजा का काम देखने के लिए एक सहायक भी चाहिए। यमराज ने साथ ही कहा कि सहायक धार्मिक, न्यायाधीश, बुद्धिमान, शीघ्र काम करने वाला, लेखन कार्य में दक्ष, तपस्वी, ब्रह्मनिष्ठ और वेदों का ज्ञाता होना चाहिए।