वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के होंगे दूरगामी नतीजे
By वेद प्रताप वैदिक | Published: February 11, 2022 01:40 PM2022-02-11T13:40:14+5:302022-02-11T13:40:50+5:30
देश के पांच राज्यों में मतदान की शुरुआत हो गई है. इस बार लगभग सभी पार्टियों ने मतदाताओं को रिझाने के लिए बड़ी-बड़ी चूसनियां लटका दी हैं. फर्क इतना ही है कि इस बार ये चूसनियां बहुत देर से लटकाई गई हैं. हर पार्टी इंतजार करती रही कि देखें दूसरी पार्टी कौन-सी चूसनियां लटकाती है. हम उससे अधिक मीठी और सुंदर चूसनी लटकाएंगे.
इन सभी राजनीतिक दलों से कोई पूछे कि आपकी राज्य सरकारें इन चूसनियों के लिए पैसा कहां से लाएंगी? जो वायदे पांच साल पहले किए गए थे, वे आज तक पूरे नहीं हुए तो इन नए वायदों का ऐतबार क्या है?
जो भी हो, ये पांच राज्यों के चुनाव अगले आम चुनाव की भूमिका लिखेंगे. जो पार्टी भी, खास तौर से उत्तर प्रदेश में जीतेगी, वह 2024 में दनदनाएगी, इसमें जरा भी शक नहीं है. वहां कांग्रेस और बसपा की तो दाल काफी पतली होनेवाली है लेकिन यदि भाजपा जीत गई तो राष्ट्रीय स्तर पर योगी आदित्यनाथ का सिक्का दनदनाने लगेगा और उस जीत का सेहरा नरेंद्र मोदी के माथे बंध जाएगा. यदि समाजवादी पार्टी जीत गई तो अखिलेश यादव के नेतृत्व या पहल पर देश के सारे विरोधी दल एक होने की कोशिश करेंगे और 2024 के आम चुनाव में मोदी-विरोधी मोर्चा खड़ा कर लेंगे.
यह असंभव नहीं कि भाजपा-गठबंधन की छोटी-मोटी पार्टियां भी टूटकर विपक्ष की इस बारात में शामिल हो जाएं. उत्तरप्रदेश का यह प्रांतीय चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि देश के सबसे ज्यादा सांसद (80) इसी प्रदेश से आते हैं.
इन चुनावों की एक अन्य विचित्रता यह भी है कि ये किसी राजनीतिक सिद्धांतों के आधार पर नहीं लड़े जा रहे हैं. जातिवाद और सांप्रदायिकता का जितना ढोल इन चुनावों में पिटा है, शायद किसी अन्य चुनाव में नहीं पिटा. भाजपा हिंदू वोट बैंक पर निगाहें लगाए हुए है तो सपा की कोशिश है कि पिछड़े, मुसलमान और दलित वोटों पर वह कब्जा कर ले.
इन दोनों पार्टियों में से जो भी सरकार बनाएगी, अब अगले पांच साल उसका राज चलाना मुश्किल हो जाएगा. गठबंधन में घुसे नेता और दल अपनी सरकारों को बीच मझदार में डुबाकर चले जा सकते हैं. जहां तक किसानों का सवाल है, उनके वोट तो विपक्ष को मिलने ही हैं.
सत्ता में जो भी आए, पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसान उसका जीना हराम कर देंगे. दूसरे शब्दों में, इन पांच राज्यों के चुनाव 2024 के आम-चुनाव के प्रतिबिंब तो बनेंगे ही लेकिन वे जिस तरह से हो रहे हैं, वह भारतीय लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है. अगर ये शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न होते हैं तो हम कम-से-कम यह संतोष कर सकेंगे कि हमारे ये
चुनाव हिंसा और फर्जी मतदान से मुक्त रहे हैं.