पटना: बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र के शीतकालीन सत्र के चौथे दिन गुरुवार को जदयू के वरिष्ठ विधायक नरेंद्र नारायण यादव 18वीं बिहार विधानसभा के निर्विरोध उपाध्यक्ष चुना गया। विपक्ष ने भी उनके नाम पर सहमति जताई। नरेंद्र नारायण यादव स्वतंत्रता के बाद बिहार विधानसभा के 19वें उपाध्यक्ष हैं। आजादी के बाद इस पद पर पहली बार देवशरण सिंह 24 अप्रैल 1946 को आसीन हुए थे और 31 मार्च 1952 तक इस पद पर रहे। स्वतंत्रता से पहले अब्दुल बारी 1937 से 1939 तक उपाध्यक्ष रहे थे। मधेपुरा के आलमनगर विधानसभा क्षेत्र से आठवीं बार विजयी हुए विधायक नरेंद्र नारायण यादव को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का करीबी माना जाता है। उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने नरेंद्र नारायण यादव के नाम का प्रस्ताव रखा, जिसका अनुमोदन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने किया।
बता दें कि बुधवार को इस पद के लिए उनका नामांकन दाखिल किया गया और केवल एक ही नामांकन होने के कारण उनको निर्विरोध चुना गया। इससे पहले वे मौजूदा विधानसभा के सदस्यों को शपथ दिलाने के लिए प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किए गए थे। 17वीं विधानसभा में भी वे सर्वसम्मति से उपाध्यक्ष चुने गए थे। मधेपुरा जिले के आलमगंज विधानसभा से विधायक नरेंद्र नारायण यादव 1995 में पहली बार सदन पहुंचे थे। इसके बाद से आलमनगर विधानसभा क्षेत्र से लगातार चुनाव जीत रहे हैं। इस बार उन्होंने विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के उम्मीदवार नवीन कुमार कौ करीब 55 हजार वोटों के अंतर से हराया है।
यादव इससे पहले बिहार सरकार में कानून और लघु जल संसाधन मंत्री भी रह चुके हैं। वे जदयू के अनुभवी और प्रभावशाली विधायकों में गिने जाते हैं। उल्लेखनीय है कि बुधवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को औपचारिक तौर पर सदन का नेता घोषित किया गया था। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. प्रेम कुमार ने इसकी आधिकारिक घोषणा की थी। इससे पहले नीतीश कुमार को जदयू विधायक दल और बाद में एनडीए विधायक दल का नेता चुना गया था, जिसके बाद राज्यपाल द्वारा उन्हें सरकार गठन का आमंत्रण दिया गया था।
नरेंद्र नारायण यादव की छवि एक शांत, सरल और सभी दलों को साथ लेकर चलने वाले नेता की रही है। इन्हीं गुणों को देखते हुए जदयू नेतृत्व ने उन्हें उपाध्यक्ष पद के लिए आगे बढ़ाया। यह भी माना जा रहा है कि उनके चयन से सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच सहयोग की नई राह खुलेगी क्योंकि यादव अपने व्यवहार और संतुलित राजनीति के लिए जाने जाते हैं। विधानसभा में उपाध्यक्ष का पद बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से संचालित करना, विधायी प्रक्रियाओं पर नजर रखना, और सदस्यों के बीच संतुलन बनाए रखना उपाध्यक्ष का दायित्व होता है।
वर्तमान सियासी परिस्थितियों में, जहां सदन में कई बार आरोप-प्रत्यारोप और शोरगुल के कारण कार्यवाही बाधित होती है, ऐसे में नरेंद्र नारायण यादव की भूमिका और भी अहम हो जाती है। उनसे यह उम्मीद की जा रही है कि वे अपने अनुभव और सरलता के बल पर सदन की कार्यवाही को अधिक अनुशासित और प्रभावी बनाएंगे।