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एससी-एसटी समुदाय का आरक्षण 10 साल बढ़ा, संसद ने 2030 तक करने के प्रावधान वाले संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी दी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 12, 2019 18:07 IST

राज्यसभा ने संविधान (126वां संशोधन) विधेयक-2019 को उच्च सदन में मौजूद सभी 163 सदस्यों के मतों से मंजूरी प्रदान की। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। एससी एवं एसटी वर्ग को लोकसभा एवं राज्यों की विधानसभा में दिए गये आरक्षण की वर्तमान सीमा 25 जनवरी 2020 को समाप्त हो रही है।

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ठळक मुद्देलोकसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय के दो और 13 विधानसभाओं में एक-एक प्रतिनिधि को मनोनीत करने के बारे में कोई उल्लेख नहीं किया गया है।रविशंकर प्रसाद ने स्पष्ट किया कि नरेन्द्र मोदी सरकार एससी एवं एसटी वर्ग को प्रदान किये जाने वाले आरक्षण को समाप्त करने के पक्ष में बिल्कुल नहीं है।

संसद ने गुरुवार को लोकसभा और राज्यों की विधानसभा में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति समुदायों को दिये गये आरक्षण को दस वर्ष बढ़ाकर 2030 तक करने के प्रावधान वाले संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी।

राज्यसभा ने संविधान (126वां संशोधन) विधेयक-2019 को उच्च सदन में मौजूद सभी 163 सदस्यों के मतों से मंजूरी प्रदान की। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। एससी एवं एसटी वर्ग को लोकसभा एवं राज्यों की विधानसभा में दिए गये आरक्षण की वर्तमान सीमा 25 जनवरी 2020 को समाप्त हो रही है।

इस विधेयक में लोकसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय के दो और 13 विधानसभाओं में एक-एक प्रतिनिधि को मनोनीत करने के बारे में कोई उल्लेख नहीं किया गया है। इससे पूर्व विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने स्पष्ट किया कि नरेन्द्र मोदी सरकार एससी एवं एसटी वर्ग को प्रदान किये जाने वाले आरक्षण को समाप्त करने के पक्ष में बिल्कुल नहीं है।

उन्होंने यह भी कहा कि मोदी सरकार इन वर्गों में क्रीमी लेयर का प्रावधान लाने के पक्ष में भी बिल्कुल नहीं है। सरकार ने एटार्नी जनरल के माध्यम से कहा है कि क्रीमी लेयर के बारे में उच्चतम न्यायालय में जो मामले विचाराधीन हैं, उन्हें किसी बड़ी पीठ में भेजा जाए।

इससे पूर्व सदन में कानून मंत्री की किसी टिप्पणी से अप्रसन्न होकर कांग्रेस के सदस्य सदन से बाहर चले गये थे। किंतु बाद में सभापति एम वेंकैया नायडू द्वारा अपील किए जाने के बाद कांग्रेस सदस्य वापस सदन में आ गये। नायडू ने ध्यान दिलाया कि चूंकि यह एक संविधान संशोधन विधेयक है, इसमें सदन के पचास प्रतिशत सदस्यों का मौजूद होना और मौजूद सदस्यों में से दो तिहाई सदस्यों के समर्थन से इसको पारित किया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि अगर यह महत्वपूर्ण विधेयक सदन में पारित नहीं हो पाया तो देश में इसका गलत संकेत जाएगा।

विधि एवं न्याय मंत्री ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का पूरा समाज ही पिछड़ा है, ऐसे में इसे दो भाग में बांटने की जरूरत नहीं है और क्रीमीलेयर की एससी/एसटी समाज में जरूरत नहीं है। एंग्लो इंडियन समुदाय को विधेयक के दायरे से बाहर रखने के बारे में प्रसाद ने कहा कि वह सेना एवं शिक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में एंग्लो इंडियन समुदाय के योगदान की सराहना करते हैं। उन्होंने कहा कि संसद एवं समाज को ऐसे समुदाय के लोगों को मनोनीत करने के बारे में विचार करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि उन्होंने पहले ही कहा है कि एंग्लो इंडियन समुदाय के लोगों की आबादी 296 है और इस संख्या पर शंका करना ठीक नहीं है । विधि मंत्री ने कहा कि जब अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों की संख्या 20 करोड़ और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों की संख्या 10.45 करोड़ को सही माना जाता है, तब एंग्लो इंडियन वर्ग के लोगों की संख्या पर शंका किया जाना ठीक नहीं है। प्रसाद ने कहा कि एंग्लो इंडियन समुदाय के बारे में विचार करना बंद नहीं हुआ है।

उन्होंने कहा कि इस संविधान संशोधन के माध्यम से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के सदन में आरक्षण को 10 वर्ष बढ़ाया जा रहा है जो जनवरी, 2020 में समाप्त होने जा रहा है। उन्होंने जोर दिया कि भाजपा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के आरक्षण के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है और यह आरक्षण कभी भी नहीं हटाया जायेगा ।

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