मुंबई: शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के आधिकारिक मुखपत्र सामना ने मंगलवार को केंद्रीय खेल और युवा मामलों के मंत्रालय द्वारा भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) को निलंबित किये जाने पर मोदी सरकार को घेरा है। सामना ने अपने संपादकीय में उन पहलवानों के विरोध प्रदर्शन का जिक्र किया है, जो कुश्ती संघ के पूर्व प्रमुख और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था।
उद्धव गुट के मुखपत्र ने अपने संपादकीय में लिखा है कि जब पहलवानों का विरोध प्रदर्शन बड़ा हो गया तो आखिरकार मजबूर होकर दिल्ली पुलिस को भाजपा के मौजूदा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और जांच करने पर मजबूर होना पड़ा। इसके साथ महासंघ के नए चुनावों की घोषणा से पहले बृजभूषण को कुश्ती संस्था के दैनिक कार्यों से दूर रहने को कहा गया।
हालांकि, डब्ल्यूएफआई चुनावों के मद्देनजर पहलवान साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया के विरोध के बाद केंद्र ने वादा किया था कि वो कुश्ती संघ के प्रमुख पद पर बृजभूषण के किसी करीबी को नहीं आने देगा, लेकिन मोदी सरकार इस वादे से मुकर गई। लेकिन उसके बाद हुए विरोध के कारण खेल मंत्रालय ने बीते रविवार को शीर्ष कुश्ती को ही निलंबित करने पर मजबूर होना पड़ा।
दिलचस्प है कि बृजभूषण भले ही कुश्ती संघ से दूर हुए लेकिन नवनिर्वाचित अध्यक्ष संजय सिंह सहित महासंघ के प्रमुख पदाधिकारी उनके करीबी हैं। इस मामले में केंद्र पर कटाक्ष करते हुए सामना के संपादकीय में कहा गया है कि खेल मंत्रालय द्वारा लिया गया फैसला देर से ही सही, बेहतर समझ और बुद्धिमानी भरा है।
इससे पहले बीते साल सामना के संपादकीय में लिखा गया था, ''दिल्ली के जंतर-मंतर पर महिला पहलवानों के विरोध प्रदर्शन को पुलिस ने तोड़ दिया। पुलिस ने आधी रात में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई की और न्याय के लिए उनके आंदोलन को कुचलने के लिए बल का प्रयोग किया।''
संपादकीय में लिखा गया, "क्या मोदी सरकार राष्ट्रीय कुश्ती महासंघ से जुड़े विवाद को आगामी लोकसभा चुनावों में अपनी संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने की इजाजत दे सकती थी? हालांकि केंद्र सरकार पहलवानों के प्रति दिखावा कर रही था और उनके आंदोलन और मांगों के प्रति सहानुभूति नहीं रखता था। बृज भूषण को चुनावी सिसायत के पलड़े में तौलते हुए मोदी सरकार ने उन्हें अपना आशीर्वाद दिया हुआ है।
हालांकि, आम चुनावों के नजदीक आने पर गंभीर नतीजों को भांपते हुए मोदी सरकार को देर से ही सही अहसास हुआ और उसने कुश्ती महासंघ के नवनिर्वाचित अध्यक्ष संजय सिंह को निलंबित कर दिया है। आम चुनाव के बाद सरकार फिर इस मामले में नींद की स्थिति में आ जाएगी।
लेकिन नए पदाधिकारियों के साथ राष्ट्रीय कुश्ती महासंघ के निलंबन से पहलवानों को कुछ हद तक राहत मिली है, लेकिन बड़े उद्देश्य के लिए उन्हें संघर्ष जारी रहना चाहिए। पहलवानों और खेल प्रेमियों को यहीं नहीं रुकना चाहिए। अपनी हरकतों से सवालों के घेरे में आए बृजभूषण के सुर नरम हो गए हैं और उनका प्रभाव भी कम हो गया है, जो कुश्ती के लिए अच्छा संकेत है। राष्ट्रीय कुश्ती महासंघ का निलंबन लंबे समय में पहलवानों के संघर्ष की पहली जीत है।
मालूम हो कि इससे पहले ओलंपियन साक्षी मलिक ने कुश्ती संघ के चुनाव नतीजों के बाद प्रेस वार्ता करके कुश्ती से संन्यास लेने का ऐलान किया था, वहीं उनके साथी ओलंपियन बजरंग पुनिया ने विरोध में अपना पद्मश्री सम्मान सरकार को लौटा दिया था।