मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में अरुण जेटली ने 92 वर्ष पुरानी परंपरा को बदलते हुए रेल बजट को आम बजट के साथ पेश किया था. रेल बजट को अलग से पेश करने की शुरूआत 1924 में अंग्रेजी शासनकाल में हुई थी.
अंग्रेजी शासनकाल में रेल बजट को ज्यादा प्राथमिकता इसलिए भी दी जाती थी क्योंकि यह कुल बजट का 80 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा होता था.
नीति आयोग ने रेल बजट को अलग से पेश करने की परंपरा को बंद करने की सिफारिश की थी. इसके बाद अरुण जेटली ने 2017 में रेल बजट के प्रावधान को खत्म कर दिया. सरकार ने बजट को पेश करने की तारीख भी बदल दी.
पहले बजट फरवरी महीने के अंतिम दिन पेश किया जाता था लेकिन यह अब 1 फरवरी को पेश किया जाता है. रेल बजट का हिस्सा अब आम बजट की तुलना में बहुत कम होता है इसलिए इसका अलग से पेश होना अब व्यावाहरिक नहीं लगता है.