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2016 की नोटबंदी के खिलाफ याचिकाओं पर आज आ सकता है सुप्रीम कोर्ट का फैसला, जानिए मामले की पूरी डिटेल

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 02, 2023 9:09 AM

2016 में की गई नोटबंदी के खिलाफ डाली गई याचिकाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुना सकता है। पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले पर सुनवाई कर रही थी।

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ठळक मुद्दे 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले के खिलाफ याचिका पर आज आएगा फैसला।मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ कर रही थी, कोर्ट ने सरकार से फैसले का रिकॉर्ड भी मांगा था।

नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट साल 2016 में 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को बंद करने संबंधी सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज अपना फैसला सुना सकता है। जस्टिस एस. ए. नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-जजों की संविधान पीठ इस मामले में अपना फैसला सुनाएगी। सुप्रीम कोर्ट की सोमवार की वाद सूची के अनुसार, इस मामले में दो अलग-अलग फैसले होंगे, जो न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना द्वारा सुनाए जाएंगे।

कोर्ट ने मांगा था सरकार से फैसले का रिकॉर्ड

न्यायमूर्ति नजीर, न्यायमूर्ति गवई और न्यायमूर्ति नागरत्ना के अलावा, पांच न्यायाधीशों की पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमण्यन हैं। कोर्ट ने केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को सात दिसंबर को निर्देश दिया था कि वे सरकार के 2016 में 1000 रुपये और 500 रुपये के नोट को बंद करने के फैसले से संबंधित प्रासंगिक रिकॉर्ड पेश करें।

पीठ ने केंद्र के 2016 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, आरबीआई के वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदम्बरम तथा श्याम दीवान समेत याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुनी थीं और अपना फैसला सुरक्षित रखा था।

नोटबंदी के फैसले के खिलाफ क्या है याचिका में दलील?

एक हजार और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को ‘गंभीर रूप से दोषपूर्ण’ बताते हुए चिदंबरम ने दलील दी थी कि केंद्र सरकार कानूनी निविदा से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को अपने दम पर शुरू नहीं कर सकती है और यह केवल आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर किया जा सकता है।

साल 2016 की नोटबंदी की कवायद पर फिर से विचार करने के सर्वोच्च न्यायालय के प्रयास का विरोध करते हुए सरकार ने कहा था कि अदालत ऐसे मामले का फैसला नहीं कर सकती है, जब ‘बीते वक्त में लौट कर’ कोई ठोस राहत नहीं दी जा सकती है।

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