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विश्व हिंदी दिवसः तेजेन्द्र शर्मा बोले- लेखक और कथाकार अपनी जड़ों को खो दिया, प्रवासी साहित्य की अवधारणा पर खेद...

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 11, 2022 20:30 IST

World Hindi Day: विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी को मनाया जाता है। प्रथम विश्व हिन्दी दिवस 1975 में मनाया गया था।

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ठळक मुद्दे1998 तक वहां के किसी लेखक के पास अपनी कहानियों का एक संग्रह तक नहीं था।आज कोई ऐसा लेखक लंदन में नहीं है, जिसके दो- तीन कथा संग्रह न प्रकाशित हो चुके हैं।कहानियों के छोटे-छोटे वाक्य आज की हिन्दी को जिस तरह प्राणवान और संप्रेषणीय बना रहे हैं।

World Hindi Day: विश्व हिंदी दिवस पर आयोजित हिंदी विभाग गुरु घासीदास की संगोष्ठी में बोलते हुए "कथा यू के" के संस्थापक और हिंदी के वरिष्ठ कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने हिंदी में प्रवासी साहित्य की अवधारणा पर खेद जताते हुए कहा कि आज के साहित्य, विशेषकर कविता में गांव को लेकर जो नास्टेल्जिया दिखाई देता है।

उसका कारण ही है कि आज का कवि या कोई लेखक, कथाकार अपनी उन जड़ों को खो चुका है, जहां उसका बचपन बीता है। जहां से उसके जीवन अनुभव और स्मृतियों का एक भरा पूरा संसार समृद्ध हुआ है।आज का लेखक उसे पीछे छोड़ आया है। दूरस्थ बिहार, छत्तीसगढ़ या पंजाब का कोई लेखक जब दिल्ली में रहकर अपने गांव की कहानी लिखता है तो वह भी किसी न किसी स्तर पर प्रवासी ही होता है। 

लगभग आधा घंटे के व्याख्यान में कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने लंदन में फैलते जा रहे हिन्दी कथा साहित्य की लोकप्रियता का हवाला देते हुए बताया कि 1998 तक वहां के किसी लेखक के पास अपनी कहानियों का एक संग्रह तक नहीं था, जबकि विगत बीस वर्षों में आज कोई ऐसा लेखक लंदन में नहीं है, जिसके दो- तीन कथा संग्रह न प्रकाशित हो चुके हैं।

इसके पीछे "कथा यू के" की साहित्यिक गोष्ठियां, उसके प्रयास महत्त्वपूर्ण रहे हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य में स्त्री विमर्श, दलित विमर्श या आदिवासी विमर्श जैसे बंटवारे साहित्य के प्रभाव को सीमित कर रहे हैं।आज के लेखक को चाहिए कि साहित्य के बाजार में उछाले जा रहे इन कृत्रिम मुद्दों के बरक्स अपने जीवन अनुभव  से साहित्य के विषय उठाये।

अपने प्रिय लेखक जगदम्बा प्रसाद दीक्षित को उद्धृत करते हुए तेजेन्द्र शर्मा ने बताया कि उनकी कहानियों के छोटे-छोटे वाक्य आज की हिन्दी को जिस तरह प्राणवान और संप्रेषणीय बना रहे हैं, वे मेरे लेखन के प्रेरणा स्रोत रहे हैं। कला विद्यापीठ के छात्रों और अन्य विभाग के अध्यापकों की भारी उपस्थिति में  संगोष्ठी का संचालन हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर देवेंद्र नाथ सिंह व धन्यवाद ज्ञापन विभाग के  असिस्टेंट प्रोफेसर मुरली मनोहर सिंह ने किया।

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