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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: संविधान पीठ के पाँचों जजों की एक राय- समलैंगिकता अपराध नहीं है

By भारती द्विवेदी | Updated: September 6, 2018 15:48 IST

Section 377 verdict Live Updates homosexuality is legal: कोर्ट ने फैसला सुनाता हुए ये भी कहा है की एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) को भी समानता का अधिकार है।

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नई दिल्ली, 6 सितंबर: लंबे समय से धारा-377 पर चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आ गया है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच जजों के संविधान पीठ ने अपना फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने धारा-377 को अतार्किक और मनमानी बताते हुए कहा है कि समलैंगिकता अपराध नहीं है। चीफ जस्टिस ने कहा है कि धारा-377 पर सभी जजों की सहमति से फैसला लिया गया है।

कोर्ट ने फैसला सुनाता हुए ये भी कहा है की एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) को भी समानता का अधिकार है। धारा-377 समता के अधिकार अनुच्छेद-144 का हनन है। निजता और अंतरंगता निजी पंसद है। यौन प्राथमिकता जैविक और प्राकृतिक है। सहमति से समलैंगिक संबंध समनाता का अधिकार है।

धारा-377 पर विवाद क्यों?

साल 1861 में अंग्रेजों ने धारा-377 को लागू किया था। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के मुताबिक सेम सेक्स के व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाना अप्राकृतिक है। अगर कोई व्यक्ति अप्राकृतिक रूप से यौन संबंध बनाता है तो उसे उम्रकैद हो सकती है या फिर जुर्माने के साथ अधिकतम दस साल की जेल हो सकती है। और इसमें जमानत भी नहीं मिलती है। साथ ही इसमें आरोपी व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए किसी भी वारंट की जरूरत नहीं पड़ती है।

एक संस्था ने धारा-377 को दी थी चुनौती

साल 2001 में नाज फाउंडेशन ने दिल्ली हाईकोर्ट में धारा-377 के खिलाफ याचिका दायर किया था। नाज फाउंडेशन सेक्स वर्करों के लिए काम करने वाली एक गैर सरकारी संस्था है। नाज फाउंडेशन दिल्ली हाईकोर्ट में याचिकादायर करके मांगी की थी कि जब दो लोग सहमति से संबंध बनाते हैं तो उसे धारा-377 से अलग किया जाए। नाज फाउंडेशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने दो जुलाई 2009 में अपना फैसला सुनाया था। अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि दो लोग अगर सहमति से संबंध बनाते हैं तो वो अपराध के श्रेणी में नहीं आते हैं।

11 दिसंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले पलट दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता में सजा का प्रावधान उम्रकैद के कानून को बहाल रखने का फैसला किया था। लेकिन उसके बाद धारा-377 के खिलाफ अलग-अलग याचिका दायर किए गए। अब तक इस मामले में 30 याचिका दायर हुई हैं।

साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शुअलिटी को निजता का अधिकार घोषित किया। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस भेज जवाब मांग था। केन्द्र ने बाद में इस दंडात्मक प्रावधान की वैधता का मुद्दा अदालत के विवेक पर छोड़ दिया था। केन्द्र ने कहा था कि नाबालिगों और जानवरों के संबंध में दंडात्मक प्रावधान के अन्य पहलुओं को कानून में रहने दिया जाना चाहिए।

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