चैत्र नवरात्रि 2018: नवरात्रि के छठे दिन माता कात्यायनी के पूजन का क्या है महत्व, जानें पौराणिक कथा
By धीरज पाल | Published: March 22, 2018 05:05 PM2018-03-22T17:05:08+5:302018-03-22T17:05:08+5:30
जब पूरी दुनिया में महिषासुर नामक राक्षस ने अपना ताण्डव मचाया था, तब देवी कात्यायनी ने उसका वध किया।
चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। हर दिन माता के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के छठे दिन माता कात्यायनी के नाम का व्रत और पूजन किया जाता है, इन्हें माता देवी पार्वती का ही रूप माना गया है। कहते हैं कि देवी पार्वती ने यह रूप महिषासुर नामक राक्षस को मारने के लिए धारण किया था। माता का यह रूप काफी हिंसक माना गया है, इसलिए मां कात्यायनी को युद्ध की देवी भी कहा जाता है। मां कात्यायनी शेर की सवारी करती हैं। इनकी चार भुजाएं हैं, बाएं दो हाथों में कमल और तलवार है, जबकि दाहिने दो हाथों से वरद एवं अभय मुद्रा धारण की हुईं हैं। देवी लाल वस्त्र में सुशोभित हो रही हैं।
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक देवी कात्यायनी ने कात्यायन ऋषि को जन्म दिया था, इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा। देवी शक्ति के इस रूप का संदर्भ कई पुराणों में मिलता है। नवरात्रि के छठे दिन भक्त इनके लिए पूरे दिन उपासना और उपवास रखते हैं। इन्होंने राक्षस महिषासुर का वध कर न उसकी तबाही रोका बल्कि ब्रह्माण्ड को उसके अत्याचार से मुक्त कराया। का वध किया था।
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जब पूरी दुनिया में महिषासुर नामक राक्षस ने अपना ताण्डव मचाया था, तब देवी कात्यायनी ने उसका वध किया और ब्रह्माण्ड को उसके आत्याचार से मुक्त कराया। पुराणों के मुताबिक तलवार आदि अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित देवी और दानव महिषासुर में घोर युद्ध हुआ। उसके बाद जैसे ही देवी उसके करीब गईं, उसने भैंसे का रूप धारण कर लिया। इसके बाद देवी ने अपने तलवार से उसका गर्दन धड़ से अलग कर दिया। महिषासुर का वध करने के कारण ही देवी को महिषासुर मर्दिनी कहा जाता है।
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इस विधि से करें देवी को प्रसन्न
नवरात्रि के छठे दिन यदि आप मां कत्यायनी माता के नाम का व्रत और पूजन कर रहे हैं तो सुबह स्नानादि करके लाल रंग के आसन पर विराजमान होकर देवी की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठ जाएं। हाथ में स्फटिक की माला लें और इस मंत्र का कम से कम एक माला यानि 108 बार जाप करें: चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥ ऐसे मान्यता है कि कात्यायनी माता को सफेद रंग बेहद ही पसंद है। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कात्यायनी बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करती हैं।
मंत्र
ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
प्रार्थना मंत्र
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥
स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ध्यान मंत्र
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थिताम् षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम्॥
कवच मंत्र
कात्यायनौमुख पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयम् पातु जया भगमालिनी॥