नई दिल्ली, 12 अक्टूबरः गंगा स्वच्छता के लिए प्रयासरत स्वामी सानंद (पूर्व में जीडी अगरवाल) ने गुरुवार दोपहर दम तोड़ दिया। उन्होंने ऋषिकेश स्थित एम्स में आखिरी सांस ली। गंगा की दुर्दशा को लेकर वो 111 दिनों से उपवास पर थे। स्वामी सानंद के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट के जरिए दुख व्यक्ति किया है। उन्होंने कहा कि जीडी अगरवाल जी के निधन से दुखी हूं। लर्निंग, एजुकेशन, पर्यावरण को बचाने और विशेष रूप से गंगा सफाई के लिए उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा। लेकिन क्या पीएम मोदी को स्वामी सानंद के उपवास की खबर नहीं थी?
स्वामी सानंद ने 2013 यूपीए सरकार के दौरान भी गंगा की दुर्दशा को लेकर अनशन किया था। सरकार की मान-मनुहार के बाद वो मान गए। 2014 में सरकार बदलने के बाद नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। स्वामी सानंद को गंगा सफाई की थोड़ी उम्मीद जगी। उन्होंने सरकार को अपने सुझाव और मांग के साथ कई पत्र लिखे लेकिन कोई ठोस जवाब नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने आमरण अनशन करने का फैसला किया और इसकी चिट्ठी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजी। यह चिट्ठी 23 जून 2018 को मातृ सदन हरिद्वार से लिखी गई थी। तब तक स्वामी सानंद अपना अनशन शुरू कर चुके थे। पढ़िए पीएम मोदी के नाम लिखी उनकी आखिरी चिट्ठी...
प्रिय छोटे भाई नरेंद्र मोदी,
मैंने दो पत्र, पहला उत्तरकाशी से 24 फरवरी 2018 और दूसरा पत्र मातृ सदन हरिद्वार से 13 जून 2018 को प्रेषित कर मां गंगा जी की दुर्दशा को तुमसे बताकर कुछ आवश्वयक कार्यवाही की अपेक्षा की थी और ऐसा नहीं होने पर शुक्रवार 22 जून 2018 (गंगावतरण) दिवस से निरंतर उपवास करता हुआ प्राण त्याग देने के निश्यच का पालन करूंगा, से भी अवगत करा दिया था। दोनों पत्रों की प्रति संलग्न है। तुम्हारे द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई। अतः अपने निश्यय अनुसार मैंने विगत शुक्रवार 22 जून 2018 से निरंतर उपवास मातृ सदन, हरिद्वार में शुरू कर दिया है।
तुम्हारा मां-गंगा-भक्तबड़ा भाईस्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद
इसके चिट्ठी के साथ उन्होंने पूर्व में लिखा गया पत्र संलग्न किया जिसमें गंगा सफाई को लेकर उनके सुझाव और मांगें प्रस्तुत की गई थी। पूरा पत्र आप नीचे पढ़ सकते हैं...
सेवा में,
श्री नरेंद्र भाई मोदीजी, आदरणीय प्रधानमंत्री, भारत सरकार, नई दिल्ली
आदरणीय प्रधानमंत्री,
गंगाजी से संबंधित मामलों का उल्लेख करते हुए मैंने अतीत में आपको कुछ पत्र लिखे थे, लेकिन आपकी तरफ से अब तक मुझे इस संबंध कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। मुझे काफी भरोसा था कि प्रधानमंत्री बनने के बाद आप गंगाजी के बारे गंभीरता से सोचेंगे। क्योंकि आपने 2014 चुनावों के दौरान बनारस में स्वयं कहा था कि आप वहां इसलिए आए हैं क्योंकि आपको मां गंगाजी ने बुलाया है- उस पल मुझे विश्वास हो गया कि शायद गंगाजी के लिए कुछ सार्थक करेंगे। इस विश्वास के चलते मैं पिछले साढ़े चार साल से शांति से इंतजार कर रहा था।
शायद आपको मालूम होगा कि मैं पहले भी कई बार गंगाजी के हित में कार्यों को लेकर अनशन कर चुका हूं। इससे पहले मेरे आग्रह के आधार को स्वीकार करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने लोहारी नागपाला जैसे बड़े प्रोजेक्ट (जो कि 90 फीसदी पूरा हो चुका था) पर चल रही सभी तरह की गतिविधीयों को न सिर्फ बंद करने का निर्णय लिया बल्कि उसे रद्द भी कर दिया था। इस कारण सरकार को हजारों करोड़ का घाटा भी सहना पड़ा, फिर भी मनमोहन सिंह जी आगे बढ़े और गंगाजी के हित में यह सब किया।
इसके अतिरिक्त तत्कालीन सरकार ने आगे बढ़ते हुए गंगोत्री से लेकर उत्तरकाशी तक भगीरथी जी की धारा को ईको सेंसिटिव जोन घोषित किया। ताकि गंगाजी को नुकसान पहुंचा सकने वाली गतिविधियां फिर कभी न हों।
मुझे आपसे उम्मीद थी कि आप गंगाजी के लिए दो कदम आगे बढ़ते हुए विशेष प्रयास करेंगे, क्योंकि आपने आगे आते हुए गंगा पर अलग से मंत्रालय बनाया था। लेकिन पिछले चार वर्षों में आपकी सरकार द्वारा किए गए सभी कार्य गंगाजी के लिए तो लाभकारी नहीं रहे, लेकिन उनके स्थान पर केवल कॉरपोरेट क्षेत्र और व्यावसायिक घरानों का लाभ देखने को मिला। अब तक आपने केवल गंगाजी से लाभ अर्जित करने के मुद्दे पर सोचा है। गंगाजी के संबंध में आपकी सभी परियोजनाओं से धारणा बनती है कि आप गंगाजी को कुछ भी नहीं दे रहे हैं। यहां तक कि महज बयान को तौर पर आप कह सकते हैं कि गंगाजी से कुछ लेना नहीं है लेकिन उन्हें हमारी तरफ से कुछ देना है।
3.08.2018 को केंद्रीय मंत्री साधवी उमा भारती जी मुझसे मिलने आईं थी। उन्होंने फोन पर नितिन गडकरी जी से मेरी बात कराई, लेकिन प्रतिक्रिया की उम्मीद आपसे है। इसीलिए मैंने सुश्री उमा भारती जी को कोई जवाब नहीं दिया। मेरा यह अनुरोध है कि आप निम्मलिखित चार वांछित आवश्यकताओं को स्वीकार करें जो मेरे 13 जून 2018 को आपको लिखे गए पत्र में सूचीबद्ध है। यदि आप असफल रहे तो मैं अनशन जारी रखते हुए अपना जीवन त्याग दूंगा। मुझे अपना जीवन त्यागने में कोई हिचक नहीं होगी, क्योंकि गंगाजी का मुद्दा मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण और अत्यंत प्रथमिकता वाला है।
मैं आईआईटी में प्रोफेसर, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का सदस्य होने साथ गंगाजी पर बने सरकारी संगठनों का सदस्य रहा हूं। इन संस्थाओं का हिस्सा होने के चलते इतने सालों से अर्जित अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि आपकी सरकार के चार सालों में गंगाजी को बचाने की दिशा में किए गए एक भी कार्य को फलदायक नहीं कहा जा सकता है।
मेरा आपसे अनुरोध है, मैं दोहराता हूं, कि निम्नलिखित आवश्यक कार्यों को स्वीकार किया जाए और क्रियान्वित किया जाए। मैं यह चिट्ठी उमाजी के जरिए भेज रहा हूं।
आवश्यक कार्यों के लिए मेरे चार अनुरोध इस प्रकार हैं:-
1. साल 2012 में हुए गंगा महासभा द्वारा तैयार किया गया मसौदा विधेयक तत्काल संसद में लाया जाए और पास कराया जाए (इस मसौदे को तैयार करने वाली कमेटी में मै, एडवोकेट एमसी मेहता और डॉ परितोष त्यागी शामिल थे)।
यदि ये नहीं हो पाए तो इस मसौदा विधेयक के चैप्टर 1 (अनुच्छेद 1 से अनुच्छेद 9) पर अध्याधेश लाकर तत्काल राष्ट्रपति से मंजूरी दिलाते हुए लागू किया जाए।
2. उपर्युक्त कार्य के हिस्से के रूप में अलकनंदा, धौलीगंगा, नंदाकिनी, पिंडर और मंदाकिनी पर निर्माणाधीन सभी पनबिजली परियोजनाओं को रद्द किया जाए। इसके साथ ही गंगाजी और उनके पोषित करने वाली सभी धाराओं पर बनने वाले सभी प्रस्तावित पनबिजली परियोजनाओं को भी रद्द किया जाए।
3. मसौदा विधेयक के अनुच्छेद 4(D)-1 वनों की कटाई, 4 (F) जीवित प्रजातियों की हत्या/प्रसंस्करण और 4(G) सभी तरह की खनन गतिविधियों को पूरी तरह से रोका जाए और लागू किया जाए। इसे हरिद्वार कुम्भ क्षेत्र में विशेषकर लागू किया जाए।
4. जून 2019 तक गंगा भक्त परिषद का गठन किया जाए जिसमें आपके द्वारा नामित 20 सदस्य हों, जो गंगाजी के पानी में शपथ ले कि वे गंगाजी और केवल गंगाजी के अनुकूल हितों को लाभ पहुंचाने के हित में ही कार्य करेंगे और गंगाजी से संबंधित सभी कार्यों के संबंध में, इस परिषद की राय निर्णायक के रूप में ली जाएगी।
चूंकि मुझे 13 जून 2018 को आपको भेजे गए पत्र का उत्तर नहीं मिला, इसलिए मैं 22 जून 2018 से अपना अनशन शुरू किया है जैसा कि मैने इस पत्र में लिखा है। इस प्रकाश में यह पत्र आपकी जल्द से जल्द उचित कार्रवाई की उम्मीद के साथ आपका धन्यवाद।
आपका
स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद