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सुप्रीम कोर्ट की केंद्र सरकार को दो टूक- घाटी में सामान्य करें हालात, जरूरी हुआ तो प्रधान न्यायाधीश खुद जाएंगे श्रीनगर

By भाषा | Updated: September 17, 2019 05:05 IST

जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद से फारूक कथित तौर पर अपने घर में ही नजरबंद थे। पीएसए के तहत दो प्रावधान हैं-‘लोक व्यवस्था’ और ‘राज्य की सुरक्षा को खतरा’। पहले प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के छह महीने तक और दूसरे प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है।

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ठळक मुद्देफारूक के बेटे एवं पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती तथा कई अन्य नेताओं को भी पांच अगस्त से एहतियातन नजरबंद कर दिया गया था।नेशनल कांफ्रेंस ने फारूक के खिलाफ कार्रवाई को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया और इसे शर्मनाक बताया।

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र और जम्मू कश्मीर प्रशासन से कश्मीर घाटी में यथाशीघ्र हालात सामान्य करने को कहा। इस बीच, राज्य में पांच अगस्त से कथित तौर पर नजरबंद रखे गए पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को अब कठोर प्रावधानों वाले जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत गिरफ्तार किया गया है और उनके आवास को जेल घोषित कर दिया गया है।शीर्ष न्यायालय ने अधिकारियों को ‘चुनिंदा आधार’ पर आवश्यक कदम उठाने के दौरान राष्ट्र हित को ध्यान में रखने के लिए कहा है। साथ ही, प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि यदि आवश्यक हुआ तो वह स्वंय श्रीनगर जायेंगे और वह इस बारे में जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से बात भी करेंगे।इससे पहले, प्रधान न्यायाधीश ने जम्मू कश्मीर में लोगों को राज्य के उच्च न्यायालय तक पहुंचने में कथित रूप से हो रही कठिनाइयों के दावों को ‘‘अत्यधिक गंभीर’ बताया। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में मुख्य न्यायाधीश से रिपोर्ट मंगाकर इन दावों का सत्यापन करने का सोमवार को निर्णय किया। घाटी में सोमवार को लगातार 43 वें दिन भी जनजीवन प्रभावित रहा।जम्मू कश्मीर पर कई याचिकाओं पर शीर्ष न्यायालय के सुनवाई करने के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने राज्य प्रशासन की ओर से पेश होते हुए प्रधान न्यायाधीश गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को रद्द करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के केंद्र के पांच अगस्त के फैसले के बाद वहां सुरक्षा बलों ने एक भी गोली नहीं चलाई है। वहीं, इससे जुड़े घटनाक्रमों के तहत जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। समझा जाता है कि मलिक ने प्रधानमंत्री को जम्मू कश्मीर में सुरक्षा स्थिति के बारे में जानकारी दी।घुसपैठ करने के लिए पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में करीब 230 आतंकवादियों के इंतजार करने की खबरों के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी स्थिति की समीक्षा की। पीठ ने कहा कि जम्मू कश्मीर प्रशासन और केंद्र सरकार को यथाशीघ्र हालात सामान्य करने के लिए हर कोशिश करनी चाहिए। न्यायालय ने कहा कि स्थिति को सामान्य बनाने का कार्य राष्ट्र हित को ध्यान में रखते हुए चुनिंदा आधार पर किया जाए।सीजेआई की अध्यक्षता वाली इस पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं। अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ को हालात सामान्य करने के लिए अधिकारियों द्वारा उठाये गए कदमों की जानकारी दी। न्यायालय ने वेणुगोपाल से एक हलफनामा दाखिल कर अब तक उठाए गए कदमों की जानकारी देने को कहा। शीर्ष न्यायालय को जब घाटी में मोबाइल फोन और इंटरनेट सेवाएं कथित तौर पर बंद किये जाने की जाने के बारे में बताया गया, तब पीठ ने कहा इन मुद्दों क निपटारा जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय कर सकता है। इस बीच नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) अध्यक्ष फारूक के खिलाफ कार्रवाई की विपक्षी दलों ने निंदा की है।फारूक अब्दुल्ला (81) तीन बार मुख्यमंत्री रहे हैं। वह वर्तमान में श्रीनगर से लोकसभा सदस्य हैं। वह मुख्यमंत्री पद पर रहे ऐसे पहले व्यक्ति हैं, जिन्हें पीएसए के तहत नामजद किया गया है। अधिकारियों ने बताया कि उनपर पीएसए के ‘लोक व्यवस्था’ प्रावधान के तहत गिरफ्तार किया गया है जो अधिकारियों को किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे छह महीने तक हिरासत में रखने की अनुमति देता है। उन्होंने बताया कि फारूक को रविवार की देर रात एक बजे पीएसए के तहत नोटिस दिया गया था और गुपकर मार्ग स्थित उनके आवास को ही जेल घोषित कर दिया गया है। एमडीएमके नेता वाइको की याचिका पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई से कुछ घंटे पहले फारूक के खिलाफ पीएसए लगाया गया। वाइको ने दावा किया है कि फारूक को राज्य में अवैध रूप से हिरासत में लिया गया है। उन्होंने फारूक की रिहाई की मांग की है ताकि वह चेन्नई में एक कार्यक्रम में शामिल हो सकें।जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद से फारूक कथित तौर पर अपने घर में ही नजरबंद थे। पीएसए के तहत दो प्रावधान हैं-‘लोक व्यवस्था’ और ‘राज्य की सुरक्षा को खतरा’। पहले प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के छह महीने तक और दूसरे प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है। फारूक के बेटे एवं पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती तथा कई अन्य नेताओं को भी पांच अगस्त से एहतियातन नजरबंद कर दिया गया था। नेशनल कांफ्रेंस ने फारूक के खिलाफ कार्रवाई को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया और इसे शर्मनाक बताया। पार्टी ने कहा कि वह इसे कानूनी चुनौती देगी।नेकां के वरिष्ठ नेता मोहम्मद अकबर लोन ने श्रीनगर में संवाददाताओं से कहा, ‘‘उनके पास ऐसा करने के लिए कोई कारण नहीं है लेकिन यदि वे उन्हें (फारूक को) पीएसए के तहत नामजद करते हैं तो फिर हम क्या कर सकते हैं। हम संवैधानिक एवं कानूनी उपाय का सहारा लेंगे।’’ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं राज्य सभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने भी फारूक के खिलाफ कार्रवाई की निंदा करते हुए कहा कि यह देश का दुर्भाग्य है कि भारत की एकता एवं अखंडता की लड़ाई लड़ने वाले नेताओं को जेल में डाला जा रहा है।आजाद ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘मैं इसकी कड़ी निंदा करता हूं। यह देश का दुर्भाग्य है कि एक पूर्व मुख्यमंत्री और एक मुख्याधारा की पार्टी के नेता के साथ यह हुआ है।’’ इस बीच, न्यायालय ने आजाद को राज्य के चार जिलों का दौरा करने की सोमवार को अनुमति दे दी। लेकिन इस शर्त के साथ कि वह कोई राजनीतिक रैली नहीं कर सकते। अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान रद्द किये जाने के बाद के हालात में दिहाड़ी मजदूरों के जीवन पर इसके प्रभाव का आकलन करने के लिये आजाद को वहां के चार जिलों का दौरा करने की इजाजत दी।वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी के कथन का संज्ञान लेते हुये प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘आप कह रहे हैं कि आप उच्च न्यायालय नहीं जा सकते। हमने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से रिपोर्ट मंगायी है। यदि आवश्यक हुआ, मैं खुद वहां जाऊंगा।’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘ हमें मालूम होना चाहिए कि क्या वहां लोगों को न्याय तक पहुंचने में बाधा है । इस मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद मै व्यक्तिगत रूप से उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से बात करूंगा क्योंकि आपने जो कहा है वह बहुत ही गंभीर बात है।’’ न्यायालय ने कश्मीर में बच्चों को नजरबंद किये जाने के मामले में शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप के लिये दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह कहा।

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