लखनऊ: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अब जातीय जनगणना के ऐलान को सूबे के हर दलित परिवार तक पहुंचाने में जुटेंगी. इसके लिए योगी सरकार के सभी सभी मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पदाधिकारियों को वंचितों के घर जाकर खाना खाने जाए. इस दौरान वंचित समाज के परिजन को यह समझाएंगे कि उन्हें विपक्ष के बहकावे में आकर भ्रमित होने की जरूरत नहीं है. भाजपा उनकी सच्ची हितैषी है. फ्री राशन देने के साथ उनके कल्याण के लिए जातीय जनगणना का फैसला केंद्र की मोदी सरकार ने लिए है.
सीएम योगी का मानना है कि मंत्रियों और पार्टी पदाधिकारियों के वंचित समाज के घर खाने जाने से पार्टी के दलित एजेंडे को मजबूती मिलेगी और सपा के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के एजेंडे की काट भी होगी.
सीएम योगी की मंशा :
उत्तर प्रदेश में दलित समाज को अपने पाले में लाने के लिए भाजपा के संघ के पदाधिकारी सहभोज कार्यक्रम के तहत दलित समाज के घर भोजन करने जाते रहे हैं. विधानसभा और लोकसभा चुनावों के इस तरह के कार्यक्रम होते रहे हैं. परन्तु इस वक्त वंचित समाज के लोगों के बीच मंत्रियों को भोजन करने भेजने के पीछे सीएम योगी ही योजना दलित समाज के बीच बढ़ रहे इंडिया गठबंधन के प्रति नरमी है.
सीएम योगी प्रदेश में सपा के पीडीए फार्मूले की काट के लिए ही मंत्रियों को वंचितों के घर जाकर उनके साथ खाना खाने पर ज़ोर दे रहे हैं. इस तरह के कार्यक्रम में सीएम योगी खुद भी गोरखपुर में तीन साल पहले शामिल हुए थे. अब फिर उन्होंने अपने सभी मंत्रियों से कहा है कि वह वंचितों और पिछड़ों के बीच जाएं और उन्हें किसी भी प्रकार से भ्रमित न होने दें. उन्हें बताएं कि केंद्र और प्रदेश सरकार किस हद तक उनकी बेहतरी के लिए काम कर रही है. कैसे सरकार वंचित समाज के महापुरुषों का सम्मान बढ़ाने के लिए काम कर रही है. यह सब बताते हुए हर मंत्री जिलों में सक्रियता बढ़ाए.
सीएम योगी का मानना है मंत्रियों के सक्रिय होने से विपक्ष के पीडीए फार्मूले को चुनौती मिलेगी. बीते लोकसभा चुनावों में विपक्ष द्वारा वंचितों का वोट हथियाने के लिए संविधान बदलने को लेकर भाजपा पर जो हमला किया गया, उससे भाजपा को नुकसान हुआ था.
जिसे साथ दलित उसकी बनी सरकार :
अब इस तरह के नुकसान को रोके के लिए सीएम योगी अपनी राजनीतिक चालें चलने लगे हैं. उनके लिए यह जरूरी भी क्योंकि उत्तर प्रदेश की चुनावी सियासत सिर्फ धर्म पर नहीं बल्कि जातियों में भी बटी हुई है. यूपी में करीब 21 प्रतिशत दलित वोट जिस भी दल के साथ खड़ा हुआ है, उसी पार्टी का चुनाव में बेड़ा पार हुआ है. वर्ष 2007 में यह समाज बहुजन समाज पार्टी के साथ खड़ा हुआ. फिर वर्ष 2012 में इसका झुकाव समाजवादी पार्टी के पक्ष में हुआ.
इसके बाद वर्ष 2017 में इसके भाजपा का भी साथ दिया तो हर बार सत्ता में बदलाव हो गया. वर्ष 2022 में वंचित समाज का थोड़ा सा झुकाव अखिलेश यादव की तरह हुआ तो सपा की सीटे सौ से अधिक हो गई. बीते लोकसभा चुनाव में वंचित समाज इंडिया गठबंधन के साथ खड़ा हो गया तो सत्ता में होने के बाद भी भाजपा की सीटें यूपी में कम हो गई. ऐसा फिर से ना हो इसके लिए योगी सरकार अभी सा सतर्क हो गई है और वह मंत्रियों को वंचित समाज के घर खाने जाने को कहा है.
यूपी में दलित समाज की भूमिका :
उत्तर प्रदेश में दलित समाज की आबादी करीब 21.1 प्रतिशत है. यह समाज जाटव और जाटव दलित में बंटा हुआ है. इसमें जाटव दलित 11.70 प्रतिशत है. इसके बाद 3.3 प्रतिशत पासी है. कोरी समाज की हिस्सेदारी 3.15 प्रतिशत है. धानुक, गोंड और खटीक 1.05 प्रतिशत है और अन्य दलित दलित जातियाँ 1.57 प्रतिशत है. प्रदेश में कुल 403 विधानसभा सीटों में 84 सीटें अनुसूचित जाती के लिए आरक्षित हैं. जबकि 80 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं.
यूपी की 300 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां दलित समाज निर्णायक रोल में है. सूबे की 20 जिलों में 25 प्रतिशत से ज्यादा अनुसूचित जाति-जनजाति की आबादी है. इन्हीं आंकड़ों के चलते सीएम योगी वंचितों के घर अपने मंत्रियों को खाना खाने भेज रहे हैं, ताकि यह संदेश भी दिया जा सके कि ब्रह्मण, बनिया और ठाकुर समाज की पार्टी भाजपा अब बदल गई है. भाजपा सिर्फ फ्री की योजनाओं के भरोसे नहीं है बल्कि वह वंचितों का ध्यान रखने वाली पार्टी है.