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सुप्रीम कोर्ट ने ईडब्ल्यूएस कोटे पर 3-2 से लगाई मुहर, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए जारी रहेगा 10% आरक्षण

By अनिल शर्मा | Updated: November 7, 2022 12:03 IST

बता दें कि संविधान में 103वें संशोधन के जरिए 2019 में संसद से EWS आरक्षण को लेकर कानून पारित किया गया था। बेंच के न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी, बेला त्रिवेदी और जेबी पारदीवाला ने EWS संशोधन को बरकरार रखा है। मुख्य न्यायाधीश उदय यू ललित और न्यायाधीश रवींद्र भट ने इस पर असहमति व्यक्त की है। EWS संशोधन को बरकराकर रखने के पक्ष में निर्णय 3:2 के अनुपात में हुआ।

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ठळक मुद्दे उच्चतम न्यायालय ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण के प्रावधान को बरकरार रखा है।न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण संबंधी 103वें संविधान संशोधन को सही मानते हुए कहा कि यह संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है।

 नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण के प्रावधान को बरकरार रखा है।  5 जजों की बेंच में 3 जजों (जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला) ने ईडब्ल्यूएस के समर्थन में फैसला सुनाया। उच्चतम न्यायालय ने दो के मुकाबले तीन मतों के बहुमत से सुनाए गए फैसले में दाखिलों और सरकारी नौकरियों में ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने वाले 103वें संविधान संशोधन को सही माना।

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता। सुनवाई की शुरुआत में प्रधान न्यायाधीश यू यू ललित ने कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चार विभिन्न फैसले हैं। न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने अपना निर्णय पढ़ते हुए कहा कि 103वें संविधान संशोधन को संविधान के मूल ढांचे को भंग करने वाला नहीं कहा जा सकता। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी ने कहा कि 103वें संविधान संशोधन को भेदभाव के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला ने उनके विचारों से सहमति जताई और संशोधन की वैधता को बरकरार रखा।

न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण संबंधी संविधान संशोधन पर असहमति जताई और इसे रद्द किया। न्यायमूर्ति भट ने अपना अल्पमत का विचार पेश करते हुए कहा कि आरक्षण संबंधी 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता और ईडब्ल्यूएस आरक्षण को समाप्त करना होगा। प्रधान न्यायाधीश ललित ने न्यायमूर्ति भट के विचार से सहमति व्यक्त की।

न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण संबंधी 103वें संविधान संशोधन को सही मानते हुए कहा कि यह संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है। प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित ने भी कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटे को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चार अलग-अलग फैसले हैं। इसके साथ ही न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला ने भी दाखिला, सरकारी नौकरियों में ईडब्ल्यूएस आरक्षण का समर्थन किया।

 

 

 

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