Delhi Election 2025: दिल्ली की राजनीति में अरविंद केजरीवाल का नाम ऐसा बन चुका है, जो हर चुनाव में अपना अलग नैरेटिव सेट करने में कामयाब रहता है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को नैरेटिव सेट करने का मास्टर माना जाता है। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी रणनीति से कई राज्यों में विजय हासिल की है। लेकिन दिल्ली में कहानी कुछ अलग है। यहां हर बार केजरीवाल बाज़ी मार जाते हैं।
दिल्ली मॉडल का जादू
केजरीवाल ने पिछले कुछ सालों में दिल्ली मॉडल को एक ब्रांड बना दिया है। उनकी योजनाएं, जैसे महिला सम्मान के तहत फ्री बस यात्रा, पुजारियों और ग्रंथियों के लिए पेंशन, और मोहल्ला क्लीनिक जैसी स्वास्थ्य सेवाएं, सीधे जनता के दिल को छूती हैं। ये योजनाएं सिर्फ कागज़ों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ज़मीन पर दिखती भी हैं।
दूसरी तरफ, बीजेपी अभी तक इन योजनाओं पर केवल प्रतिक्रिया देती रही है। वे केजरीवाल के नैरेटिव को चुनौती देने की कोशिश तो करती हैं, लेकिन वह धार नहीं दिखा पातीं जो जनता को लुभा सके। कांग्रेस तो दिल्ली की राजनीति से लगभग गायब ही हो चुकी है।
केजरीवाल की तैयारी: 10 कदम आगे
इस बार के विधानसभा चुनाव में भी केजरीवाल 10 कदम आगे दिख रहे हैं। 1. टिकट वितरण: केजरीवाल ने उम्मीदवारों की घोषणा और टिकट वितरण का काम पहले ही पूरा कर लिया है। 2. घोषणापत्र और योजनाएं: उनकी नई योजनाएं महिला सम्मान और धर्मगुरुओं के लिए पेंशन जैसे मुद्दों पर केंद्रित हैं। 3. मीडिया प्लान: आप की पूरी टीम मीडिया, सोशल मीडिया और ग्राउंड पर अपने नैरेटिव को फैलाने में जुटी है।
इसके उलट, बीजेपी अभी अपनी तैयारियों में जुटी हुई है। उनके पास समय भले ही हो, लेकिन नैरेटिव सेट करने में देरी होती दिख रही है।
एंटी-इंकम्बेंसी का न होना
दिल्ली में एक और बात केजरीवाल के पक्ष में जाती है। आम तौर पर किसी भी सरकार के खिलाफ एंटी-इंकम्बेंसी यानी सत्ता विरोधी लहर होती है। लेकिन दिल्ली में ऐसा नज़र नहीं आता। जनता को लगता है कि केजरीवाल ने जो वादे किए, वे पूरे किए।
बीजेपी क्यों कर रही है सिर्फ रिएक्ट?
बीजेपी दिल्ली में लगातार कोशिश करती रही है, लेकिन वह खुद का एक ठोस नैरेटिव सेट नहीं कर पा रही। हर बार केजरीवाल के नैरेटिव पर ही प्रतिक्रिया देने की स्थिति में रह जाती है। इसका बड़ा कारण यह है कि बीजेपी के पास ऐसा कोई मॉडल नहीं है जो सीधे दिल्ली की जनता से जुड़ सके।
क्या केजरीवाल नैरेटिव बनाए रख पाएंगे?
अब चुनाव में सिर्फ 30-40 दिन बचे हैं। यह समय किसी भी दल के लिए निर्णायक साबित हो सकता है। केजरीवाल ने अपनी रणनीति और तैयारियों के ज़रिए एक मजबूत शुरुआत कर ली है। अब सवाल यह है कि क्या वह इस नैरेटिव को चुनाव तक बनाए रख पाएंगे?
दूसरी तरफ, बीजेपी को आक्रामक रुख अपनाना होगा। उन्हें सिर्फ रिएक्ट करने के बजाय अपना खुद का एजेंडा सेट करना होगा। नहीं तो इस बार भी बाज़ी केजरीवाल के हाथ में जाती दिख रही है।
दिल्ली की राजनीति में नैरेटिव का खेल सबसे महत्वपूर्ण है। और इसमें केजरीवाल का कोई मुकाबला नहीं। उनकी योजनाएं, उनका ग्राउंड कनेक्शन, और समय पर तैयारियां उन्हें हर बार आगे रखती हैं। चुनाव के नतीजे चाहे जो भी हों, लेकिन इतना तय है कि दिल्ली में नैरेटिव सेट करने का नाम अरविंद केजरीवाल है।