लखनऊ: उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में सूबे की जनता ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और नगीना के सांसद चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी (एएसपी) को तगड़ा झटका दे दिया है। इन दोनों ही पार्टियों ने राज्य की नौ सीटों पर हो रहे उपचुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। सूबे की जनता ने इन दोनों ही दलों के सभी उम्मीदवारों को ना केवल हराया है, बल्कि उनकी जमानत तक जब्त करा दी है।
जनता का यह फैसला बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए बड़ा झटका है। वह सिर्फ यूपी में उपचुनाव ही नहीं हारी हैं बल्कि उन्हे महाराष्ट्र और झारखंड में भी हार का समाना करना पड़ा है। देश और प्रदेश में होने वाले हर चुनाव में मिल रही ऐसी हार से अब बसपा को मिली राष्ट्रीय दल की मान्यता पर खतरे में पड़ गई है।
बसपा प्रत्याशियों की हार की मुख्य वजह :
महाराष्ट्र, झारखंड के विधानसभा चुनाव और यूपी के उपचुनावों में बसपा की हार को अब उसके अस्तित्व खोने के जोड़ा जा रहा है। कहा जा रहा है कि कभी देश में दलित समाज को जोड़ने वाली यह पार्टी अब अपने अस्तित्व को बचाए रखे के लिए संघर्ष कर रही हैं। बीते 12 वर्षों से यह पार्टी लगातार हर चुनाव हार रही है।
वर्ष 2019 में जब मायावती ने अखिलेश यादव के साथ चुनावी गठबंधन कर चुनाव लड़ा था तो जरूर उसकी हालत सुधरी थी, लेकिन तह लोकसभा चुनाव में दस सीटों पर जीत हासिल होने के बाद मायावती ने सपा से नाता तोड़ लिया। इसी के बार बसपा केआर ग्राफ लगातार नीचे गिरता गया और वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा सिर्फ एक विधानसभा सीट ही सूबे में जीत सकी।
इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई। यही नहीं हरियाणा और जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव में भी बसपा को इस वर्ष हार का सामना करना पड़ा। इसकी के बाद कभी उपचुनाव न लड़ने वाली बसपा ने इस बार यूपी की सभी नौ सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। परन्तु मायावती के ये उम्मीदवार कुछ खास नहीं कर सके. सबसे सब चुनाव हार गए।
बसपा उम्मीदवारों की हार के पीछे कई कारण हैं। इनमें एक प्रमुख कारण बड़े नेताओं का चुनाव प्रचार से दूरी बनाना भी है। पार्टी प्रमुख मायावती समेत लगभग सभी बड़े नेताओं ने एक भी सीट पर एक भी रैली नहीं की। हालांकि पार्टी ने 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की थी।
इस सूची में पार्टी प्रमुख मायावती, आकाश आनंद और सतीश चंद्र मिश्र सहित करीब 40 नेताओं के नाम थे, लेकिन, यूपी में मायावती समेत लगभग किसी भी बड़े नेता की कोई जनसभा नहीं हुई है, जबकि उपचुनाव में सत्तासीन भाजपा और सपा के साथ बसपा प्रत्याशियों का मुकाबला था। बसपा के बड़े नेताओं के चुनाव प्रचार में ना उतरने के चलते पार्टी प्रत्याशी लोगों के दिल में जगह नहीं बना पाए और चुनाव हार गए।
इसलिए हारे एएसपी के उम्मीदवार :
दलित समाज के वोटों पर अपना अधिकार जताने वाले नगीना के सांसद चंद्रशेखर आजाद की पार्टी पहली बार यूपी के उपचुनाव में उतरी थी। यह पार्टी ने दलित समाज पर अपनी पकड़ को इस उपचुनाव के जरिए चेक करने के मकसद से चुनाव मैदान में उतरी थी।
पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर लोकसभा चुनाव में नगीना से जीतने के बाद दलित वर्ग में काफी लोकप्रिय हो रहे हैं और अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं, लेकिन वह इस चुनाव में एएसपी को बसपा का विकल्प बना पाने में असफल रहे क्योंकि सूबे की जनता ने उनके प्रत्याशियों को नकार दिया।
चंद्रशेखर ने कानपुर की सीसामऊ सीट को छोड़कर बाकी आठ सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, सबके सब हार गए क्योंकि दलित समाज ने उन्हें महत्व नहीं दिया। इस हार से चंद्रशेखर निराश नहीं है, उनका कहना है की हमारा रास्ता आसान नहीं है, देर सबेर वह सफल होंगे।