सुप्रीम कोर्ट अजन्मे शिशु के अधिकारों को लेकर सख्त, मां के गर्भपात कराने पर कही ये बात

By आकाश चौरसिया | Updated: October 13, 2023 15:30 IST2023-10-13T15:30:14+5:302023-10-13T15:30:14+5:30

बुधवार को सुनवाई के लिए 26 हफ्ते प्रेग्नेंसी के मामले पर कोर्ट ने कहा कि बच्चे के अधिकार और मां की इच्छा पर विचार कर रहे हैं। लेकिन, क्या बच्चे की भ्रूण हत्या न्यायिक आदेश के जरिए ही हो सकती है?

SC is strict regarding the rights of the unborn child said this when the mother gets abortion | सुप्रीम कोर्ट अजन्मे शिशु के अधिकारों को लेकर सख्त, मां के गर्भपात कराने पर कही ये बात

फाइल फोटो

Highlights26 सप्ताह की प्रेग्नेंसी पर एससी ने कहा, मां और बच्चे के अधिकार के बीच हम संतुलन बना रहे हैंइससे पहले 12 अक्टूबर को सुनवाई इस मामले पर हुई थीअब अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को होगी

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 26 हफ्ते प्रेग्नेंसी वाली की याचिका पर सुनवाई कर कहा कि अजन्मे बच्चे के अधिकार और मां की इच्छा के बीच संतुलन बना रहे हैं। इस मामले पर खुद मुख्य न्यायाधीश और दो जज की पीठ सुनवाई कर रही है। अब इस मामले पर 16 अक्टूबर 2023 को होगी। 

सवाल यह है कि क्या महिला को उच्चतम न्यायालय 26 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को खत्म करने की अनुमति दे सकता है। कोर्ट के अनुसार, एम्स के डॉक्टर का मानना है कि भ्रूण में अभी बच्चे का जीवन संभव है। 

गुरुवार को एक मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आया जिसमें दो बच्चों के माता पिता ने अपनी तीसरी संतान करने से इनकार कर दिया। इस पर कोर्ट ने एमटीपी एक्ट, 1971 हवाला देते हुए बताया, कानूनी तौर पर 24 हफ्तों में किसी भी अजन्मे बच्चे को भ्रूण से गिराया जा सकता है। यदि इस अवधि को पूरा होने से पहले यह नहीं होता तो फिर संभव नहीं है।  

महिला के वकील ने अदालत से कहा कि महिला को पता नहीं चला कि उसने दोबारा गर्भधारण कर लिया है।  

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि महिला की ओर से बताया गया कि प्रेगनेंट महिला डिप्रेशन से गुजर रही है। इस केस की सुनवाई एससी के तीन जजों की बैंच कर रही है, इससे पहले जस्टिस हीमा कोहली और बीवी नागारथना इस केस से अलग हो गए थे।  

गुरुवार को सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने तीन जजों की पीठ से कहा कि एम्स के एक प्रोफेसर ने राय दी थी कि भ्रूण में जीवन के मजबूत लक्षण दिखाई देते हैं। इस तरह अब बात यहां आकर अटक गई कि क्या भ्रूण हत्या करने के लिए क्या न्यायिक आदेश पारित किया जाना चाहिए? जो आमतौर पर असामान्य भ्रूणों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्रक्रिया है।  

भाटी ने केस कहा, यह गर्भपात से अधिक समय से पहले प्रसव जैसा होगा। जबकि महिला के वकील ने कोर्ट ने कहा कि 3 जजों की पीठ से कह दिया कि यह प्रेग्नेंसी बहुत जोखिम है क्योंकि महिला की मानसिक हालत ठीक नहीं है।  

यह मामला पहले भी विवाद में रहा था, जिसमें केंद्र सरकार ने सीजेआई से मौखिक अनुरोध किया था कि जो एससी के दो जजों ने फैसला दिया है, उस पर सुप्रीम कोर्ट अनुमति दे। इसमें 26 हफ्ता की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी थी। लेकिन, कोर्ट में इस मामले पर बुधवार को सुनवाई हुई तो सरकार की तरफ से कोई एप्लिकेशन तक फाइल नहीं लगाई है। 

Web Title: SC is strict regarding the rights of the unborn child said this when the mother gets abortion

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