लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ प्रस्तावों को लेकर यूरोपीय संसद के अध्यक्ष डेविड मारिया सासोली को पत्र लिखा। ओम बिरला ने यूरोपीय संसद के अध्यक्ष से कहा कि एक विधान मंडल का दूसरे विधान मंडल पर फैसला देना अनुचित, इस चलन का निहित स्वार्थों द्वारा दुरुपयोग किया जा सकता है। ओम बिरला ने यह भी कहा कि अंतर-संसदीय यूनियन के सदस्य होने के नाते हमें अन्य विधानमंडलों की संप्रभु प्रक्रियाओं का सम्मान करना चाहिए।उन्होंने पत्र में लिखा, ‘‘मैं यह बात समझता हूं कि भारतीय नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019 को लेकर यूरोपीय संसद में ‘ज्वाइंट मोशन फॉर रेजोल्यूशन’ पेश किया गया है। इस कानून में हमारे निकट पड़ोसी देशों में धार्मिक अत्याचार का शिकार हुए लोगों को आसानी से नागरिकता देने का प्रावधान है।’’बिरला ने कहा कि इसका लक्ष्य किसी से नागरिकता छीनना नहीं है और इसे भारतीय संसद के दोनों सदनों में आवश्यक विचार-विमर्श के बाद पारित किया गया है। 751 सदस्यीय यूरोपीय संसद में करीब 600 सांसदों ने सीएए के खिलाफ छह प्रस्ताव पेश किए हैं जिनमें कहा गया है कि इस कानून का क्रियान्वयन भारतीय नागरिकता प्रणाली में खतरनाक बदलाव करता है।
प्रस्ताव में कहा गया है, सीएए भारत में नागरिकता तय करने के तरीके में खतरनाक बदलाव करेगा। इससे नागरिकता विहीन लोगों के संबंध में बड़ा संकट विश्व में पैदा हो सकता है और यह बड़ी मानव पीड़ा का कारण बन सकता है। इसमें भारतीय प्राधिकारियों के अपील की गई है कि वे सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों के साथ रचनात्मक वार्ता करें और भेदभावपूर्ण सीएए को निरस्त करने की उनकी मांग पर विचार करें।
सीएए भारत में पिछले साल दिसंबर में लागू किया गया था जिसे लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। बता दें कि इससे पहले अमेरिका ने भी सीएए को लेकर अपनी राय रखी थी. पिछले साल अमेरिका ने कहा था उन्होंने (सरकार) देश में नागरिकता और धार्मिक आजादी जैसे मुद्दों पर मजबूत बहस छेड़ी है. अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने इस बारे में कहा था कि हम इस बात की परवाह करते हैं कि हर जगह अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों का हनन न हो। हम भारतीय लोकतंत्र का सम्मान करते हैं कि वहां नागरिकता के मुद्दे पर एक मजबूत बहस हो रही है। अमेरिका न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर में इन मुद्दों पर प्रतिक्रिया देता रहा है।