'छात्राओं की पीठ और गर्दन छूना POCSO की इस धारा के तहत दंडनीय अपराध', हिमाचल प्रदेश HC की टिप्पणी
By आकाश चौरसिया | Updated: July 18, 2024 15:31 IST2024-07-18T14:55:43+5:302024-07-18T15:31:18+5:30
हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर के सीनियर सेकेंडरी स्कूल से एक मामला सामने आया है, जिसमें टीचर ने 21 छात्राओं के साथ छेड़छाड़ की और उनके पहनावे पर भी टिप्पणी की। अब मामला हाईकोर्ट में है और अदालत ने इसे अपराध मानते हुए पुलिस में दर्ज हुई FIR को रद्द करने से मना कर दिया।

फोटो क्रेडिट- (एक्स)
शिमला: हिमाचल प्रदेश के हाईकोर्ट ने प्रदेश के जिला सिरमौर के 1 राजकीय सेकेंडरी माध्यमिक विद्यालय में छात्राओं की पीठ और गर्दन को छूने के मामले टीचर के खिलाफ पुलिस की एफआईआर रद्द करने से मना कर दिया है। इसके साथ कोर्ट ने कहा कि यह कृत्य POCSO अधिनियम की धारा 7 के तहत दंडनीय अपराध है। हालांकि, अदालत ने ये भी माना कि आरोपी भौतिक विज्ञान का शिक्षक था और उसे असल में विषय से कोई सरोकार नहीं।
मामले की सुनवाई जस्टिस राकेश काईथला की बेंच कर रही थी, जिसमें कोर्ट ने पुलिस के द्वारा लिए उस बयान को नोट किया जिसमें छात्राओं से टीचर शारीरिक संपर्क आने की कोशिश करता था, यही नहीं उनके पहनावे पर भी टिप्णी करता था। कोर्ट ने माना कि आरोपी का सीधा सा तात्पर्य यौन उत्पीड़न का इरादा उजागर होता है, जो कि 2012 अधिनियम की धारा 7 के कार्यान्वयन के लिए एक आवश्यक घटक के अंर्तगत अपराध माना जाता है।
21 छात्राओं के साथ..
सिरमौर जिले में स्थित सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल की प्रिंसिपल को यौन उत्पीड़न की शिकायत एक छात्रा ने की। फिर प्रिंसिपल ने यौन उत्पीड़न कमेटी का गठन करके मामले को उन्हें सौंप दिया, हालांकि, लड़की और उसके पिता कमेटी के समक्ष पेश नहीं हुए। हालांकि, जब से प्रिंसिपल को ये मामले का पता चला तो उन्होंने इसकी जांच के लिए पुलिस से शिकायत की। पुलिस ने जांच मुहिम छेड़ी और पाया कि आरोपी ने ऐसा कृत्य 21 छात्राों के साथ किया।
पुलिस ने उन सभी 21 में से 20 छात्राओं के बयान लिए, जिसमें सभी ने बताया कि टीचर ने डबल-मीनिंग जैसे शब्दों की टिप्पणी की और उनके गाल, पीठ और गर्दन को गलत इरादे से छूने का प्रयास किया। इससे उन सभी लड़कियों को अच्छा नहीं लगा और उन्होंने आरोपी टीचर के खिलाफ अपना बयान दिया।
आरोपी को पुलिस ने कोर्ट में पेश किया
इन आरोपों के आधार पर आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और पुलिस ने IPC की धारा 354-ए और POCSO अधिनियम की धारा 10 के तहत दंडनीय अपराध के लिए चालान तैयार किया और कोर्ट के समक्ष पेश किया।
आरोपी की HC में अर्जी
हालांकि, आरोपी किसी तरह हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने में कामयाब हो गया और उसने कोर्ट से एफआईआर रद्द करने की मांग रख दी, उसने बताया कि वो 22 सालों से स्कूल में सेवा दे रहा है और संस्थान में रहते हुए उसने कई पुरस्कार जीते। आरोपी ने प्रस्तुत किया गकि यौन उत्पीड़न का उल्लेख तक नहीं किया गया और प्रिंसिपल ने शिकायत को यौन उत्पीड़न समिति को संदर्भित करके गलती की थी। कमेटी ने भी कोई जांच नहीं की और प्रिंसिपल ने मामला पुलिस को सौंप दिया।
यह भी तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है, भले ही FIR के आरोपों को सच मान लिया जाए। इसलिए प्रार्थना की गई कि वर्तमान याचिका को स्वीकार किया जाए और एफआईआर को रद्द कर दिया जाए। दूसरी ओर राज्य के एएजी ने तर्क दिया कि पुलिस ने जांच के बाद पाया कि आरोपी ने छात्राओं का यौन उत्पीड़न किया था और आरोप पत्र में लगाए गए आरोप POCSO अधिनियम की धारा 7 के तहत दंडनीय अपराध का गठन करते हैं। इसलिए उन्होंने प्रार्थना की कि वर्तमान याचिका खारिज कर दी जाए।
अंतिम में कोर्ट ने आरोपी को आड़े हाथों लिया
इसमें यह मानते हुए कि CrPc की धारा 161 के तहत अपने बयानों में लड़कियों द्वारा लगाए गए आरोप POCSO अधिनियम की धारा 7 के तहत दंडनीय अपराध का प्रथम दृष्टया कमीशन स्थापित करने का फैसला सुनाया, कोर्ट ने FIR को रद्द करने से इनकार कर दिया।