अपने हाथों से सजाया अपना घर छोड़ना किसी के लिए आसान नहीं होता है. खासकर किसी महिला के लिए तो यह खासा मुश्किल होता है. लेकिन शीला दीक्षित ने इस मामले में भी मिसान कायम की. वह पूर्व मुख्यमंत्री के तौर पर मोतीलाल नेहरू मार्ग पर बंगला नंबर-3 में रहती थीं.
वर्ष 2014 के आम चुनाव के नतीजे आ गए थे और मनमोहन सिंह के लिए पूर्व प्रधानमंत्री के तौर पर टाइप-8 के बंगले की तलाश में केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने शुरू कर दी थी. जब शीला दीक्षित को यह पता चला तो उन्होंने स्वेच्छा से अपना बंगला पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए छोड़ने का ऐलान करते हुए शहरी विकास मंत्रालय को उनका बंगला पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को देने का अनुरोध किया था.
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को जब यह मोती लाल नेहरू मार्ग पर यह बंगला मिला था, तो यह सामान्य बंगले की तरह ही था. लेकिन शीला दीक्षित को फूलों का बहुत शौक था. उन्होंने अपने बंगले में तरह-तरह के फूल लगाए हुए थे. साल में वह एक बार सभी से मिलने के लिए कार्यक्रम करती थीं. ऐसे ही एक कार्यक्रम में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी आए थे.
उन्होंने शीला दीक्षित के सजाए हुए घर और उनके बंगले में लगे रंग-बिरंगे फूलों की काफी तारीफ की थी. साथ ही कहा था कि आपने अपने घर को काफी सुंदर ढंग से सजाया हुआ है. यह वाकया शीला दीक्षित ने खुद ही एक चर्चा के दौरान पत्रकारों को बताया था. शीला दीक्षित ने अपना बंगला छोड़ने के पीछे यह भी तर्क दिया था कि उनके पास निजामुद्दीन में घर है.
केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के अधिकारियों में उस समय इस बात को लेकर चर्चा थी कि बतौर पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित चाहती तो इस बंगले में रह भी सकती थीं. क्योंकि वह लगातार 15 वर्षों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रही हैं. इतने लंबे समय तक किसी घर में रहने और उसे अपने ढंग से सजाने व तैयार करने के बाद उससे अलग होना काफी कठिन होता है. लेकिन शीला दीक्षित का यही स्वभाव उन्हें दूसरों से अलग और खास बनाता था.
दिल्ली सचिवालय का कायाकल्प कराया आईपी स्टेट स्थित दिल्ली सचिवालय की भव्य बिल्डिंग का जो स्वरू प आज लोगों को दिखाई देता है, उसका श्रेय भी पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को ही जाता है. हालांकि दिल्ली में भाजपा की सरकार के समय पूर्व मंत्री प्रो. जगदीश मुखी ने बेशक इस भव्य बिल्डिंग को बनाने का सपना देखा था. लेकिन इसे साकार किया शीला दीक्षित ने.
आईटीओ से विकास मार्ग की ओर बढ़ते हुए अक्सर रात को जगमगाता सचिवालय सभी का ध्यान आकर्षित करता है. यहां दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मंत्री और मुख्य सचिव सहित दिल्ली के वरिष्ठ अधिकारी बैठते हैं. संतोष ठाकुर की न्यूज के दो बॉक्स दिल्ली को लो-फलोर बस की सौगात दी दिल्ली में बस को सीएनजी से चलाने के साथ ही उन्होंने एक और बड़ी सौगात दिल्लीवासियों को दी.
उन्होंने दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन, दिल्ली परिवहन निगम में पहली बार लो-फ्लोर बस सेवा शुरू की. जिससे दिव्यांग लोगों का उसमें व्हीलचेयर के साथ चढ़ना सुलभ हुआ. यह देश में पहली बार हुआ था कि विदेशों की तर्ज पर लो-फ्लोर बस चली थी. इसके बाद देश के कई हिस्सों में इस तरह की बस चलीं. उन्होंने इसके अलावा दिल्ली परिवहन निगम में पहली बार सार्वजनिक परिवहन सेवा में एसी बस को चलाने का निर्णय किया.
उनका कहना था कि आखिर सिटी बस यात्री को एसी सेवा क्यों नहीं मिलनी चाहिए. सुबह 8 बजे से पहले सभी को स्वयं करती थीं फोन दिल्ली की सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाली शीला दीक्षित संभवत: यह जानती थी कि संवाद से किसी की भी नाराजगी दूर की जा सकती है. दूसरे के साथ अपने मतभेद को कम किया जा सकता है. यही वजह है कि वह उन सभी लोगों को स्वयं सुबह कॉल करती थीं, जिन्हें लेकर उन्हें लगता था कि वह नाराज हैं या फिर जिनके साथ किसी तरह के संवाद की जरूरत है.
शीला दीक्षित की यह खासियत थी कि अगर आपने उनके घर पर उनसे बात करने के लिए संवाद छोड़ा है तो वह आपसे बात जरूर करेंगी. जिन लोगों को वह व्यक्तिगत रूप से जानती थीं या फिर किसी पत्रकार ने किसी समाचार पर उनकी प्रतिक्रि या लेने के लिए उनके घर पर संपर्क किया और वह उस समय नहीं मिल पाईं हो तो वह उन्हें सुबह 8 बजे अपने घर के लैंडलाइन से स्वयं कॉल करके बात करती थीं.
इतना ही नहीं, कई बार वह समय पर प्रतिक्रि या नहीं दे पाने को लेकर क्षमा भी मांगती थीं. यह उनका ऐसा स्वभाव था जिसके सभी कायल थे. शीला दीक्षति की एक अन्य खासियत यह भी थी कि अगर किसी पत्रकार ने दिल्ली सरकार या उनके नेतृत्व को लेकर कोई नकारात्मक समाचार लिखा या दिखाया हो तो वह उससे दूरी बनाने या फिर उसके प्रति किसी तरह की घृणा-नाराजगी रखने की जगह उससे मिलती थीं और पूछती थी कि आज क्या खबर है.
उनका कहना था कि बतौर दिल्ली की मुख्यमंत्री यह उनका दायित्व है कि वह सभी तक पहुंचे और सभी पक्षों की बात सुने. इसकी वजह यह है कि जब तक वह सभी आवाज को नहीं सुनेंगी उस समय तक उन्हें यह नहीं पता चल पाएगा कि क्या कहीं कुछ गड़बड़ी है. इसी तरह से वह अपने कार्य को लेकर भी इमानदार थीं. कोई उनके कितने भी नजदीक हो लेकिन यह गारंटी नहीं ले सकता था कि वह उनसे सभी काम करा सकता है. वह अपने स्तर पर समीक्षा के बाद ही किसी भी कार्य को करने का आदेश देती थीं.