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इतिहास गवाह है, ये 30 सीटें जीतने वाले की राजस्‍थान में बनती है सरकार, कांग्रेस भेद पाएगी BJP का ये किला?

By भाषा | Updated: September 9, 2018 11:19 IST

2013 के विधानसभा चुनाव में इन 30 सीटों में 25 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली जबकि कांग्रेस सिर्फ दो सीटें जीत सकी और एक बार फिर भाजपा की सरकार बनी।

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डूंगरपुर, 9 सितंबर (प्रियभांशु रंजन): अगले कुछ महीने में विधानसभा चुनाव का सामना करने जा रहे राजस्थान में सबकी नजरें आदिवासी बहुल दक्षिणी राजस्थान यानी मेवाड़-वागड़ क्षेत्र पर टिकी हैं। अब तक जिस राजनीतिक पार्टी ने इस इलाके में प्रभुत्व जमाया है, राज्य में सरकार उसी की बनी है। मेवाड़-वागड़ क्षेत्र के तहत राजस्थान के कुल छह जिले आते हैं जिनमें उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़ और राजसमंद शामिल हैं। इन छह जिलों में विधानसभा की 28 सीटें हैं। इनमें 16 सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित हैं। बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ ऐसे जिले हैं जिनकी सारी विधानसभा सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। 

प्रदेश को अब तक तीन मुख्यमंत्री दे चुके मेवाड़-वागड़ क्षेत्र की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीते चार अगस्त को भाजपा ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अगुवाई में अपनी ‘राजस्थान गौरव यात्रा’ की शुरुआत उदयपुर के चारभुजा मंदिर से की जबकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने 24 अगस्त को ‘संकल्प रैली’ की शुरुआत चित्तौड़गढ़ के सांवलिया सेठ से की। पिछले दो दशकों के चुनावी आंकड़ों पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि राजस्थान में सरकार उसी पार्टी ने बनाई जिसे मेवाड़-वागड़ क्षेत्र की ज्यादातर सीटों पर जीत हासिल हुई।

चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 1998 के विधानसभा चुनाव में मेवाड़-वागड़ क्षेत्र की कुल 30 सीटों में से कांग्रेस को 23 जबकि भाजपा को महज चार सीटें मिली और सरकार कांग्रेस ने बनाई। साल 2003 के विधानसभा चुनाव में इन 30 विधानसभा सीटों में से 21 पर भाजपा को जीत मिली, कांग्रेस को सात सीटों से ही संतोष करना पड़ा और सरकार भाजपा ने बनाई।

इसी तरह, वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव के वक्त परिसीमन के कारण जब मेवाड़-वागड़ क्षेत्र की कुल सीटें 30 से घटकर 28 हो गईं तो कांग्रेस को 20 और भाजपा को छह सीटें मिलीं। जाहिर तौर पर, उस वक्त सरकार कांग्रेस ने बनाई। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र की 25 सीटों पर भाजपा को जीत मिली जबकि कांग्रेस सिर्फ दो सीटें जीत सकी। ऐसे में एक बार फिर भाजपा की सरकार बनी।

साल 2018 के विधानसभा चुनावों में मेवाड़-वागड़ क्षेत्र में जीत की संभावनाओं के बारे में पूछे जाने पर भाजपा सांसद हर्षवर्धन सिंह डूंगरपुर ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार के जनहितकारी कामों की बदौलत भाजपा राजस्थान में एक बार फिर सत्ता में वापसी करेगी। हमारी सरकार ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ के सूत्र वाक्य को ध्यान में रखकर काम किया है। यकीन है कि जीत हमारी होगी।’’ इसी तरह, कांग्रेस भी जीत के दावे कर रही है। तीन बार लोकसभा सांसद रह चुके कांग्रेस नेता ताराचंद भगोरा ने बताया, ‘‘भाजपा की सरकार ने देश में जिस तरह समाज को बांटने की राजनीति की है, जनता उसे समझ चुकी है। आगामी चुनाव में भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना होगा। राहुल गांधी, अशोक गहलोत और सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी न सिर्फ मेवाड़-वागड़ बल्कि पूरे राजस्थान में बड़ी जीत हासिल करेगी।’’ 

हर्षवर्धन का मानना है कि कांग्रेस ‘‘अंदरूनी गुटबाजी’’ के कारण चुनाव हारेगी, जबकि तारांचद का मानना है कि ‘‘दलितों-आदिवासियों के आरक्षण से किए गए खिलवाड़’’ के कारण भाजपा को हार का सामना करना पड़ेगा। मेवाड़-वागड़ क्षेत्र के मुद्दों पर भाजपा नेता हर्षवर्धन का दावा है कि इस क्षेत्र में कुछ ऐसे तत्व हैं जो ‘‘भील प्रदेश’’ नाम के अलग राज्य की मांग की आड़ में ‘‘नक्सल गतिविधियों’’ में शामिल हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी बहुल इस क्षेत्र में ‘‘गैर-आदिवासियों से भेदभाव’’ की घटनाएं भी सामने आती रही हैं।

हालांकि, कांग्रेस नेता ताराचंद इन आरोपों को नकारते हुए कहते हैं कि भाजपा द्वारा ‘ट्राइबल सब प्लान’ (टीएसपी) एरिया में आरक्षण के नियमों से बड़े पैमाने पर छेड़खानी की गई है, जिससे आदिवासी समुदाय में रोष व्याप्त है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र के लोग महंगाई और बेरोजगारी से भी त्रस्त हैं।

बहरहाल, भाजपा और कांग्रेस के दावों और आरोप-प्रत्यारोप के बीच मेवाड़-वागड़ क्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकार जयेश पंवार का मानना है कि ‘भील प्रदेश’ की मांग जोर पकड़ने के कारण भारतीय ट्राइबल पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी ने आदिवासी समुदाय में थोड़ी पैठ बनाने में कामयाबी हासिल की है जिससे भाजपा और कांग्रेस दोनों को थोड़ा नुकसान होने के आसार हैं।

जयेश ने कहा कि इस इलाके में गैर-आदिवासियों के वोट निर्णायक हैं। उन्होंने कहा कि एससी-एसटी (उत्पीड़न निरोधक) कानून में मोदी सरकार की ओर से हाल में किए गए संशोधन से गैर-आदिवासियों में बहुत नाराजगी है और इसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ सकता है। भाजपा नेता हर्षवर्धन भी मानते हैं कि एससी-एसटी (उत्पीड़न निरोधक) कानून में हुए संशोधन से ‘‘समाज का एक बड़ा तबका’’ नाराज है।

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