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उन्नाव मामलाः सीबीआई को फटकार, महिला अधिकारी का न होना आश्चर्य, कई बार कार्यालय बुलाया

By भाषा | Updated: December 16, 2019 20:35 IST

अदालत ने कहा, ‘‘कानून के मुताबिक ऐसे मामलों में पीड़िता का बयान दर्ज करने के लिए सीबीआई में महिला अधिकारी होनी चाहिए लेकिन आश्चर्य है कि लड़की के आवास पर जाने के बजाय उसे कई बार सीबीआई कार्यालय बुलाया गया।’’

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ठळक मुद्देअदालत ने इस बात का जिक्र किया कि इस तरह के मामलों की जांच एक महिला अधिकारी द्वारा की जानी चाहिए।यौन अपराधों से बाल संरक्षण (पॉक्सो) कानून की धारा 24 के तहत प्रावधान किया गया है।

दिल्ली की एक अदालत ने उन्नाव बलात्कार मामले में आरोपपत्र दाखिल करने में विलंब और जांच के दौरान महिला अधिकारियों की अनुपस्थति को लेकर सोमवार को सीबीआई को फटकार लगाई।

पीड़िता के मामले को अस्पष्ट करने के लिए उसके बयान से जुड़ी अहम सूचना चुनिंदा तरीके से जांच एजेंसी द्वारा लीक करने पर भी अदालत ने नाराजगी जाहिर की। अदालत ने कहा, ‘‘कानून के मुताबिक ऐसे मामलों में पीड़िता का बयान दर्ज करने के लिए सीबीआई में महिला अधिकारी होनी चाहिए लेकिन आश्चर्य है कि लड़की के आवास पर जाने के बजाय उसे कई बार सीबीआई कार्यालय बुलाया गया।’’

अदालत ने इस बात का जिक्र किया कि इस तरह के मामलों की जांच एक महिला अधिकारी द्वारा की जानी चाहिए, जिसके लिए यौन अपराधों से बाल संरक्षण (पॉक्सो) कानून की धारा 24 के तहत प्रावधान किया गया है लेकिन पीड़िता के बयान सीबीआई कार्यालय बुला कर दर्ज किए गए तथा यौन उत्पीड़न के इस तरह के मामले में उसके साथ होने वाली प्रताड़ना, पीड़ा और फिर से तकलीफ पहुंचने की परवाह नहीं की गई।

जिला न्यायाधीश धर्मेश शर्मा ने कहा कि सीबीआई ने इस तथ्य के बारे में विस्तार से नहीं बताया कि जब लगभग समूची जांच जुलाई 2018 के अंत तक पूरी हो गई थी तब किस चीज ने सीबीआई को तीन अक्टूबर 2019 तक आरोप पत्र दाखिल करने से रोका।

गौरतलब है कि बलात्कार पीड़िता द्वारा तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को लिखे पत्र पर संज्ञान लेते हुए उच्चतम न्यायालय ने उन्नाव बलात्कार घटना के सिलसिले में दर्ज सभी पांच मामलों को एक अगस्त को उत्तर प्रदेश की लखनऊ अदालत से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया था। साथ ही, यह निर्देश भी दिया था कि मामले की सुनवाई रोजाना आधाार पर की जाए और यह 45 दिनों की अंदर पूरी की जाए। अदालत ने भाजपा से निष्कासित विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को 2017 की इस घटना के लिए सोमवार को दोषी करार दिया।

अदालत सजा की अवधि पर बुधवार को दलीलें सुनेगी। इस अपराध के लिये अधिकतम आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। अदालत ने सेंगर को भारतीय दंड संहिता के तहत दुष्कर्म और पॉक्सो कानून के तहत लोकसेवक द्वारा बच्ची के खिलाफ यौन हमले के अपराध का दोषी ठहराया।

पॉक्सो अधिनियम के तहत सेंगर (53) को दोषी ठहराते हुए अदालत ने कहा कि सीबीआई ने साबित किया कि पीड़िता नाबालिग थी और इस विशेष कानून के तहत चलाया गया मुकदमा सही था। अदालत ने नौ अगस्त को विधायक और सिंह के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र, अपहरण, बलात्कार और पॉक्सो कानून से संबंधित धाराओं के तहत आरोप तय किए थे। 

टॅग्स :उन्नाव गैंगरेपकुलदीप सिंह सेंगरउत्तर प्रदेशसुप्रीम कोर्ट
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