जयंती विशेष: शोर यूं ही न परिंदों ने मचाया होगा, कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा, पढ़ें कैफी आजमी के 10 मशहूर शेर

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 14, 2020 11:54 AM2020-01-14T11:54:56+5:302020-01-14T11:54:56+5:30

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मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता

शोर यूं ही न परिंदों ने मचाया होगा, कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा

बस इक झिझक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में कि तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में

वक्त ने किया क्या हंसी सितम तुम रहे न तुम, हम रहे न हम

इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद

पाया भी उन को खो भी दिया चुप भी हो रहे इक मुख़्तसर सी रात में सदियाँ गुज़र गईं

झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं

रोज़ बढ़ता हूँ जहाँ से आगे फिर वहीं लौट के आ जाता हूँ बार-हा तोड़ चुका हूँ जिन को उन्हीं दीवारों से टकराता हूँ

कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई फिर भी बढ़ते क़दम को न रुकने दिया कट गए सर हमारे तो कुछ ग़म नहीं सर हिमालय का हमने न झुकने दिया

आया गुस्से का इक ऐसा झोंका बुझ गये सारे दीये हाँ मगर एक दीया, नाम है जिसका उम्मीद झिलमिलाता ही चला जाता है