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विदेशी कोचों के नये अनुबंध के लिये पहलवानों के विचार सुनेगा डब्ल्यूएफआई

By भाषा | Updated: August 12, 2021 20:20 IST

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(अमनप्रीत सिंह)

नयी दिल्ली, 12 अगस्त भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) ने गुरूवार को कहा कि नये ओलंपिक चक्र के लिये अपने कोचिंग स्टाफ पर फैसला करने से पहले वह तोक्यो ओलंपिक के पदक विजेता बजरंग पूनिया और रवि दहिया के फीडबैक पर विचार करेगा लेकिन वह जेएसडब्ल्यू और ओजीक्यू जैसे एनजीओ से खिलाड़ियों के सहयोग के नाम पर कोई हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करेगा।

बजरंग को जार्जिया के शाको बेनटिनिडिस ने जबकि रवि को रूस के कमल मालिकोव ने निजी कोच के रूप में ट्रेनिंग दी। दीपक पूनिया के पास भी मुराद गैदारोव के रूप में रूसी कोच था जिन्हें तोक्यो ओलंपिक के दौरान रैफरी से हाथापाई करने के लिये डब्ल्यूएफआई ने बर्खास्त कर दिया।

सभी कोचों का अनुबंध तोक्यो ओलंपिक तक था और नये अनुबंध कुछ दिन में तय कर दिये जायेंगे जिसके लिये डब्ल्यूएफआई पहलवानों के साथ बैठकर विचार करेगा जो अभी सम्मान समारोहों में व्यस्त हैं।

डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह ने पीटीआई से कहा, ‘‘बजरंग को शाको बेनेटिनिडिस के साथ काम करते हुए पदक मिला। हम उसके साथ बैठेंगे और उसके खेल के बारे में उसके विचार सुनेंगे। अगर वह शाको के साथ जारी रहना चाहता है तो हम इस पर विचार करेंगे। ’’

पता चला है कि बजरंग और शाको दोनों अपनी भागीदारी जारी रखना चाहते हैं। जार्जियाई कोच बहालगढ़ (सोनीपत) में भारतीय खेल प्राधिकरण के केंद्र में मौजूद हैं।

महासंघ अभी तक रवि के कोच मालिकोव से भी खुश है और उसे उनके साथ जारी रखने में भी कोई परेशानी नहीं होगी।

हालांकि डब्ल्यूएफआई इस बात से नाराज है कि गैर लाभकारी खेल एनजीओ जैसे ओलंपिक गोल्ड क्वेस्ट (ओजीक्यू) और जेएसडब्ल्यू पहलवानों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘डब्ल्यूएफआई और भारत सरकार अपने सभी खिलाड़ियों के समर्थन में सक्षम है। जेएसडब्ल्यू और ओजीक्यू को ‘चोर दरवाजे’ से आकर हमारे पहलवानों को बिगाड़ने की जरूरत नहीं है। मैं उन्हें अनुरोध करता हूं कि वे हमारे पहलवानों और भारतीय कुश्ती को अकेला छोड़ दें। ’’

उन्होंने कहा, ‘‘वे जिस तरह से हस्तक्षेप कर रहे हैं, हम खुश नहीं हैं। अगर वे पहलवानों की मदद करना चाहते हैं तो उनका स्वागत है लेकिन उन्हें जमींनी स्तर पर ही काम करना चाहिए। कैडेट्स को उनकी जरूरत है। ’’

उन्होंने कहा, ‘‘वे केवल स्थापित पहलवान को चुनते हैं और जब नतीजे नहीं मिलते तो उसे छोड़ देते हैं। सरकार उनकी कोचिंग और यात्रा पर करोड़ो रूपये का खर्चा करती है और ये लोग एक फिजियो देकर बड़े दावे करने लगते हैं। ’’

ब्रिज भूषण ने कहा, ‘‘अगर वे समर्थन करना चाहते हें तो उन्हें ऐसे आना चाहिए जैसे टाटा सहयोग कर रहा है। ’’

पता चला है कि डब्ल्यूएफआई इस बात से भी खुश नहीं था कि पहलवानों की पत्नियां भी विदेश गयीं थीं जब वे ओलंपिक से पहले ट्रेनिंग कर रहे थे। एनजीओ ने उनके जोड़ीदारों की यात्रा का इंतजाम कराया था।

डब्ल्यूएफआई इस बात से नाखुश था कि विनेश फोगाट हंगरी गयी जबकि वहां अच्छे स्पारिंग (अभ्यास के लिये दूसरी पहलवान) जोड़ीदार उपलब्ध नहीं थे।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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