नई दिल्ली: केंद्रीय विश्वविद्यालय में शिक्षण के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) जल्द ही पीएचडी अनिवार्यता को समाप्त कर सकता है। जानकारी के अनुसार, यूजीसी विशेष पदों को बनाने की योजना बना रहा है। ऐसे में आयोग द्वारा प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस और असोसिएट प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस जैसे विशेष पदों का निर्माण किया जा रहा है।
दरअसल, यूजीसी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में उद्योग जगत के विशेषज्ञों और पेशेवरों को पढ़ाने का मौका देना चाहता है क्योंकि इनमें से अधिकांश पेशेवर ऐसे हैं जिन्हें अपनी फील्ड का भरपूर ज्ञान तो है लेकिन पढ़ाने के लिए पीएचडी की डिग्री कम के पास ही होती है। इस मामले में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष एम जगदेश कुमार का कहना है कि कई विशेषज्ञ ऐसे हैं जो पढ़ाने के लिए इच्छुक हैं। कई लोग ऐसे हो सकते हैं जिनके पास कार्य का जमीनी स्तर पर ज्यादा अनुभव हो। कोई बहुत बड़ा नृतक या अच्छा गायक हो सकता है। मगर इन सब की वर्तमान नियमों के तहत नियुक्ति नहीं हो सकती। विशेष पदों का निर्माण इन्हीं सब वजहों से किया जा रहा है।
अपनी बात को जारी रखते हुए कुमार ने कहा कि पीएचडी की अनिवार्यता अब जरूरी नहीं होगी। बस संबंधित क्षेत्र विशेषज्ञ को बढ़िया अनुभव होना चाहिए। जानकारी के अनुसार, बनाए जा रहे हैं नए पद स्थायी और अस्थायी दोनों हो सकते हैं। विशेषज्ञ और संस्थान की जरूरत पर यह निर्भर करेगा। जो विशेषजज्ञ 60 साल के पूरे हो गए हैं वो भी 65 वर्ष की आयु तक फुल-टाईम या पार्ट-टाईम फैकल्टी के रूप में काम कर सकते हैं। मालूम हो, बीते गुरुवार को यूजीसी चेयरपर्सन एम जगदेश कुमार के साथ केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की बैठक हुई थी, जिसमें प्रोफेसर के पदों पर नियुक्ति के नियमों में संशोधन के लिए एक समिति गठित करने का फैसला किया गया।
कई अहम मुद्दों पर चर्चा के लिए यह बैठक बुलाई गई थी। हालांकि, इस दौरान राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन में प्रगति पर चर्चा की गई। यूजीसी क केंद्रीकृत पोर्टल का निर्माण करने की भी योजना बना रहा है, ताकि खाली पड़े शिक्षकों के पदों पर जल्द से जल्द नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी की जा सके। शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, केंद्र द्वारा वित्त पोषित संस्थानों में दिसंबर 2021 तक 10,000 से अधिक शिक्षकों के पद खाली थे।