जम्मू: करीब दस साल पहले जिन रूस निर्मित टी-72 टैंकों को चीन सीमा पर लद्दाख सेक्टर में एलएसी पर तैनात किया गया था उनमें हुए पहले हादसे में पांच जवानों की मौत हो गई है। इन जवानों की मौत उस समय हुई जब वे इसमें सवार होकर एक अभ्यास के तहत रात 3 बजे श्योक नदी को पार कर रहे थे और अचानक बादल फटने के कारण नदी में बाढ़ आने से यह टैंक डूब गया।
सेना ने शनिवार को बताया कि पूर्वी लद्दाख में सैन्य प्रशिक्षण गतिविधि के दौरान कल रात श्योक नदी में जल स्तर अचानक बढ़ने के कारण उनका टैंक बह गया, जिससे पांच सैनिकों की मौत हो गई। भारतीय सेना की फायर एंड फ्यूरी कार्प्स ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि यह घटना पिछले महीने मई से चल रहे एक सैन्य प्रशिक्षण गतिविधि के दौरान हुई। इसमें कहा गया है कि पूर्वी लद्दाख के सासेर बरंगसा क्षेत्र के पास श्योक नदी में अचानक जल स्तर बढ़ने के कारण सेना का एक टैंक बह गया।
सेना ने कहा कि बचाव दल घटनास्थल पर पहुंचे, हालांकि, उच्च प्रवाह और जल स्तर के कारण बचाव सफल नहीं हुआ और टैंक चालक दल ने अपनी जान गंवा दी। भारतीय सेना ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में परिचालन के दौरान तैनात पांच बहादुर कर्मियों के खोने पर भारतीय सेना को खेद है। बचाव अभियान जारी है। इस हादसे में शहीद होने वालों की पहचान आरआईस एमआर के रेड्डी, डीएफआर भूपेन्द्र नेगी, एलडी अकदुम तैयबम, हवलदार ए खान (6255 एफडी वर्क शॉप) और सीएफएन नागराज पी (एलआरडब्ल्यू) के तौर पर की गई है।
इस बीच, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने घटना में जानमाल के नुकसान पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि राष्ट्र इस दुख की घड़ी में उनके साथ खड़ा है। उन्होंने एक्स पर लिखा कि लद्दाख में नदी पार करते समय हुए दुर्भाग्यपूर्ण हादसे में हमारे पांच बहादुर भारतीय सेना के जवानों की जान जाने से बहुत दुख हुआ। हम देश के लिए अपने वीर जवानों की अनुकरणीय सेवा को कभी नहीं भूलेंगे। उन्होंने आगे लिखा कि शोक संतप्त परिवारों के प्रति मेरी हार्दिक संवेदनाएं। इस दुख की घड़ी में राष्ट्र उनके साथ खड़ा है।
जानकारी के लिए अपने पूरे इतिहास में दूसरी बार, भारतीय सेना ने लद्दाख में अग्रिम मोर्चे पर वर्ष 2016 के शुरू में 100 से अधिक टैंक तैनात किए थे। यह भू-रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जो भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर में तथाकथित वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर स्थित है। रूसी मूल के टी-72 युद्धक टैंक वर्ष 2016 के शुरूआती छह महीनों के दौरान पहले समुद्र तल से 14,000 फीट ऊपर स्थित पूर्वी लद्दाख में ले जाए गए थे। वर्ष 2014 से शुरू होकर, टी-72 टैंकों की दो रेजिमेंट को घाटी में भेजा गया था। तीसरी रेजिमेंट के आ जाने से लद्दाख में एलएसी पर पूरी ब्रिगेड बन चुकी है। अभी और टैंक भी आने की उम्मीद है, इसलिए ऐसे क्षेत्र में मशीनीकृत उपकरणों की युद्ध तत्परता बनाए रखने की व्यवहार्यता पर सवाल उठाया गया है, जहां तापमान -45 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। एक जानकारी के बकौल, टी-72 टैंक पानी में ज्यादा गहरे तक नहीं जा सकता है।
सेनाधिकारी मानते हैं कि कश्मीर का समतल भूभाग भारत के दुर्जेय टी-72 टैंकों जैसे भारी मशीनीकृत उपकरणों की आवाजाही के लिए अनुकूल है, लेकिन भारतीय सेना इन परिष्कृत मशीनों के रखरखाव के लिए विशेष सावधानी बरतती है। रक्षाधिकारियों का मानना था कि लद्दाख के क्षेत्र में हवा विरल है और तापमान -45 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। क्षेत्र में कम तापमान टैंकों के प्रदर्शन को प्रभावित करता है। वे कहते थे कि भारतीय सेना टैंकों को चालू रखने के लिए विशेष स्नेहक और ईंधन का उपयोग करती है, और उन्होंने कहा कि सिस्टम को व्यवस्थित रखने के लिए हर रात कम से कम दो बार इंजनों को स्टार्ट किया जाता है।