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महाराष्ट्र में राजनीति मामलाः विधान परिषद में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का नामांकन, अब सारी निगाहें राज्यपाल पर टिकी

By भाषा | Updated: April 21, 2020 18:51 IST

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने 28 नवंबर 2019 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और अभी वह विधानमंडल के किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। छह माह के अंदर किसी भी सदन का सदस्य होना अनिवार्य है। अब यह देखना है कि महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी क्या करते हैं।

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ठळक मुद्देठाकरे ने 28 नवंबर 2019 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और अभी वह विधानमंडल के किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। सरकार को निर्वाचन आयोग से संपर्क करना चाहिए और 27 मई से पहले विधान परिषद की नौ सीटों के द्विवार्षिक चुनाव की मांग करनी चाहिए।

मुंबईः उच्च न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप करने से इनकार किये जाने के बाद अब सारी निगाहें महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पर टिकी हैं जिन्हें मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य नामित करने के बारे में फैसला लेना है।

बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को भाजपा के एक कार्यकर्ता की उस याचिका पर अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया जिसमें ठाकरे को राज्यपाल द्वारा नामित किए जाने के राज्य मंत्रिमंडल के फैसले को चुनौती दी गई थी। भाजपा कार्यकर्ता द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल द्वारा सिफारिश की कानूनी वैधता पर विचार किये जाने की उम्मीद है। ठाकरे ने 28 नवंबर 2019 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और अभी वह विधानमंडल के किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं।

संविधान के तहत उन्हें 28 मई 2020 तक किसी सदन का सदस्य बनना जरूरी है। कोरोना वायरस महामारी के कारण हालांकि सभी चुनाव स्थगित हैं ऐसे में राज्य मंत्रिमंडल ने नौ अप्रैल को उन्हें राज्यपाल कोटे से विधान परिषद में नामित किये जाने की सिफारिश की थी। संविधान के अनुच्छेद 171 के तहत राज्यपाल विशेष ज्ञान या साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन या समाज सेवा में व्यवहारिक अनुभव रखने वाले को सदन के सदस्य के तौर पर नामित कर सकते हैं।

राज्यपाल के कोटे की दो सीटें अभी रिक्त है जो विधानसभा चुनाव से पूर्व राकांपा विधायकों के इस्तीफा देकर भाजपा में जाने से खाली हुई थीं। अब राज्य में सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा राकांपा ने इन पदों के लिये साल के शुरू में दो नामों की अनुशंसा की थी लेकिन राज्यपाल ने उन्हें यह कहकर खारिज कर दिया था कि इन दोनों सीटों का कार्यकाल जून में खत्म हो रहा है अत: तत्काल नियुक्ति की कोई जरूरत नहीं है। संवैधानिक विशेषज्ञों ने उच्चतम न्यायालय के 1961 के एक फैसले का उल्लेख किया है जो चंद्रभान गुप्ता के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर नियुक्ति और राज्यपाल द्वारा उन्हें विधान परिषद में नामित किये जाने से संबंधित था। न्यायालय ने उनकी नियुक्ति को बहाल रखा था।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि गुप्ता ने कई सालों तक सक्रिय रूप से राजनीति की है जो समाज सेवा के अनुभव के बराबर है इसलिये वह विधानपरिषद में नामित किये जाने योग्य हैं। सरकार के पास उपलब्ध विकल्पों पर चर्चा करते हुए विधानसभा के पूर्व प्रधान सचिव अनंत कालसे ने कहा कि सरकार को निर्वाचन आयोग से संपर्क करना चाहिए और 27 मई से पहले विधान परिषद की नौ सीटों के द्विवार्षिक चुनाव की मांग करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि या फिर वह राज्यपाल से अनुरोध कर सकती है कि वह नौ अप्रैल को मंत्रिमंडल द्वारा की गई अनुशंसा पर जल्द से जल्द फैसला करें। कालसे ने कहा कि सरकार उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय भी जा सकती है और उससे राज्यपाल को निर्देश देने की मांग कर सकती है। उन्होंने कहा कि अदालत ने पूर्व के फैसलों में कहा है कि मंत्रिमंडल द्वारा की गई अनुशंसाएं राज्यपाल के लिये बाध्यकारी हैं।

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