लखनऊः बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती का हर फैसला राजनीतिक तौर पर बेहद ही अहम होता है. यही वजह है कि जब उन्होने आगामी कांशीराम की पुण्यतिथि पर 9 अक्तूबर को कांशीराम स्मारक स्थल पर पांच लाख लोगों का जमावड़ा करने का ऐलान किया तो इसके राजनीतिक मायने तलाशे गए. तो यह पता कि मायावती देश में लगातार कमजोर होती जा रही बहुजन ताकत को एकजुट कर पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं नया उत्साह जगाने के लिए ही कांशीराम स्मारक स्थल पर पार्टी का राज्य स्तरीय आयोजन कर रही है.
इसमें आने वाली पांच लाख लोगों की भीड़ के जरिए विरोधियों को बसपा की ताकत दिखाने के साथ ही मायावती बिहार के चुनाव में भी इसका लाभ लेने की तैयारी में हैं. मायावती बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर चुकी हैं. नौ अक्टूबर को कांशीराम की पुण्यतिथि पर प्रदेश भर से कार्यकर्ताओं का लखनऊ में होने वाले जुटान की धमक बिहार तक पहुंचे यही मायावती ही मंशा है.
मायावती पार्टी समर्थकों को देगी संदेश
इसी मंशा ही पूर्ति के लिए मायावती ने नौ अक्टूबर को कांशीराम स्मारक पर राज्य स्तरीय आयोजन करने का ऐलान किया है. करीब चार साल पहले यानी नौ अक्टूबर 2021 को कांशीराम की पुण्यतिथि पर प्रदेश भर से बसपा कार्यकर्ता जुटे थे. मायावती की कोशिश इस बार भी बड़ी भीड़ जुटाकर विरोधियों के बसपा के कमजोर होने के आरोपों को जवाब देने की है.
रैलियों में भीड़ जुटने से बसपा का कोई जवाब किसी के पास नहीं है. इसलिए यह माना जा रहा है कि आगामी नौ अक्टूबर को तय किए गए लक्ष्य के अनुसार लखनऊ में पांच लाख बसपा समर्थकों का जमावड़ा होगा. इसके चलते पार्टी कार्यकर्ताओं में भी उत्साह का संचार होगा और बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ ही अगले वर्ष यूपी में होने वाले पंचायत चुनाव में पार्टी को इसका लाभ होगा.
इस आयोजन को लेकर मायावती बेहद ही उत्साहित हैं. उन्होने कहा है कि उक्त आयोजन में प्रदेश भर से कार्यकर्ताओं के एक दिन पहले लखनऊ पहुंचने की पुरानी परंपरा को देखते हुए उनके ठहरने आदि पर्याप्त व्यवस्थाएं की जाएगी. इसके लिए उन्होंने पार्टी पदाधिकारियों को अभी से तैयारी करने के निर्देश दिए है. कार्यकर्ताओं और समर्थकों को लाने के लिए ट्रेन और बस आदि की बुकिंग ही जाएगी.
कहा जा रहा है कि परिवहन विभाग की 400 से अधिक बसें और 20 से अधिक ट्रेन आदि का प्रबंध किया जाएगा. इस आयोजन के दौरान बसपा प्रमुख मायावती पार्टी की आगामी राजनीति के बारे में पार्टी समर्थकों को संदेश देंगी, ताकि वह कमजोर हो रहे पार्टी संगठन को मजबूत करने के ताकत बिहार में फिर से एकजुट होकर पार्टी के घट गए वोटबैंक में इजाफ़ा करें.
बिहार में बसपा का अबतक का सफर
पंजाब से शुरू होकर बसपा का पूरे देश में तो फैसला, लेकिन जो सफलता बसपा को उत्तर प्रदेश में हासिल हुई वह किसी अन्य राज्य में नहीं मिली. यूपी में सटे बिहार में बसपा ने वर्ष 1990 में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था. परंतु 35 वर्षों के इस सफर में कभी भी बसपा सत्ता के नजदीक नहीं पहुंच सकी.
हालांकि जब वर्ष 1990 में बसपा ने बिहार विधानसभा के चुनाव में हिस्सा लिया था, तब बिहार और झारखंड संयुक्त राज्य थे. तब बिहार विधानसभा में सीटों की संख्या 324 थी. वर्ष 1990 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 164 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. तब पार्टी 0.73 फीसदी वोट मिले लेकिन सीट एक भी नहीं मिली थी.
फिर वर्ष 1995 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 161 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 1.34 फीसदी वोट हासिल कर दो सीटों पर जीत हासिल की थी. वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 249 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और पांच सीटों पर जीत हासिल कर 1.89 फीसदी वोट हासिल किए.
वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 238 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 4.41 फीसदी वोट शेयर के साथ दो सीटें जीतने में सफल हुई. इसके बाद अक्टूबर 2005 के विधानसभा चुनाव में 212 सीटों पर उम्मीदवार उतारने वाली बसपा 4.17 फीसदी वोट शेयर के साथ चार सीटें जीतने में कामयाब रही.
2010 और 2015 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 3.21% और 2.1 फीसदी वोट शेयर तो मिले लेकिन कोई सीट जीतने में पार्टी कामयाब नहीं हुई. 2020 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 80 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और एक सीट जीने में भी सफल हुई थी. बीते चुनाव में बसपा को 1.5 फीसदी वोट हासिल हुए थे. अब इस बार बिहार की सभी सीटों पर मायावती ने उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है.