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कौन हैं महेश चंद्र शर्मा गौतम?, 2020 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 21, 2025 15:17 IST

कृति वैशाली को 2020 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार से नवाजा गया, जो उनकी साहित्यिक प्रतिभा का एक महत्वपूर्ण प्रमाण है।

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ठळक मुद्देजीवन, शिक्षा और सामाजिक योगदान की गहनता को भी दर्शाता है। सरोकारों के माध्यम से साहित्यिक जगत में एक विशिष्ट स्थान बनाया है।

नई दिल्लीः भारतीय साहित्य के क्षेत्र में संस्कृत और हिंदी साहित्य को समृद्ध करने वाले विद्वान, उपन्यासकार और सेवानिवृत्त शिक्षक महेश चंद्र शर्मा गौतम का नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। 24 दिसंबर 1949 को पंजाब के पटियाला में जन्मे गौतम ने अपने लेखन, शैक्षिक योगदान और सामाजिक सरोकारों के माध्यम से साहित्यिक जगत में एक विशिष्ट स्थान बनाया है। उनकी कृति वैशाली को 2020 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार से नवाजा गया, जो उनकी साहित्यिक प्रतिभा का एक महत्वपूर्ण प्रमाण है। हालांकि, उनकी यात्रा और उनके कार्यों का महत्व केवल पुरस्कारों तक सीमित नहीं है; यह उनके जीवन, शिक्षा और सामाजिक योगदान की गहनता को भी दर्शाता है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

महेश चंद्र शर्मा गौतम का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ, जहां संस्कृत साहित्य की गहरी जड़ें थीं। उनके पिता पं. बलदेव कृष्ण शास्त्री, जो स्वयं एक प्रख्यात संस्कृत विद्वान थे, ने उन्हें संस्कृत व्याकरण की प्रारंभिक शिक्षा दी। इसके बाद, उन्होंने पटियाला के सरकारी भारतीय प्राच्य भाषा संस्थान में आचार्य दुर्गा दत्त वाग्मी के मार्गदर्शन में अध्ययन किया और शास्त्री की उपाधि प्राप्त की।

गौतम ने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से निजी उम्मीदवार के रूप में एम.ए. (संस्कृत) और एम.ए. (हिंदी) की डिग्री हासिल की। इसके अलावा, उन्होंने पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला से संस्कृत में पीएच.डी. पूरी की, जिसका शीर्षक था पंजाब का संस्कृत काव्य को योगदान, जिसे प्रो. अभिमन्यु मलिक ने निर्देशित किया। उनकी शैक्षिक यात्रा उनके पारंपरिक और आधुनिक ज्ञान के मेल को दर्शाती है, जो उनके लेखन में भी झलकता है।

शैक्षिक और व्यावसायिक जीवन

गौतम ने अपने करियर की शुरुआत 1968 में राजपुरा के के.के. हाई स्कूल में संस्कृत शिक्षक के रूप में की। इसके बाद, उन्होंने अंबाला के सी.आर. दास हाई स्कूल और हरियाणा के विभिन्न सरकारी स्कूलों में हिंदी व्याख्याता के रूप में कार्य किया। 1998 में उन्हें हिंदी व्याख्याता के रूप में पदोन्नत किया गया और वे चीका, हरियाणा के सरकारी बालिका वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय से 2007 में सेवानिवृत्त हुए।

उनकी शैक्षिक सेवाओं के साथ-साथ, उन्होंने गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर में 2020 से 2022 तक संस्कृत (स्नातक) के लिए बोर्ड ऑफ स्टडीज के सदस्य के रूप में योगदान दिया। हाल ही में, उन्हें 2025-2026 के लिए गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर में संस्कृत विषय के लिए बोर्ड ऑफ कंट्रोल का प्रमुख सदस्य नियुक्त किया गया है, जो उनके शैक्षिक प्रभाव और विद्वता को रेखांकित करता है।

गौतम ने 2017 में गुरु नानक देव विश्वविद्यालय में गुरु गोबिंद सिंह के जीवन और दर्शन पर आधारित एक सेमिनार की अध्यक्षता की, जो उनके संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विषयों के प्रति रुचि को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने आकाशवाणी और जालंधर दूरदर्शन पर कई वार्ताएं और चर्चाएं दीं, जिससे संस्कृत और हिंदी साहित्य को व्यापक जनसमुदाय तक पहुंचाने में योगदान दिया।

साहित्यिक योगदान

महेश चंद्र शर्मा गौतम का साहित्यिक योगदान संस्कृत और हिंदी दोनों भाषाओं में विस्तृत है। उनकी रचनाएं उपन्यास, काव्य संग्रह, महाकाव्य और जीवनी जैसे विविध विधाओं को समेटती हैं।

प्रमुख कृतियों में शामिल हैं:

● वैशाली (2017, संस्कृत उपन्यास): यह कृति उनकी सबसे चर्चित रचनाओं में से एक है, जिसे 2020 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।● सुनयना (2019, संस्कृत उपन्यास): इस कृति को पंजाब सरकार के भाषा विभाग द्वारा कालिदास पुरस्कार और उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ द्वारा बाणभट्ट पुरस्कार 2020 से नवाजा गया।● स्वातंत्र्य समर (2013, संस्कृत महाकाव्य): इस रचना को 2014 में ज्ञानी संत सिंह सर्वोत्तम पुस्तक पुरस्कार प्राप्त हुआ।● अधूरा आदमी (2014, हिंदी उपन्यास): इस उपन्यास को 2015 में सुदर्शन सर्वोत्तम पुस्तक पुरस्कार से सम्मानित किया गया।● महार्हं रत्नमंबेदकरः (2020, संस्कृत में डॉ. भीमराव अंबेडकर की जीवनी): यह कृति आधुनिक भारत के एक महान व्यक्तित्व को संस्कृत साहित्य के माध्यम से प्रस्तुत करती है।● क्षितिज की तलाश (2021, हिंदी उपन्यास): इस रचना को अखिल भारतीय वरिष्ठ नागरिक महासंघ, मुंबई द्वारा डॉ. सुगन चंद भाटिया पुरस्कार 2020/21 से सम्मानित किया गया।● मा वीरा विस्मृता भूवन् (संस्कृत, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली द्वारा प्रकाशित): यह रचना भारत और पाकिस्तान के बीच लड़े गए युद्धों में अपने पराक्रम से मातृभूमि का गौरव बढ़ाने वाले वीरों की शौर्यगाथा है, जो एक प्रेरक और गौरवपूर्ण कृति के रूप में उभरती है।

उनकी अन्य रचनाओं में अरुणा, नीरजा, मा वीरा विस्मृता भूवन, सुप्रभातं प्रतीक्ष्यते, मूकं निमंत्रणम्, श्री गुरु नानक देव चरित, ऐसे जिया जाता है, बिखरते रिश्ते और दिग्भ्रांत मन शामिल हैं। उनकी रचनाएं राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान और भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद जैसे संस्थानों के वित्तीय सहयोग से प्रकाशित हुई हैं।

पुरस्कार और सम्मान

गौतम को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। इनमें साहित्य अकादेमी पुरस्कार (2020, वैशाली), कालिदास पुरस्कार (2020, सुनयना), बाणभट्ट पुरस्कार (2020, सुनयना), ज्ञानी संत सिंह पुरस्कार (2014, स्वातंत्र्य समर), सुदर्शन पुरस्कार (2015, अधूरा आदमी) और शिरोमणि संस्कृत साहित्यकार सम्मान (2011, पंजाब सरकार) शामिल हैं। ये पुरस्कार उनकी रचनाओं की गुणवत्ता और उनके साहित्यिक प्रभाव को रेखांकित करते हैं।

शोध और प्रभाव

गौतम की रचनाओं पर देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में शोध कार्य हो रहा है। गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर शोध, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ में नीरजा उपन्यास का समीक्षात्मक अध्ययन, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली में आधुनिक संस्कृत साहित्य में मानवाधिकारों पर शोध, और मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर में अंबेडकर-चरिताश्रित काव्यों पर शोध इसका प्रमाण है। यह उनके कार्यों की गहराई और शैक्षिक महत्व को दर्शाता है।

एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण

महेश चंद्र शर्मा गौतम का साहित्यिक योगदान निस्संदेह प्रभावशाली है, विशेष रूप से संस्कृत साहित्य को आधुनिक संदर्भों में जीवित रखने के उनके प्रयास सराहनीय हैं। उनकी रचनाएं ऐतिहासिक और सामाजिक विषयों को गहराई से उजागर करती हैं, जो पाठकों को प्राचीन और आधुनिक भारत के बीच एक सेतु प्रदान करती हैं।

हालांकि, कुछ आलोचकों का मानना है कि उनकी रचनाओं में पारंपरिकता का प्रभाव इतना प्रबल है कि वे आधुनिक साहित्यिक प्रवृत्तियों से पूरी तरह से हटकर हैं । इसके बावजूद, उनकी रचनाओं का शैक्षिक और सांस्कृतिक महत्व निर्विवाद है।

निष्कर्ष

महेश चंद्र शर्मा गौतम का जीवन और कार्य संस्कृत और हिंदी साहित्य के प्रति उनकी निष्ठा और समर्पण का प्रतीक है। एक शिक्षक, विद्वान और लेखक के रूप में, उन्होंने न केवल साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से बल्कि शैक्षिक और सामाजिक मंचों पर भी अपनी छाप छोड़ी है। उनकी रचनाएं और पुरस्कार इस बात का प्रमाण हैं कि परंपरा और आधुनिकता का समन्वय कैसे साहित्य को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकता है। उनकी नवीनतम नियुक्ति और रचना मा वीरा विस्मृता भूवन् उनके सतत योगदान और साहित्य के प्रति उनके अटूट समर्पण को और भी रेखांकित करती है।

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