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देहरादून अधिकतर इलाकों का पानी पीने योग्य नहीं :स्पेक्स

By भाषा | Updated: July 16, 2021 19:27 IST

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देहरादून, 16 जुलाई उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के ज्यादातर स्थानों का पानी पीने योग्य नहीं है और इसमें अवशोषित क्लोरीन, कठोरता और कोलीफार्म का स्तर मानकों से कई गुना ज्यादा है।

देहरादून स्थित पेयजल की गुणवत्ता पर काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था सोसायटी आफ पॉल्यूशन एंड एनवायरनमेंटल कंजर्वेशन साइंटिस्ट (स्पेक्स) ने शुक्रवार को यहां जारी अपनी ताजा रिपोर्ट में बताया कि हाल में पांच से आठ जुलाई के बीच देहरादून और उसके आसपास के क्षेत्रों से इकटठा किए गए पेयजल के 125 में से 90 प्रतिशत नमूने मानकों के अनुरूप नहीं पाए गए।

स्पेक्स के सचिव डॉ बृजमोहन शर्मा ने बताया कि आम जन के साथ ही मंत्रियों, विधायकों और अधिकारियों के आवासों और कार्यालयों से भी पानी के नमूने एकत्र किए गए थे और वे भी मानकों पर खरे नहीं उतरे।

उन्होंने बताया कि स्पेक्स के जलप्रहरियों द्वारा घर-घर जाकर इकटठा किए गए इन नमूनों का परीक्षण स्पेक्स की प्रयोगशाला में किया गया जो उन्हें केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी विभाग ने प्रदान की है। स्पेक्स वर्ष 1990 से पेयजल गुणवत्ता पर काम कर रहा है और 'जन-जन को शुद्ध जल' अभियान चला रहा है।

शर्मा ने बताया कि देहरादून के ज्यादातर स्थानों पर कहीं क्लोरीन ज्यादा होने (सुपर क्लोरीनेशन) के कारण, कहीं फीकल कोलीफार्म ज्यादा होने और कहीं कठोरता होने के कारण पानी पीने के योग्य नहीं पाया गया है।

पेयजल में अवशोषित क्लोरीन का मानक 0.2 मिग्रा प्रति लीटर है लेकिन देहरादून के केवल सात स्थानों में ही यह मानकों के अनुरूप पाया गया जबकि 53 स्थानों में इसका स्तर मानक से ज्यादा था।

छह स्थानों में इसका स्तर मानकों से कई गुना ज्यादा पाया गया जिनमें कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज के घर 1.4 मिग्रा प्रति लीटर, गणेश जोशी, देहरादून के जिलाधिकारी और मेयर आवास में 1.2 मिग्रा और विधायक खजानदार और देहरादून के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के आवास एक मिग्री प्रतिलीटर शामिल हैं।

देहरादून के 10 स्थानों पर क्लोरीन मानकों से कम जबकि जिला न्यायाधीश के आवास सहित 49 स्थानों पर क्लोरीन की मात्रा शून्य पाई गई।

कुल 33 स्थानों पर कुल कोलीफार्म की मात्रा 10 एमपीएन प्रति 100 मिली के मानक के विपरीत कहीं अधिक पाई गई जबकि फीकल कोलीफार्म (गर्म खून के जानवरों में पैदा होने वाली बैक्टीरिया की प्रजाति) भी शून्य एमपीएन प्रति 100 मिली के मानक के विपरीत पांच स्थानों में अत्यधिक जबकि 33 स्थानों में मानक से ज्यादा मिली। हालांकि, 81 स्थानों पर पानी में फीकल कोलीफार्म नहीं मिला।

डॉ. शर्मा ने बताया कि क्लोरीन के अधिक और लगातार प्रयोग से त्वचा बूढी और बाल सफेद होने लगते हैं तथा पेट में अल्सर और कैंसर भी हो सकता है। पेयजल में कठोरता होने से न केवल त्वचा और बाल बूढे़ होने लगते हैं, पथरी रोग बढ़ता है, गुर्दे, यकृत, आंखों और पाचन पर बुरा प्रभाव पडता है बल्कि नहाने, बर्तन धोने और कपडे़ धोने में भी पानी अधिक लगता है।

इसी प्रकार, उन्होंने बताया कि फीकल कोलीफार्म युक्त पानी पीने से पेट में कीडे़ सहित पेट के रोग, हैजा, पीलिया और हेपेटाइटिस बी की समस्या तक हो जाती है।

लोगों को ऐसे पानी के सेवन से पहले कुछ सावधानियां बरतने की सलाह देते हुए डॉ शर्मा ने कहा कि अगर पानी में अधिक क्लोरीन आता है तो उस पानी का चार घंटे तक और अगर बहुत ज्यादा क्लोरीन आता है तो उस पानी का छह से 12 घंटे तक किसी काम में उपयोग न करें। उन्होंने कहा कि अगर पानी में फीकल कोलीफार्म आता है तो पानी को कम से कम 12 मिनट तक मंद आंच पर उबालने के बाद ठंडा होने पर छानकर ही इस्तेमाल करें।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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